भाषा की परिभाषा, प्रकार एवं भारत में बोली जाने वाली भाषाएँ

इस पेज पर आप भाषा की परिभाषा, प्रकार एवं भारत में बोली जाने वाली भाषाएँ की समस्त जानकारी पढ़ने वाले हैं तो पोस्ट को पूरा जरूर पढ़िए।

पिछले पेज पर हमने वर्णमाला की जानकारी शेयर की हैं तो उस पोस्ट को भी पढ़े।

चलिए आज हम भाषा की परिभाषा और प्रकारों की जानकारी को पढ़ते और समझते हैं।

भाषा की परिभाषा

जिसे बोला जाता हैं उसे भाषा कहते हैं। भाषा शब्द संस्कृत के ‘भाष्’ धातु से बना हैं जिसका अर्थ बोलना या कहना होता हैं।

भाषा हमारे मुख से उच्चारित होने वाले शब्दों और वाक्यों आदि का वह समूह हैं जिनके द्वारा हम अपने मन की बात किसी दूसरे व्यक्ति से बता सकते हैं।

जैसे :- बोली, जबान, वाणी विशेष।

भाषा को प्राचीन काल से विभिन्न लेखकों द्वारा परिभाषित करने की कोशिश की जाती रही हैं। भाषा की कुछ मुख्य परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं।

(1). प्लेटो के अनुसार, विचार और भाषा में थोड़ा ही अंतर हैं। विचार आत्मा की मूक या अध्वन्यात्मक बातचीत हैं और वही शब्द जब ध्वन्यात्मक होकर होठों पर प्रकट होती हैं तो उसे भाषा की संज्ञा देते हैं।

(2). स्वीट के अनुसार, ध्वन्यात्मक शब्दों द्वारा विचारों को प्रकट करना ही भाषा हैं।

(3). वेन्द्रीय के अनुसार भाषा की परिभाषा, भाषा एक तरह का चिह्न है। चिह्न से आशय उन प्रतीकों से है जिनके द्वारा मानव अपना विचार दूसरों के समक्ष प्रकट करता है। ये प्रतीक कई प्रकार के होते हैं जैसे नेत्रग्राह्य, श्रोत्र ग्राह्य और स्पर्श ग्राह्य। वस्तुतः भाषा की दृष्टि से श्रोत्रग्राह्य प्रतीक ही सर्वश्रेष्ठ हैं।

(4). ब्लाक तथा ट्रेगर के अनुसार, भाषा यादृच्छिक भाष् प्रतिकों का तन्त्र है जिसके द्वारा एक सामाजिक समूह सहयोग करता हैं।

(5). स्त्रुत्वा के अनुसार, भाषा यादृच्छिक भाष् प्रतीकों का तन्त्र है जिसके द्वारा एक सामाजिक समूह के सदस्य सहयोग एवं समृपर्क करते हैं।

(6). इनसाइक्लोपीडिया ब्रिटैनिका के अनुसार भाषा की परिभाषा, भाषा को यादृच्छिक भाष् प्रतिकों का तन्त्र है जिसके द्वारा मानव प्राणि एक सामाजिक समूह के सदस्य और सांस्कृतिक साझीदार के रूप में एक सामाजिक समूह के सदस्य संपर्क एवं सम्प्रेषण करते हैं।

(7). ए. एच. गार्डिबर के अनुसार, विचारों की अभिव्यक्ति के लिए जिन व्यक्त एवं स्पष्ट भ्वनि-संकेतों का व्यवहार किया जाता है, उनके समूह को भाषा कहते हैं।

बोली, भाषा, विभाषा और राजभाषा

बोली, भाषा, विभाषा और राजभाषा का अन्तर बता पाना कठिन हैं। क्योंकि इसमें प्रमुख अन्तर व्यवहार-क्षेत्र के विस्तार पर निर्भर हैं। हमारे समाज एक ही भाषा के कई रूप दिखाई देते हैं। मुख्य रूप से भाषा के इन रूपों को हम इस प्रकार समझते हैं।

(1). बोली

  • बोली भाषा की छोटी इकाई हैं।
  • इसका सम्बन्ध ग्राम या मण्डल अर्थात सीमित क्षेत्र से होता हैं।
  • बोली मुख्य रूप से बोलचाल की भाषा हैं।
  • इसका रूप कुछ-कुछ दूरी पर बदलता जाता हैं।
  • बोली में लिपिबद्ध न होने के कारण इसमें साहित्यिक रचनाओं का अभाव रहता हैं।
  • व्याकरणिक दृष्टि से भी इसमें विसंगतियाँ पायी जाती हैं।
  • इसमें प्रधानता व्यक्तिगत बोलचाल के माध्यम की रहती है और देशज शब्दों तथा घरेलू शब्दावली का बाहुल्य होता हैं।

(2). भाषा

  • भाषा, या परिनिष्ठित भाषा अथवा आदर्श भाषा, विभाषा की विकसित स्थिति हैं।
  • भाषा को राष्ट्र-भाषा या टकसाली-भाषा भी कहा जाता हैं।

(3). विभाषा

  • विभाषा का क्षेत्र बोली की अपेक्षा विस्तृत होता हैं।
  • विभाषा एक प्रान्त या उप प्रान्त में प्रचलित होती हैं।
  • विभाषा में साहित्यिक रचनाएँ मिल सकती हैं।
  • एक विभाषा में स्थानीय भेदों के आधार पर कई बोलियाँ प्रचलित रहती हैं।

(4). राजभाषा

विभिन्न विभाषाओं में से कोई एक विभाषा अपने गुण-गौरव, साहित्यिक अभिवृद्धि, जन-सामान्य में अधिक प्रचलन आदि के आधार पर राजकार्य के लिए चुन ली जाती है और उसे राजभाषा के रूप में या राष्ट्रभाषा घोषित कर दिया जाता हैं।

भाषा के प्रकार

हमारे जीवन के विभिन्न व्यवहारों के अनुरूप भाषा प्रयोजनों की तलाश हमारे जीवन की अनिवार्यता हैं।

भाषा का कारण यह हैं कि भाषाओं को सम्प्रेषण प्रकार के कई स्तरों पर रखा गया और कई सन्दर्भों में पूरी तरह प्रयुक्ति सापेक्ष होता गया। प्रयुक्ति और प्रयोजन से रहित भाषा अब भाषा ही नहीं रह गई हैं।

भाषा की पहचान यह नहीं हैं की उसमें केवल कविताओं और कहानियों का जिक्र कैसे हुआ हैं बल्कि भाषा की व्यापकतर सम्प्रेषणीयता का एक अनिवार्य प्रतिफल यह भी है कि उसमें सामाजिक सन्दर्भों और नये प्रयोजनों को साकार करने की कितनी सम्भावना हैं।

दुनिया भर की भाषाओं में यह प्रयोजनीयता धीरे-धीरे विकसित हुई हैं और रोजी-रोटी का माध्यम बनने की विशिष्टताओं के साथ भाषा का नया आयाम हमारे सामने आया हैं।

जैसे :- बोलचाल की भाषा, मानक भाषा, सम्पर्क भाषा, राजभाषा, राष्ट्रभाषा, वर्गाभाषा, तकनीकी भाषा, साहित्यिक भाषा, आदि।

1. बोलचाल की भाषा

बोलचाल की भाषा को समझने के लिए सबसे पहले ‘बोली’ को समझना जरूरी हैं। बोली उन सभी लोगों की बोलचाल की भाषा का वह मिश्रित रूप है जिनकी भाषा में पारस्परिक भेद को अनुभव नहीं किया जाता हैं।

विश्व में जब किसी जन-समूह का महत्व किसी भी कारण से बढ़ जाता है तो उसकी बोलचाल की बोली ‘भाषा’ में बदल जाती हैं। अर्थात ‘भाषा’ की अपेक्षा ‘बोली’ का क्षेत्र उसके बोलने वालों की संख्या और उसका महत्व कम होता हैं।

एक भाषा की बहुत सी बोलियाँ होती हैं क्योंकि भाषा का क्षेत्र विस्तृत होता हैं। जब कई व्यक्ति-बोलियों में पारस्परिक सम्पर्क होता है, तब बोल चाल की भाषा का प्रसार होता हैं।

आपस में मिलती-जुलती बोली या उपभाषाओं में हुए आपसी व्यवहार से बोलचाल की भाषा को विस्तार मिलता हैं। इसे ही ‘सामान्य भाषा’ के नाम से भी जाना जाता हैं।

2. मानक भाषा

भाषा के स्थिर तथा सुनिश्चित रूप को मानक भाषा कहते हैं।

भाषा विज्ञान कोश के अनुसार “किसी भाषा की उस विभाषा को परिनिष्ठित भाषा कहते हैं जो अन्य विभाषाओं पर अपनी साहित्यिक एवं सांस्कृतिक श्रेष्ठता स्थापित कर लेती है तथा उन विभाषाओं को बोलने वाले भी उसे सर्वाधिक उपयुक्त समझने लगते हैं।”

मानक भाषा शिक्षित वर्ग की शिक्षा, पत्राचार एवं व्यवहार की भाषा होती है। इसके व्याकरण तथा उच्चारण की प्रक्रिया लगभग निश्चित होती हैं।

मानक भाषा को टकसाली भाषा भी कहते हैं। इसी भाषा में पाठ्य-पुस्तकों का प्रकाशन होता हैं। हिन्दी, अंग्रेजी, फ्रेंच, संस्कृत तथा ग्रीक इत्यादि मानक भाषाएँ हैं।

किसी भाषा के मानक रूप का अर्थ है, उस भाषा का वह रूप जो उच्चारण, रूप-रचना, वाक्य-रचना, शब्द और शब्द-रचना, अर्थ, मुहावरे, लोकोक्तियाँ, प्रयोग तथा लेखन आदि की दृष्टि से उस भाषा के सभी नहीं तो अधिकांश सुशिक्षित लोगों द्वारा शुद्ध माना जाता हैं।

मानकता भाषा अनेकता में एकता की खोज हैं। अर्थात यदि किसी लेखन या भाषिक इकाई में विकल्प न हो तब तो वही मानक होगा। किन्तु यदि विकल्प हो तो अपवादों की बात छोड़ दें तो कोई एक मानक होता हैं।

जिसका प्रयोग उस भाषा के अधिकांश शिष्ट लोग करते हैं। किसी भाषा का मानक रूप ही प्रतिष्ठित माना जाता है। उस भाषा के लगभग समूचे क्षेत्र में मानक भाषा का प्रयोग होता हैं।

‘मानक भाषा’ एक प्रकार से सामाजिक प्रतिष्ठा का प्रतीक होती है। उसका सम्बन्ध भाषा की संरचना से न होकर सामाजिक स्वीकृति से होता हैं।

मानक भाषा को इस रूप में भी समझा जा सकता है कि समाज में एक वर्ग मानक होता है जो अपेक्षाकृत अधिक महत्त्वपूर्ण होता है तथा समाज में उसी का बोलना-लिखना, उसी का खाना-पीना, उसी के रीति रिवाज़ अनुकरणीय माने जाते हैं। मानक भाषा मूलत: उसी वर्ग की भाषा होती हैं।

अंग्रेजी में मानक भाषा को Standard Language (स्टैंडर्ड लैंग्वेज) कहा जाता हैं।

3. सम्पर्क भाषा

अनेक भाषाओं के अस्तित्व के बावजूद जिस विशिष्ट भाषा के माध्यम से व्यक्ति-व्यक्ति, राज्य-राज्य तथा देश-विदेश के बीच सम्पर्क स्थापित किया जाता है उसे सम्पर्क भाषा कहाँ जाता हैं।

एक ही भाषा परिपूरक भाषा और सम्पर्क भाषा दोनों हो सकती है। आज भारत में सम्पर्क भाषा के तौर पर हिन्दी प्रतिष्ठित होती जा रही हैं जबकि अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर अंग्रेजी संपर्क भाषा के रूप में प्रतिष्ठित हो गई हैं।

सम्पर्क भाषा के रूप में जब भी किसी भाषा को देश की राष्ट्रभाषा अथवा राजभाषा के पद पर आसीन किया जाता है तब उस भाषा से कुछ अपेक्षाएँ भी रखी जाती हैं।

जब कोई भाषा ‘सम्पर्क भाषा’ के रूप में उभरती है तब राष्ट्रीयता या राष्ट्रता से प्रेरित होकर वह प्रभुतासम्पन्न भाषा बन जाती है। यह तो आवश्यक नहीं कि मातृभाषा के रूप में इसके बोलने वालों की संख्या अधिक हो पर द्वितीय भाषा के रूप में इसके बोलने वाले बहुसंख्यक होते हैं।

4. राजभाषा

जिस भाषा में सरकार के कार्यों का निष्पादन होता है उसे राजभाषा कहते हैं।

कुछ लोग राष्ट्रभाषा और राजभाषा में अन्तर नहीं करते और दोनों को समानार्थी मानते हैं। लेकिन दोनों के अर्थ भिन्न-भिन्न हैं। राष्ट्रभाषा सारे राष्ट्र के लोगों की सम्पर्क भाषा होती है जबकि राजभाषा केवल सरकार के कामकाज की भाषा है।

भारत के संविधान के अनुसार हिन्दी संघ सरकार की राजभाषा है। राज्य सरकार की अपनी-अपनी राज्य भाषाएँ हैं।

राजभाषा जनता और सरकार के बीच एक सेतु का कार्य करती है। किसी भी स्वतन्त्र राष्ट्र की उसकी अपनी स्थानीय राजभाषा उसके लिए राष्ट्रीय गौरव और स्वाभिमान का प्रतीक होती है।

विश्व के अधिकांश राष्ट्रों की अपनी स्थानीय भाषाएँ राजभाषा हैं। आज हिन्दी हमारी राजभाषा है।

अंग्रेजी में राजभाषा को Official Language (ऑफिसियल लैंग्वेज) कहा जाता हैं।

5. राष्ट्रभाषा

देश के विभिन्न भाषा भाषियों में पारस्परिक विचार-विनिमय की भाषा को राष्ट्रभाषा कहते हैं।

राष्ट्रभाषा को देश के अधिकतर नागरिक समझते हैं पढ़ते हैं या बोलते हैं।

किसी भी देश की राष्ट्रभाषा उस देश के नागरिकों के लिए गौरव, एकता, अखण्डता और अस्मिता का प्रतीक होती है।

महात्मा गांधी जी ने राष्ट्रभाषा को राष्ट्र की आत्मा की संज्ञा दी है। एक भाषा कई देशों की राष्ट्रभाषा भी हो सकती है।

जैसे अंग्रेजी आज अमेरिका, इंग्लैण्ड तथा कनाडा इत्यादि कई देशों की राष्ट्रभाषा है।

संविधान में हिन्दी को राष्ट्रभाषा का दर्जा तो नहीं दिया गया है लेकिन इसकी व्यापकता को देखते हुए इसे राष्ट्रभाषा कह सकते हैं।

दूसरे शब्दों में राजभाषा के रूप में हिन्दी, अंग्रेजी की तरह न केवल प्रशासनिक प्रयोजनों की भाषा है, बल्कि उसकी भूमिका राष्ट्रभाषा के रूप में भी है।

वह हमारी सामाजिक-सांस्कृतिक अस्मिता की भाषा है।

महात्मा गांधी जी के अनुसार किसी देश की राष्ट्रभाषा वही हो सकती है जो सरकारी कर्मचारियों के लिए सहज और सुगम हो; जिसको बोलने वाले बहुसंख्यक हों और जो पूरे देश के लिए सहज रूप में उपलब्ध हो।

उनके अनुसार भारत जैसे बहुभाषी देश में हिन्दी ही राष्ट्रभाषा के निर्धारित अभिलक्षणों से युक्त है।

उपर्युक्त सभी भाषाएँ एक-दूसरे की पूरक हैं। इसलिए यह प्रश्न निरर्थक है कि राजभाषा, राष्ट्रभाषा, सम्पर्क भाषा आदि में से कौन सर्वाधिक महत्त्व का है, आवश्यकता है हिन्दी को अधिक व्यवहार में लाने की।

अंग्रेजी में राष्ट्रभाषा को National Language (नेशनल लैंग्वेज) कहा जाता हैं।

भारत में बोली जाने वाली भाषाएँ

भारतीय संविधान द्वारा मान्यता प्राप्त भाषाओं की संख्या 22 हैं।

1950 में भारतीय संविधान की स्थापना के समय में, मान्यता प्राप्त भाषाओं की संख्या 14 थी।

आठवीं अनुसूची में तदोपरान्त जोड़ी गई भाषाएँ → सिन्धी, कोंकणी, नेपाली, मणिपुरी, मैथिली, डोगरी, बोडो और सन्थाली सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यांवयन मन्त्रालय की।

2011 की रिपोर्ट के अनुसार, पहचान योग्य मातृभाषाओं की संख्या 234 हैं।

शास्त्रीय भाषा का दर्जा पाने वाली पहली भाषा तमिल हैं।

शास्त्रीय भाषा का दर्जा पाने वाली अन्य भाषाएँ → संस्कृत, कन्नड़, मलयालम, तेलुगू और उड़िया नागालैंड की राजभाषा हैं। अंग्रेजी, जम्मू और कश्मीर की राजभाषा उर्दू, गोवा की राजभाषा कोंकणी हैं।

भारत के संविधान द्वारा निर्धारित सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय की राजभाषा अंग्रेजी हैं।

लक्षद्वीप की प्रमुख भाषाएँ जेसरी (द्वीप भाषा) और महल सामान्यतः पुडुचेरी (पूर्व में पांडिचेरी) में बोली जाने वाली विदेशी भाषा फ्रेंच ‘पूर्व की इतालवी’ कही जाने वाली भारतीय भाषा तेलुगु हैं।

भारत का एकमात्र राज्य जहाँ संस्कृत राजभाषा मे रूप में मान्य हैं उत्तराखण्ड अण्डमान और निकोबार द्वीप समूह के प्रमुख भाषाएँ → हिन्दी, निकोबारी, बंगाली, तमिल, मलयालम और तेलुगू। अंग्रेजी मान्यता प्राप्त भाषाओं की सूची में नहीं हैं।

भारत के राज्यबोली जाने वाली भाषाएँ
मध्य प्रदेशहिन्दी, मराठी, उर्दू
जम्मू एवं कश्मीरकश्मीरी, डोगरी, हिन्दी
हिमाचल प्रदेशहिन्दी, पंजाबी, नेपाली
हरियाणाहिन्दी, पंजाबी, उर्दू
पंजाबपंजाबी, हिन्दी
उत्तराखण्डहिन्दी, उर्दू, पंजाबी, नेपाली
दिल्लीहिन्दी, पंजाबी, उर्दू, बंगाली
उत्तर प्रदेशहिन्दी, उर्दू
राजस्थानहिन्दी, पंजाबी, उर्दू
पश्चिम बंगालबंगाली, हिन्दी, संताली, उर्दू, नेपाली
छत्तीसगढ़छत्तीसगढ़ी, हिन्दी
बिहारहिन्दी, मैथिली, उर्दू
झारखण्डहिन्दी, संताली, बंगाली, उर्दू
सिक्किमनेपाली, हिन्दी, बंगाली
अरुणाचल प्रदेशबंगाली, नेपाली, हिन्दी, असमिया
नागालैण्डबंगाली, हिन्दी, नेपाली
मिजोरमबंगाली, हिन्दी, नेपाली
असमअसमिया, बंगाली, हिन्दी, बोडो, नेपाली
त्रिपुराबंगाली, हिन्दी
मेघालयबंगाली, हिन्दी, नेपाली
मणिपुरमणिपुरी, नेपाली, हिन्दी, बंगाली
ओडिशाओड़िया, हिन्दी, तेलुगु, संताली
महाराष्ट्रमराठी, हिन्दी, उर्दू, गुजराती
गुजरातगुजराती, हिन्दी, सिन्धी, मराठी, उर्दू
कर्नाटककन्नड़, उर्दू, तेलुगू, मराठी, तमिल
दमन एवं दीवगुजराती, हिन्दी, मराठी
दादरा और नगर हवेलीगुजराती, हिन्दी, कोंकणी, मराठी
गोवाकोंकणी, मराठी, हिन्दी, कन्नड़
आन्ध्र प्रदेशतेलुगु, उर्दू, हिन्दी, तमिल
केरलमलयालम
लक्षद्वीपमलयालम
तमिलनाडुतमिल, तेलुगू, कन्नड़, उर्दू‌
पुडुचेरीतमिल, तेलुगू, कन्नड़, उर्दू
अण्डमान और निकोबार द्वीप समूहबंगाली, हिन्दी, तमिल, तेलुगू, मलयालम
जरूर पढ़िए :
श्रृंगार रसभयानक रसशांत रस
हास्य रसरौद्र रसवात्सल्य रस
करुण रसवीभत्स रसभक्ति रस
वीर रसअद्भुत रसविराम चिन्ह

उम्मीद हैं आपको भाषा की परिभाषा, प्रकार एवं भारत में बोली जाने वाली भाषाएँ की समस्त जानकारी पसंद आयी होगी।

यदि आपको भाषा की परिभाषा वाली यह पोस्ट पसंद आयी हो तो दोस्तों के साथ जरूर शेयर करें।

Leave a Comment

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.