शुद्ध और अशुद्ध शब्द | उच्चारण और वर्तनी की परिभाषा

इस पेज पर आप शुद्ध और अशुद्ध शब्द एवं उच्चारण और वर्तनी की परिभाषा, उदाहरण, अपवाद, अशुद्धि और उनके निदान पढ़ेंगे और समझेंगे।

पिछले पेज पर हम शब्द और पद की परिभाषा उदाहरण सही पढ़ चुके है उसे भी जरूर पढ़े।

चलिए शुद्ध और अशुद्ध शब्द एवं उच्चारण और वर्तनी की परिभाषा की जानकारी को पढ़ना शुरू करते हैं।

उच्चारण और वर्तनी की परिभाषा

उच्चारण :- मुख से अक्षरों को बोलना उच्चारण कहलाता है।

सभी वर्णो के लिए मुख में उच्चारण स्थान होते हैं।

यदि वर्णों का उच्चारण शुद्ध न किया जाए तो लिखने में भी अशुद्धियाँ हो जाती हैं, क्योंकि हिंदी एक वैज्ञानिक भाषा है। इसे जैसा बोला जाता है, वैसा ही लिखा भी जाता है।

वर्तनी :- लिखने की रीति को वर्तनी या अक्षरी कहते हैं। यह हिज्जे (Spelling) भी कहलाती है।

जिस शब्दों में जितने वर्ण या अक्षर जिस अनुक्रम में प्रयुक्त होते हैं, उन्हें उसी क्रम में लिखना ही वर्तनी है।

जिस भाषा की वर्तनी में अपनी भाषा के साथ अन्य भाषाओं की ध्वनियों को ग्रहण करने की जितनी अधिक शक्ति होगी, उस भाषा की वर्तनी उतनी ही समर्थ समझी जायेगी।

अतः वर्तनी का सीधा सम्बन्ध भाषागत ध्वनियों के उच्चारण से है।

वर्तनी के उपयोगी और सर्वमान्य निर्णय

भारत सरकार के शिक्षा मन्त्रालय की ‘वर्तनी समिति’ ने 1962 में जो उपयोगी और सर्वमान्य निर्णय किये, वे निम्रलिखित हैं।

1. यदि सहिन्दी के विभक्ति-चिह्न, सर्वनामों को छोड़ शेष सभी प्रसंगों में, शब्दों से अलग लिखे जाएँ। 

जैसे :- मोहन ने कहा, स्त्री को। सर्वनाम में- उसने, मुझसे, हममें, तुमसे, किसपर, आपको।

अपवाद :-

(क). यदि सर्वनाम के साथ दो विभक्तिचिह्न हों, तो उनमें पहला सर्वनाम से मिला हुआ हो और दूसरा अलग लिखा जाए।

जैसे :- उसके लिए, इनमें से।

(ख). संयुक्त क्रियाओं में सभी अंगभूत क्रियाएँ अलग रखी जाए।

जैसे :- आ सकता है, पढ़ा करता है।

2. संयुक्त क्रियाओं में सभी अंगभूत क्रियाएँ अलग रखी जाए।

जैसे :- पढ़ा करता है, आ सकता है।

3. तक, साथ आदि अव्यय अलग लिखे जाए।

जैसे:- आपके साथ, यहाँ तक।

4. पूर्वकालिक प्रत्यय ‘कर’ क्रिया से मिलाकर लिखा जाए।

जैसे :- मिलाकर, रोकर, खाकर, सोकर।

5. द्वन्द्वसमास में पदों के बीच हाइफ़न (-योजकचिह्न) लगाया जाए।

जैसे :- राम-लक्ष्मण, शिव-पार्वती आदि।

6. तत्पुरुष समास में हाइफ़न का प्रयोग केवल वहीं किया जाय, जहाँ उसके बिना भ्रम होने की सम्भावना हो, अन्यथा नहीं।

जैसे :- जैसे- भू-तत्त्व।

7. अब, प्रश्र उठता है कि ‘ये’ और ‘ए’ का प्रयोग कहाँ होना चाहिए। यह प्रश्र न केवल विद्यार्थियों को, बल्कि बड़े-बड़े विद्वानों को भी भ्रममें डालता है।

जहाँ तक उच्चारण का प्रश्र है, दोनों के उच्चारण-भेद इस प्रकार हैं।

जैसे :- ये=य्+ए, श्रुतिरूप, तालव्य अर्द्धस्वर (अन्तःस्थ)+ए, ए=अग्र अर्द्धसंवृत दीर्घ स्वर।

‘ये’ और ‘ए’ का प्रयोग अव्यय, क्रिया तथा शब्दों के बहुवचन बनाने में होता है। ये प्रयोग क्रियाओं के भूतकालिक रूपों में होते हैं। लोग इन्हें कई तरह से लिखते हैं।

जैसे :- आई-आयी, आए-आये, गई-गयी, गए-गये, हुवा-हुए-हुवे इत्यादि।

एक ही क्रिया की दो अक्षरी आज भी चल रही है। इस सम्बन्ध में कुछ आवश्यक नियम बनने चाहिए।

कुछ नियम इस प्रकार स्थिर किये जा सकते हैं।

(क). जिस क्रिया के भूतकालिक पुंलिंग एकवचन रूप में ‘या’ अन्त में आता है, उसके बहुवचन का रूप ‘ये’ और तदनुसार एकवचन स्त्रीलिंग में ‘यी’ और बहुवचन में ‘यीं’ का प्रयोग होना चाहिए।

उदाहरण :- गया-आया’ का स्त्रीलिंग में ‘गयी-गयीं’ होगा, ‘गई’ और ‘आई’ नहीं।

इसी प्रकार, बहुवचन के रूप ‘गये-आये’ होंगे, ‘गए-आए’ नहीं। इसी रीति से अन्य क्रियाओं के रूपों का निर्धारण करना चाहिए।

इसी प्रकार, बहुवचन के रूप ‘गये-आये’ होंगे, ‘गए-आए’ नहीं। इसी रीति से अन्य क्रियाओं के रूपों का निर्धारण करना चाहिए।

(ख). जिस क्रिया के भूतकालिक पुंलिंग एकवचन के अन्त में ‘आ’ आता है उसके पुंलिंग बहुवचन में ‘ए’ होगा और स्त्रीलिंग एकवचन में ‘ई’ तथा बहुवचन में ‘ई’।

उदाहरण :- हुआ’ का स्त्रीलिंग एकवचन ‘हुई’, बहुवचन ‘हुई’, और पुंलिंग बहुवचन ‘हुए’ होगा, ‘हुये-हुवे’, ‘हुयी-हुये’ आदि नहीं।

(ग). दे, ले, पी, कर- इन चार धातुओं को ह्रस्व इकार कर, फिर दीर्घ करने पर और ‘इए’ प्रत्यय लगाने पर उनकी विधि क्रियाएँ इस प्रकार बनती हैं।

उदाहरण :-

  • दे (दि) + ज् + इए = दीजिए
  • ले (लि) + ज् + इए = लीजिए
  • पी (पि) + ज् + इए = पीजिए
  • कर (कि) + ज् + इए = कीजिए

(घ). अव्यय को पृथक् रखने के लिए ‘ए’ का प्रयोग होना चाहिए। जैसे- इसलिए, चाहिए। सम्प्रदान-विभक्ति के ‘लिए’ में भी ‘ए’ का व्यवहार होना चाहिए।

उदाहरण :- जैसे- राम के लिए आम लाओ।

(ङ). विशेषण शब्द का अन्त जैसा हो, वैसा ही ‘ये’ या ‘ए’ का प्रयोग होना चाहिए।

उदाहरण :- ‘नया’ है तो बहुवचन में ‘नये’ और स्त्रीलिंग में नयी, ‘जाता हुआ’ आदि है तो बहुवचन में ‘जाते हुए’ और स्त्रीलिंग में ‘जाती हुई’।

इन नियमों से यह निष्कर्ष निकलता है कि भूतकालिक क्रियाओं में ‘ये’ का और अव्ययों में ‘ए’ का प्रयोग होता है।

विशेषण का रूप अन्तिम वर्ण के अनुरूप ‘ये’ या ‘ए’ का प्रयोग होता है।

विशेषण का रूप अन्तिम वर्ण के अनुरूप ‘ये’ या ‘ए’ होना चाहिए।

अच्छा यह होता है कि दोनों के लिए कोई एक सामान्य नियम बनता। भारत सरकार की वर्तनी समिति ‘ए’ के प्रयोग का समर्थन करती है।

8. संस्कृतमूलक तत्सम शब्दों की वर्तनी में सामान्यत : संस्कृत वाला रूप ही रखा जाए। परन्तु जिन शब्दों के प्रयोग में हिन्दी में हलन्त का चिह्न लुप्त हो चुका है, उनमें हलन्त लगाने की कोशिश न की जाए।

जैसे :- महान, विद्वान, जगत। किन्तु सन्धि या छन्द समझाने की स्थिति हो, तो इन्हें हलन्तरूप में ही रखना होगा।

उदाहरण :- जगत्+नाथ।

9. जहाँ वर्गों के पंचमाक्षर के बाद उसी के वर्ग के शेष चार वर्णों में से कोई वर्ण हो वहाँ अनुस्वार का ही प्रयोग किया जाए।

उदाहरण :- जैसे- वंदना, नंद, नंदन, अंत, गंगा, संपादक आदि।

10. नहीं, मैं, हैं, में इत्यादि के ऊपर लगी मात्राओं को छोड़कर शेष आवश्यक स्थानों पर चन्द्रबिन्दु का प्रयोग करना चाहिए।

उदाहरण :- नहीं तो हंस और हँस तथा अँगना और अंगना का अर्थभेद स्पष्ट नहीं होगा।

11. अरबी-फारसी के वे शब्द जो, हिन्दी के अंग बन चुके हैं और जिनकी विदेशी ध्वनियों का हिन्दी ध्वनियों में रूपान्तर हो चुका है, उन्हें हिन्दी रूप में ही स्वीकार किया जाए।

जैसे :- जरूर, कागज आदि।

जहाँ उनका शुद्ध विदेशी रूप में प्रयोग अभीष्ट हो, वहाँ उनके हिन्दी में प्रचलित रूपों में यथास्थान ‘नुक्ते’ लगाये जाए, ताकि उनका विदेशीपन स्पष्ट रहे।

उदाहरण :- जैसे- राज, नाज।

12. अंग्रेजी के जिन शब्दों में अर्द्ध ‘ओ’ ध्वनि का प्रयोग होता है, उनके शुद्ध रूप का हिन्दी में प्रयोग अभीष्ट होने पर ‘आ’ की मात्रा पर अर्द्धचन्द्र का प्रयोग किया जाए।

उदाहरण :- डॉक्टर, कॉलेज, हॉंस्पिटल।

13. संस्कृत के जिन शब्दों में विसर्ग का प्रयोग होता है, वे यदि तत्सम रूप में प्रयुक्त हों तो विसर्ग का प्रयोग अवश्य किया जाए।

उदाहरण :- जैसे-स्वान्तः सुखाय, दुःख।

यदि उस शब्द के तद्भव में विसर्ग का लोप हो चुका हो, तो उस रूप में विसर्ग के बिना भी काम चल जायेगा।

उदाहरण :- जैसे-दुख, सुख।

14. हिन्दी में ‘ऐ’ (ै) और ‘औ’ (ौ) का प्रयोग दो प्रकार की ध्वनियों को व्यक्त करने के लिए होता है।

पहले प्रकार की ध्वनियाँ ‘है’, ‘और’ आदि में हैं तथा दूसरे प्रकार की ‘गवैया’, ‘कौआ’ आदि में।

इन दोनों ही प्रकार की ध्वनियों को व्यक्त करने के लिए इन्हीं चिह्नों ( ऐ, ौ ; ओ, ौ ) का प्रयोग किया जाय। गवय्या, कव्वा आदि संशोधनों की व्यवस्था ठीक नहीं है।

शुद्ध और अशुद्ध शब्द

नीचे कुछ अशुद्धियों की सूची उनके शुद्ध रूपों के साथ यहाँ दी जा रही है।

अ’, ‘आ’ संबंधी अशुद्धियाँ

अशुद्धशुद्ध
अहारआहार
अत्याधिकअत्यधिक
आधीनअधीन
अजमायशआजमाइश
सप्ताहिकसाप्ताहिक
अवश्यकआवश्यक
नराजनाराज
अलोचनाआलोचना
अजादीआजादी
आधीनअधीन
चहिएचाहिए

‘इ’, ‘ई’ संबंधी अशुद्धियाँ

अशुद्ध शुद्ध
तिथीतिथि
दिवारदीवार
बिमारीबीमारी
श्रीमतिश्रीमती
क्योंकीक्योंकि
कवियत्रीकवयित्री
दिवालीदीवाली
अतिथीअतिथि
दिपावलीदीपावली
पत्निपत्नी
मुनीमुनि
परिक्षापरीक्षा
रचियतारचयिता
उन्नतीउन्नति
कोटीकोटि
कालीदासकालिदास

‘उ’, ‘ऊ’ संबंधी अशुद्धियाँ

अशुद्ध शुद्ध
हिंदुहिंदू
पशूपशु
रुमालरूमाल
रूपयारुपया
रूईरुई
तुफानतूफान
पुज्यनीयपूजनीय
प्रभूप्रभु
साधूसाधु
गेहुँगेहूँ
वधुवधू

‘ए‘ऋ’, ‘र’ संबंधी अशुद्धियाँ

अशुद्ध शुद्ध
श्रगाल/श्रृगालशृगाल
ग्रहस्थीगृहस्थी
उरिणउऋण
आदरितआदृत
रिषिऋषि
प्रथक्पृथक्
प्रथ्वीपृथ्वी
घ्रणाघृणा
ग्रहिणीगृहिणी
रितुऋतु
व्रक्षवृक्ष
श्रृंगार/श्रंगारशृंगार

‘ए’, ‘ऐ’ संबंधी अशुद्धियाँ

अशुद्ध शुद्ध
सैनासेना
चाहियेचाहिए
एनकऐनक
नैननयन
सैनासेना
एश्वर्यऐश्वर्य

‘ओ’, ‘औ’ संबंधी अशुद्धियाँ

अशुद्ध शुद्ध
त्यौहारत्योहार
भोगोलिकभौगोलिक
बोद्धिकबौद्धिक
परलोकिकपारलौकिक
रौशनीरोशनी
पोधापौधा
चुनाउचुनाव
होलेहौले

र’ संबंधी अशुद्धियाँ

अशुद्ध शुद्ध
आर्दशआदर्श
आर्शीवादआशीर्वाद
स्त्रोतस्रोत
क्रपाकृपा
गर्मगरम
नर्मीनरमी
कार्यकर्मकार्यक्रम

‘श’, ‘ष’, ‘स’ संबंधी अशुद्धियाँ

अशुद्ध शुद्ध
प्रशादप्रसाद
कश्टकष्ट
सुशमासुषमा
अमावश्याअमावस्या
दुसाशनदुशासन
प्रसंशाप्रशंसा
नमश्कारनमस्कार
विषेशणविशेषण

अन्य अशुद्धियाँ

अशुद्ध शुद्ध
विधालयविद्यालय
व्रंदावनवृंदावन
सकूलस्कूल
सप्तासप्ताह
समान (वस्तु)सामान
दुरदशादुर्दशा
परिच्छापरीक्षा
बिमारबीमार
आस्मानआसमान
अकाशआकाश
अतऐवअतएव
रक्शारक्षा
रिक्सारिक्शा
गयीगई
ग्रहकार्यगृहकार्य
छमाक्षमा
जायेंगेजाएँगे
जोत्सनाज्योत्स्ना
सुरगस्वर्ग
सेनिकसैनिक

‘अनुस्वार’, ‘अनुनासिक’ संबंधी अशुद्धियाँ

अशुद्ध शुद्ध
महंगीमहँगी
बांसबाँस
अंगनाअँगना
कंगनाकँगना
उंचाऊँचा
जाऊंगाजाऊँगा
दुंगादूँगा
दांतदाँत
कहांकहाँ
अँगुलीअंगुली
सांपसाँप
बांसुरीबाँसुरी
चांदनीचाँदनी
गांधीगाँधी
हंसीहँसी
महंगामहँगा
मुंहमुँह
उंगलीऊँगली
जहांजहाँ
डांटडाँट
कांचकाँच
छटांकछटाँक, छटाक
पांचवापाँचवाँ
शिघ्रशीघ्र
गुंगागूँगा
पहुंचापहुँचा
गांधीजीगाँधीजी
सूंडसूँड
बांसुरीबाँसुरी

वर्ण-सम्बन्धी अशुद्धियाँ

अशुद्ध शुद्ध
कलसकलश
कालीदासकालिदास
कैलाशकैलास
कंकनकंकण
आर्दआर्द्र
इकठ्ठाइकट्ठा
उपरोक्तउपर्युक्त
उज्वलउज्ज्वल
उपलक्षउपलक्ष्य
उन्मीलीतउन्मीलित
अनिष्ठअनिष्ट
अध्यनअध्ययन
अद्वितियअद्वितीय
अहिल्याअहल्या
अगामीआगामी
अन्तर्ध्यानअन्तर्धान
अमावश्याअमावास्या
आधीनअधीन
अकांछाआकांक्षा
अनाधिकारअनधिकार
अनुशरणअनुसरण
अभ्यस्थअभ्यस्त
अस्थानस्थान
अनुकुलअनुकूल

प्रत्यय-सम्बन्धी अशुद्धियाँ

अशुद्ध शुद्ध
धैर्यताधैर्य
अभ्यन्तरिकआभ्यन्तरिक
असहनीयअसह्य
इतिहासिकऐतिहासिक
उत्तरदाईउत्तरदायी
ऐक्यताऐक्य
गुणिगुणी
चारुताईचारुता
तत्वतत्त्व
तत्कालिकतात्कालिक
दारिद्रतादरिद्रता
द्विवार्षिकद्वैवार्षिक
नैपुण्यतानिपुणता
अनुसंगिकआनुषंगिक
अध्यात्मकआध्यात्मिक
एकत्रितएकत्र
गोपितगुप्त
चातुर्यताचातुर्य
त्रिवार्षिकत्रैवार्षिक
देहिकदैहिक
दाइत्वदायित्व
प्राप्तीप्राप्ति
पूज्यास्पदपूजास्पद
पुष्टीपुष्टि

लिंग प्रत्यय-सम्बन्धी अशुद्धियाँ

अशुद्ध शुद्ध
गोपिनीगोपी
नारिनारी
श्रीमान् रानीश्रीमती रानी
पिशाचिनीपिशाची
भुजंगिनीभुजंगी
सुलोचनीसुलोचना
अनाथिनीअनाथा
गायकीगायिका
दिगम्बरीदिगम्बरा

सन्धि-सम्बन्धी अशुद्धियाँ

अशुद्ध अशुद्ध
अनाधिकारीअनधिकारी
अध्यनअध्ययन
आर्शिवादआशीर्वाद
इतिपूर्वइतःपूर्व
जगरनाथजगत्राथ
तरुछायातरुच्छाया
दुरावस्थादुरवस्था
नभमंडलनभोमंडल
निरवाननिर्वाण
निसादनिषाद
निर्पेक्षनिरपेक्ष
पयोपानपयःपान
पुरष्कारपुरस्कार
अधगतिअधोगति
अत्योक्तिअत्युक्ति
अत्याधिकअत्यधिक
अद्यपिअद्यापि

समास-सम्बन्धी अशुद्धियाँ

अशुद्ध शुद्ध
निर्दोषीनिर्दोष
निर्दयीनिर्दय
पिताभक्तिपितृभक्ति
भ्रातागणभ्रातृगण
महात्मागणमहात्मगण
राजापथराजपथ
वक्तागणवक्तृगण
शशीभूषणशशिभूषण
सतोगुणसत्त्वगुण
अहोरात्रिअहोरात्र
आत्मापुरुषआत्मपुरुष
अष्टवक्रअष्टावक्र
एकताराइकतारा
एकलौताइकलौता
दुरात्मागणदुरात्मगण
अहोरात्रिअहोरात्र
आत्मापुरुषआत्मपुरुष
अष्टवक्रअष्टावक्र
एकताराइकतारा
एकलौताइकलौता
दुरात्मागणदुरात्मगण
वक्तागणवक्तृगण
शशीभूषणशशिभूषण
सतोगुणसत्त्वगुण
अहोरात्रिअहोरात्र
आत्मापुरुषआत्मपुरुष
अष्टवक्रअष्टावक्र
एकताराइकतारा
एकलौताइकलौता
दुरात्मागणदुरात्मगण

हलन्त-सम्बन्धी अशुद्धियाँ

अशुद्ध शुद्ध
भाग्यमानभाग्यवान्
विद्वानविद्वान्
धनमानधनवान्
बुद्धिवानबुद्धिमान्
भगमानभगवान्
सतचितसच्चित्
साक्षातसाक्षात्
श्रीमानश्रीमान्
विधिवतविधिवत्
बुद्धिवानबुद्धिमान्

शब्दों की सामान्य अशुद्धियां

हिंदी व्याकरण के सामान्य नियमों की सही-सही जानकारी नही होने के कारण विद्यार्थियों से बोलने और लिखने में कभी कभी गलतियां हो जाया करती हैं।

शुद्ध भाषा के प्रयोग के लिए वर्णों का शुद्ध उच्चारण, शब्दों के शुद्ध रूप और वाक्यों के शुद्ध रूप को जानना आवश्यक हैं।

भाषा संबंधी गलतियों के प्रकार

विद्यार्थीयों से मुख्यतः दो तरह की गलतियां होती हैं:

  • शब्द-संबंधी
  • वाक्य-संबंधी

शब्द-संबंधी अशुद्धियों को दूर करने के लिए छात्रों को श्रुतिलिपि का अभ्यास करना चाहिए।

कुछ अशुद्ध शब्द और उनके शुद्ध रूपों की सूची नीचे दी जा रही है।

अशुद्ध शब्दशुद्ध शब्द
अनुकुलअनुकूल
अध्यनअध्ययन
अस्थानस्थान
अद्वितियअद्वितीय
अरमुदअमरूद
ईर्षाईर्ष्या
उन्नतीउन्नति
नमष्कारनमस्कार
नबावनवाब
नछत्रनक्षत्र
नारिनारी‌‌
नीरोगनिरोग
राज्यमहलराजमहल
पुष्टीपुष्टि
प्रंतुपरंतु
पूष्पपुष्प
पूण्यपुण्य
छीः छीःछी छी
उपरऊपर
उज्वलउज्ज्वल
उत्कृष्ठउत्कृष्ट
कलसकलश
कल्यानकल्याण
गनितगणित
गृहस्थ्यगृहस्थ
चिन्हचिह्न
छमाक्षमा
ज्येष्टज्येष्ठ
यथेष्ठयथेष्ट
शत्रुहनशत्रुघ्न
रसायणरसायन
रामायनरामायण
लछिमनलक्ष्मण
लिक्खालिखा
लछनलक्षण
बनावासवनवास
छःछह
पृष्टपृष्ठ
प्राप्तीप्राप्ति
पत्निपत्नी
प्रसंशाप्रशंसा
प्रनामप्रणाम
पमेश्वरपरमेश्वर
परिक्षापरीक्षा
पुज्यपूज्य
पुरष्कारपुरस्कार
प्रशादप्रसाद
प्रतिकुलप्रतिकूल
प्रानप्राण
परस्थितिपरिस्थिति
पिचासपिशाच
ब्रम्हब्रह्म
बुढाबूढ़ा
ब्राम्हनब्राह्मण
भष्मभस्म
मट्टीमिट्टी
मैथलीशरणमैथिलीशरण
दांतदाँत
हिंदुहिंदू
हसनाहंसना
हिंदूस्तानहिंदुस्तान
मैत्रतामित्रता, मैत्री
ऐक्यताएकता, ऐक्य
धैर्यताधीरता, धैर्य
मधुर्यतामधुर, माधुर्य
पैत्रिकपैतृक
सकुशलपूर्वककुशलतापूर्वक, सकुशल
उपरोक्तउपर्युक्त
उपरीलिखितउपरिलिखित
निरसनीरस
सन्याससंन्यास
मंत्रीमंडलमंत्रिमंडल
योगीराजयोगिराज
भाग्यमानभाग्यवान्
विद्वानविद्वान्
व्यावहारव्यवहार
धनमानधनवान्
बिठायाबैठाया
पहिलेपहले
वीनावीणा
वानीवाणी
वास्पवाष्प
सप्ताहिकसाप्ताहिक
सन्मानसम्मान
सिंदुरसिंदूर
सुर्यसूर्य
सामुद्रीकसामुद्रिक
साशनशासन
सृष्टीसृष्टि
स्मशानश्मशान
सम्राज्यसाम्राज्य
संसारिकसांसारिक
समीतीसमिति
सूचिपत्रसूचीपत्र
स्वास्थस्वास्थ्य
स्मरनस्मरण
शृंगारश्रृंगार
शक्तीशक्ति
षष्टषष्ठ
बुद्धिवानबुद्धिमान्
भगमानभगवान्
घनिस्टघनिष्ठ
आंखआँख
उंचाऊँचा
पांचवापांचवां
शिघ्रशीघ्र
गुंगागूंगा
पहुंचापहुँच
सुंडसूंड
महंगामहँगा
मुंहमुँह
उंगलीऊंगली
जहांजहाँ
भिजवायाभेजवाया
पछितानापछताना

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