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चलिए आज हम मात्रिक छन्द की परिभाषा, प्रकार और उदाहरण की समस्त जानकारी को पढ़ते और समझते हैं।
मात्रिक छन्द किसे कहते हैं
जिन छंदों में मात्राओं की संख्या, लघु तथा गुरु स्वर, यति तथा गति के आधार पर पद रचना होती है, उन्हें मात्रिक छन्द कहते हैं।
दूसरे शब्दों में- मात्रा की गणना के आधार पर रचित छन्द ‘मात्रिक छन्द’ कहलाता है।
- मात्रिक छंद के सभी चरणों में मात्राओं की संख्या एक समान रहती है लेकिन लघु तथा गुरु स्वर के क्रम पर ध्यान नहीं दिया जाता है।
- इसमें वार्णिक छन्द के विपरीत, वर्णों की संख्या अलग-अलग हो सकती है और वार्णिक वृत्त के अनुसार यह गणबद्ध भी नहीं होते है, बल्कि यह गणपद्धति या वर्ण संख्या को छोड़कर केवल चरण की कुल मात्रा संख्या के आधार पर ही नियमित होते है।
- ‘दोहा’ और ‘चौपाई’ जैसे छन्द ‘मात्रिक छन्द’ में गिने जाते है। ‘दोहा’ के प्रथम से तृतीय चरण में 93 मात्राएँ और द्वितीय से चतुर्थ में 99 मात्राएँ होती है।
मात्रिक छंद के प्रकार
मात्रिक छंद के मुख्य तीन प्रकार के होते हैं।
- सम मात्रिक छंद
- अर्द्ध सम मात्रिक छंद
- विषम मात्रिक छंद
1. सम मात्रिक छंद
- अहीर (11 मात्रा)
- तोमर (12 मात्रा)
- मानव (14 मात्रा)
- अरिल्ल, पद्धरि/पद्धटिका,चौपाई (सभी 16 मात्रा)
- पीयूषवर्ष, सुमेरु (दोनों 19 मात्रा)
- राधिका (22 मात्रा)
- रोला, दिक्पाल, रूपमाला (सभी 24 मात्रा)
- गीतिका (26 मात्रा)
- सरसी (27 मात्रा)
- सार (28 मात्रा)
- हरिगीतिका (28 मात्रा)
- ताटंक (30 मात्रा)
- वीर या आल्हा (31 मात्रा)
2. अर्द्धसम मात्रिक छंद
- बरवै (विषम चरण में- 12 मात्रा, सम चरण में- 7 मात्रा)
- दोहा (विषम- 13, सम- 11)
- सोरठा (दोहा का उल्टा)
- उल्लाला (विषम-15, सम-13)।
3. विषम मात्रिक छंद
- कुण्डलिया (दोहा + रोला)
- छप्पय (रोला + उल्लाला)।
प्रमुख मात्रिक छंद
1. दोहा छंद
यह अर्धसममात्रिक छंद होता है। यह सोरठा छंद के विपरीत होता है। इसमें पहले और तीसरे चरण में 13-13 मात्राएं तथा दूसरे और चौथे चरण में 11-11 मात्राएँ होती हैं। इसके चरण के अंत में एक लघु स्वर का होना जरूरी होता है।
जैसे :-
1. “कारज धीरे होत है, काहे होत अधीर।
समय पाय तरुवर फरै, केतक सींचो नीर ।।”
2. श्रीगुरू चरन सरोज रज, निज मन मुकुर सुधारि !
बरनउं रघुबर बिमल जसु जो दायकु फल चारि !!
3. रात-दिवस, पूनम-अमा, सुख-दुःख, छाया-धूप।
यह जीवन बहुरूपिया, बदले कितने रूप॥
2. सोरठा छंद
यह अर्धसममात्रिक छंद होता है। यह दोहा छंद के विपरीत होता है। इसमें पहले और तीसरे चरण में 11-11 मात्राएं तथा दूसरे और चौथे चरण में 13-13 मात्राएँ होती हैं। यह दोहा का उल्टा होता है। विषम चरणों के अंत में एक गुरु स्वर और एक लघु मात्रा का होना जरूरी होता है।
जैसे :-
1. “कहै जु पावै कौन , विद्या धन उद्दम बिना।
ज्यों पंखे की पौन, बिना डुलाए ना मिलें।”
2. जो सुमिरत सिधि होय, गननायक करिबर बदन।
करहु अनुग्रह सोय, बुद्धि रासि सुभ गुन सदन॥
3. रोला छंद
यह एक मात्रिक छंद होता है। इसमें चार चरण होते हैं। इसके प्रत्येक चरण में 11 और 13 के क्रम से 24 मात्राएँ होती हैं। इसके अंत में दो गुरु और दो लघु वर्ण होते हैं।
जैसे :-
1. “नीलाम्बर परिधान, हरित पट पर सुन्दर है।
सूर्य चन्द्र युग-मुकुट मेखला रत्नाकर है।
नदियाँ प्रेम-प्रवाह, फूल तारे मंडन है।
बंदी जन खग-वृन्द, शेष फन सिंहासन है।”
2. यही सयानो काम, राम को सुमिरन कीजै।
पर-स्वारथ के काज, शीश आगे धर दीजै॥
4. गीतिका छंद
यह मात्रिक छंद होता है। इसके चार चरण होते हैं। प्रत्येक चरण में 14 और 12 के क्रम से 26 मात्राएँ होती हैं। अंत में लघु और गुरु स्वर होता है।
जैसे :-
1. “हे प्रभो आनंददाता ज्ञान हमको दीजिये।
शीघ्र सारे दुर्गुणों को दूर हमसे कीजिये।
लीजिए हमको शरण में, हम सदाचारी बने।
ब्रह्मचारी, धर्मरक्षक वीर व्रतधारी बनें”
5. हरिगीतिका छंद
यह मात्रिक छंद होता है। इसमें चार चरण होते हैं। इसके प्रत्येक चरण में 16 और 12 के क्रम से 28 मात्राएँ होती हैं। इसके अंत में लघु तथा गुरु स्वर का प्रयोग अधिक प्रसिद्ध है।
जैसे :-
1. “मेरे इस जीवन की है तू, सरस साधना कविता।
मेरे तरु की तू कुसुमित , प्रिय कल्पना लतिका।
मधुमय मेरे जीवन की प्रिय,है तू कल कामिनी।
मेरे कुंज कुटीर द्वार की, कोमल चरण-गामिनी।”
6. उल्लाला छंद
यह मात्रिक छंद होता है। इसके प्रत्येक चरण में 15 और 13 के क्रम से 28 मात्राएँ होती है।
जैसे :-
1. “करते अभिषेक पयोद हैं, बलिहारी इस वेश की।
हे मातृभूमि! तू सत्य ही, सगुण-मूर्ति सर्वेश की।”
7. चौपाई छंद
यह मात्रिक छंद होता है। इसमें चार चरण होते हैं। इसके प्रत्येक चरण में 16 मात्राएँ होती हैं। चरण के अंत में गुरु या लघु स्वर नहीं होता है लेकिन दो गुरु और दो लघु स्वर हो सकते हैं।
जैसे :-
1. “इहि विधि राम सबहिं समुझावा
गुरु पद पदुम हरषि सिर नावा।”
2. बंदउँ गुरु पद पदुम परागा ।
सुरुचि सुबास सरस अनुराग॥
अमिय मूरिमय चूरन चारू।
समन सकल भव रुज परिवारू॥
8. विषम छंद
इसमें पहले और तीसरे चरण में 12 तथा दूसरे और चौथे चरण में 7 मात्राएँ होती हैं। सम चरणों के अंत में जगण और तगण के आने से मिठास बढती है। यति को प्रत्येक चरण के अंत में रखा जाता है।
जैसे :-
1. “चम्पक हरवा अंग मिलि अधिक सुहाय।
जानि परै सिय हियरे, जब कुम्हिलाय।।”
9. छप्पय छंद
इस छंद में 6 चरण होते हैं। पहले चार चरण रोला छंद के होते हैं और अंत के दो चरण उल्लाला छंद के होते हैं। प्रथम चार चरणों में 24 मात्राएँ और बाद के दो चरणों में 26-26 या 28-28 मात्राएँ होती हैं।
जैसे :-
1. “नीलाम्बर परिधान हरित पट पर सुन्दर है।
सूर्य-चन्द्र युग मुकुट, मेखला रत्नाकर है।
नदिया प्रेम-प्रवाह, फूल -तो मंडन है।
बंदी जन खग-वृन्द, शेषफन सिंहासन है।
करते अभिषेक पयोद है, बलिहारी इस वेश की।
हे मातृभूमि! तू सत्य ही,सगुण मूर्ति सर्वेश की।।”
10. कुंडलियाँ छंद
कुंडलियाँ विषम मात्रिक छंद होता है। इसमें 6 चरण होते हैं। शुरू के 2 चरण दोहा और बाद के 4 चरण उल्लाला छंद के होते हैं। इस तरह प्रत्येक चरण में 24 मात्राएँ होती हैं।
जैसे :-
1. “घर का जोगी जोगना, आन गाँव का सिद्ध।
बाहर का बक हंस है, हंस घरेलू गिद्ध
हंस घरेलू गिद्ध , उसे पूछे ना कोई।
जो बाहर का होई, समादर ब्याता सोई।
चित्तवृति यह दूर, कभी न किसी की होगी।
बाहर ही धक्के खायेगा , घर का जोगी।।”
2. कमरी थोरे दाम की, बहुतै आवै काम।
खासा मलमल वाफ्ता, उनकर राखै मान॥
उनकर राखै मान, बँद जहँ आड़े आवै।
बकुचा बाँधे मोट, राति को झारि बिछावै॥
कह ‘गिरिधर कविराय’, मिलत है थोरे दमरी।
सब दिन राखै साथ, बड़ी मर्यादा कमरी॥
3. रत्नाकर सबके लिए, होता एक समान।
बुद्धिमान मोती चुने, सीप चुने नादान॥
सीप चुने नादान,अज्ञ मूंगे पर मरता।
जिसकी जैसी चाह,इकट्ठा वैसा करता।
‘ठकुरेला’ कविराय, सभी खुश इच्छित पाकर।
हैं मनुष्य के भेद, एक सा है रत्नाकर॥
11. दिगपाल छंद
इसके प्रत्येक चरण में 12-12 के विराम से 24 मात्राएँ होती हैं।
जैसे :-
हिमाद्रि तुंग-श्रृंग से प्रबुद्ध शुद्ध भारती।
स्वयं प्रभा समुज्ज्वला स्वतंत्रता पुकारती।
अमर्त्य वीर पुत्र तुम, दृढ प्रतिज्ञ सो चलो।
प्रशस्त पुण्य-पंथ है, बढ़े चलो-बढ़े चलो।।”
12. आल्हा या वीर छंद
इसमें 16 -15 की यति से 31 मात्राएँ होती हैं।
13. सार छंद
इसे ललित पद भी कहा जाता हैं। सार छंद में 28 मात्राएँ होती हैं। इसमें 16-12 पर यति होती है और बाद में दो गुरु स्वर होते हैं।
14. ताटंक छंद
इसके प्रत्येक चरण में 16,14 की यति से 30 मात्राएँ होती हैं।
15. रूपमाला छंद
इसके प्रत्येक चरण में 24 मात्राएँ होती हैं। अंत में गुरु तथा लघु स्वर होना चाहिए।
16. त्रिभंगी छंद
यह छंद 32 मात्राओं का होता है। 10वें, 8वें, 8वें, और 6वें पर यति होती है और अंत में गुरु स्वर होता है।
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