वाच्य की परिभाषा, प्रकार, प्रयोग और उदाहरण

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चलिए हम वाच्य की परिभाषा, प्रकार, प्रयोग और उदाहरण से संबंधित जानकारी पढ़ते और समझते हैं।

वाच्य किसे कहते हैं

क्रिया के जिस रूप से यह पता चले कि वाक्य में कर्ता, कर्म या भाव किसकी प्रधानता है उसे वाच्य कहते हैं। वाच्य का संबंध वाक्य के क्रिया से होता हैं।

वाच्य के प्रकार

वाच्य के मुख्यतः तीन प्रकार होते हैं।

  1. कर्तृवाच्य
  2. कर्मवाच्य
  3. भाववाच्य

1. कर्तृवाच्य

क्रिया के जिस रूप से वाक्य में कर्ता के उद्देश्य का पता चलता है उसे कर्तृवाच्य कहते हैं। इसमें लिंग और वचन कर्ता के अनुसार होते है।

जैसे :-

  • बच्चा खेलता है।
  • घोडा भागता है।

2. कर्मवाच्य

क्रिया के जिस रूप से वाक्य में कर्ता के कर्म का पता चलता है उसे कर्मवाच्य कहते हैं। इसमें लिंग, वचन और पुरुष कर्म के अनुसार होती है।

जैसे :-

  • पुस्तक मेरे द्वारा पढ़ी गई।
  • बच्चों के द्वारा निबन्ध पढ़े गये।
  • छात्रों द्वारा नाटक प्रस्तुत किया जा रहा है।

3. भाववाच्य

क्रिया के जिस रूप से कर्ता के भाव का बोध होता है उसे भववाच्य कहते हैं। इसमें कर्ता तथा कर्म की प्रधानता नहीं होती है और इसमें अकर्मक क्रियाओं का प्रयोग किया जाता है।

वाच्य का प्रयोग

वाक्य में क्रिया का लिंग, वचन एवं पुरुष कभी कर्ता के अनुसार होता है, तो कभी कर्म के अनुसार। लेकिन कभी-कभी वाक्य की क्रिया कर्ता तथा कर्म के अनुसार न होकर एकवचन, पुलिंग तथा अन्यपुरुष के अनुसार होती है। इसे ही प्रयोग कहते है।

प्रयोग के प्रकार

प्रयोग तीन प्रकार के होते हैं

  1. कर्तरि प्रयोग
  2. कर्मणि प्रयोग
  3. भावे प्रयोग

1. कर्तरि प्रयोग

जब वाक्य की क्रिया के लिंग, वचन और पुरुष कर्ता के अनुसार हों तब कर्तरि प्रयोग कहलाता है।

जैसे :- मोहन अच्छी पुस्तकें पढता है।

2. कर्मणि प्रयोग

जब वाक्य की क्रिया के लिंग, वचन और पुरुष कर्म के अनुसार हों तब कर्मणि प्रयोग कहलाता है।

जैसे :- सीता ने पत्र लिखा।

3. भावे प्रयोग

जब वाक्य की क्रिया के लिंग, वचन और पुरुष एकवचन, पुंलिंग तथा अन्य पुरुष हों तब भावे प्रयोग कहलाता है।

जैसे :-

  • मुझसे चला नहीं जाता।
  • सीता से रोया नहीं जाता।
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