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छंद की परिभाषा, प्रकार, अंग और उदाहरण

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चलिए आज हम छंद की परिभाषा, प्रकार, अंग और उदाहरण की समस्त जानकारी को पढ़ते और समझते हैं।

छंद किसे कहते हैं

हिंदी साहित्य के अनुसार अक्षर, अक्षरों की संख्या, गणना, मात्रा, यति और गति से संबंधित किसी विषय पर रचना को छंद कहा जाता है। 

इसके अलावा निश्चित चरण, गति, मात्रा, लय, तुक, वर्ण, मात्रा, यति और गण से बने पद्य रचना को छंद कहते हैं।

अंग्रेजी में छंद को Meta और कभी-कभी Verse भी कहते हैं।

छंद के अंग

छंद के मुख्यत सात अंग होते हैं।

  1. चरण और पद
  2. वर्ण और मात्रा
  3. मात्रा
  4. यति
  5. गति
  6. तुक
  7. गण

1. चरण और पद

एक छंद में चार चरण होते हैं। चरण छंद का चौथा हिस्सा होता है। इस को पाद भी कहा जाता है। प्रत्येक पाद में वर्णों या मात्राओं की संख्या निश्चित होती है।

चरण के प्रकार 

(a). समचरण :- दूसरे और चौथे चरण को समचरण कहा जाता हैं। 

(b). विषमचरण :- पहले और तीसरे चरण को विषमचरण कहा जाता है।

2. वर्ण और मात्रा 

छंद के चरणों को वर्णों की गणना के अनुसार व्यवस्थित किया जाता है। छंद में जो अक्षर प्रयोग होते हैं उन्हें वर्ण कहते हैं।

मात्रा की दृष्टि से वर्ण के प्रकार 

(a). लघु या ह्रस्व स्वर :- जिन्हें बोलने में कम समय लगता है उसे लघु या ह्रस्व वर्ण कहते हैं। 

(b). गुरु या दीर्घ स्वर :- जिन्हें बोलने में लघु वर्ण से ज्यादा समय लगता है उन्हें गुरु या दीर्घ वर्ण कहते हैं। 

3. छंद में मात्रा की भूमिका

किसी वर्ण के उच्चारण में जितना समय लगता है उसे ही मात्रा कहा जाता है। अथार्त किसी वर्ण के उच्चारण काल की अवधि मात्रा कहलाती है।

4. छंद में यति की भूमिका

पद्य का पाठ करते समय गति को तोड़ कर जो विश्राम दिया जाता है उसे यति कहते हैं। सरल शब्दों में छंद को पढ़ते समय जहाँ पर कुछ देर के लिए रुकना पड़ता है उसे यति कहते हैं। इसे विराम और विश्राम भी कहा जाता है।

इनके लिए (,), (?), (!) इत्यादि जैसे चिन्ह निश्चित होते हैं। हर छंद में बीच में रुकने के लिए कुछ स्थान निश्चित होते हैं इसी रुकने को विराम या यति कहा जाता है। यति के ठीक न रहने से छंद में यति भंग दोष आ जाता है।

5. छंद में गति की भूमिका

पद्य के पथ में जो बहाव होता है उसे गति कहते हैं। अर्थात किसी छंद को पढ़ते समय जब एक प्रवाह अनुभव होता है उसे गति या लय कहा जाता है। हर छंद में विशेष प्रकार की लय होती है जिसे गति कहते हैं। इसके ठीक न रहने पर गति भंग दोष आ जाता है।

6. छंद में तुक की भूमिका

समान उच्चारण वाले शब्दों के उपयोग को ही तुक कहा जाता है। छंद में पदांत के अक्षरों की समानता तुक कहलाती है।

तुक के भेद 

7. छंद में गण की भूमिका

मात्राओं, वर्णों की संख्या और क्रम की सुविधा के लिए तीन वर्णों के समूह को गण कहा जाता है। वार्णिक छंदों की गणना गण के क्रम के अनुसार की जाती है। एक गण तीन वर्णों का होता है और गणों की संख्या आठ होती है।

यगण, तगण, लगण, रगण, जगण, भगण, नगण, सगण आदि।

छंद के प्रकार 

छंद के मुख्य चार प्रकार होते हैं।

1. मात्रिक छंद 

मात्रा की गणना के आधार पर की गयी पद की रचना को मात्रिक छंद कहते हैं। अर्थात जिन छंदों की रचना मात्राओं के गणना के आधार पर की जाती है उन्हें मात्रिक छंद कहते हैं।

मात्रिक छंद के प्रकार

प्रमुख मात्रिक छंद 

  1. दोहा छंद
  2. सोरठा छंद
  3. रोला छंद
  4. गीतिका छंद
  5. हरिगीतिका छंद
  6. उल्लाला छंद
  7. चौपाई छंद
  8. बरवै (विषम) छंद
  9. छप्पय छंद
  10. कुंडलियाँ छंद
  11. दिगपाल छंद
  12. आल्हा या वीर छंद
  13. सार छंद
  14. तांटक छंद
  15. रूपमाला छंद
  16. त्रिभंगी छंद

2. वर्णिक छंद

जिन छंदों की रचना को वर्णों की गणना और क्रम के आधार पर किया जाता है उन्हें वर्णिक छंद कहते हैं।

जैसे :- 

प्रिय पति वह मेरा प्राण प्यारा कहाँ है।
दुःख-जलधि निमग्ना का सहारा कहाँ है।।
अब तक जिसको मैं देख के जी सकी हूँ।
वह ह्रदय हमारा नेत्र तारा कहाँ है।।

प्रमुख वर्णिक छंद 

  1. सवैया छंद
  2. कवित्त छंद
  3. द्रुत विलम्बित छंद
  4. मालिनी छंद
  5. मंद्रक्रांता छंद
  6. इंद्र्व्रजा छंद
  7. उपेंद्रवज्रा छंद
  8. अरिल्ल छंद
  9. लावनी छंद
  10. राधिका छंद
  11. त्रोटक छंद
  12. भुजंग छंद
  13. वियोगिनी छंद
  14. वंशस्थ छंद
  15. शिखरिणी छंद
  16. शार्दुल विक्रीडित छंद
  17. मत्तगयंग छंद

3. वर्णिक वृत छंद 

इसमें चार चरण होते हैं और प्रत्येक चरण में आने वाले लघु -गुरु का क्रम सुनिश्चित होता है इसे वर्णिक वृत्त छंद छंद भी कहते हैं।

जैसे :- मत्तगयन्द सवैया।

4. मुक्तक छन्द

जिन छंदों में वर्णों और मात्राओं का बंधन नहीं होता उन्हें मुक्तक छन्द कहते हैं अर्थात आजकल हिंदी में स्वतंत्र रूप से लिखे जाने वाले छंद मुक्त छंद होते हैं। 

जैसे :-

वह आता दो टूक कलेजे के करता पछताता पथ पर आता।
पेट पीठ दोनों मिलकर हैं एक चल रहा लकुटिया टेक,
मुट्ठी भर दाने को भूख मिटाने को मुँह फटी पुरानी झोली का फैलता
दो टूक कलेजे के कर्ता पछताता पथ पर आता।

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