चम्पू काव्य की परिभाषा, इतिहास और उदाहरण

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चलिए आज हम चंपू काव्य की समस्त जानाकारी को पढ़ते और समझते हैं।

चम्पू काव्य किसे कहते हैं

चम्पू काव्य श्रव्य काव्य का एक प्रकार है। संक्षिप्त में गद्य और पद्य काव्य के मिश्रण को चम्पू काव्य कहते हैं।

हिन्दी में यशोधरा को चम्पू-काव्य कहा जाता है। क्योंकि इस काव्य में गद्य और पद्य दोनों का प्रयोग हुआ है।

इसके अलावा सोमदेव सुरि द्वारा रचा गया यशः तिलक, गोपाल चम्पू (जीव गोस्वामी), नीलकण्ठ चम्पू (नीलकण्ठ दीक्षित) और चम्पू भारत (अनन्त कवि) अन्य उदाहरण हैं।

चम्पू काव्य का इतिहास

चम्पूकाव्य परंपरा की शुरुआत हमें अथर्व वेद से प्राप्त होता है। यह काव्य ज्यादा लोकप्रिय नही हो सका। नतीजन काव्यशास्त्र में इसे विशेष मान्यता नही प्राप्त हुई।

वैदिक साहित्य के पश्चात महाभारत, विष्णु पुराण और भागवत पुराण में भी चम्पू काव्य का प्रयोग मिलता है। इसके बौद्धिक कथाओं में भी हमें चम्पू काव्य का प्रयोग मिलता है।

पंचतंत्र, हितोपदेश इत्यादि कथाए भी चम्पू काव्य की शैली में ही लिखी गई है। चतुर्थ शताब्दी से लेकर बाद तक के शिलालेख में चम्पू काव्य का प्रयोग किया गया है।

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