वर्णिक छन्द की परिभाषा, प्रकार और उदाहरण

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चलिए आज हम वर्णिक छन्द की समस्त जानकारी को पढ़ते और समझते हैं।

वर्णिक छन्द किसे कहते हैं

जिन छंदों में वर्णों की संख्या, गणविधान, क्रम, तथा लघु-गुरु स्वर के आधार पर पद रचना होती है, उसे ‘वर्णिक छंद’ कहते हैं। 

दूसरे शब्दों में केवल वर्णों के गणना के आधार पर रचा गया छन्द ‘वार्णिक छन्द’ कहलाता है।

या जिस छंद के सभी चरणों में वर्णो की संख्या समान होती हैं उन्हें ‘वर्णिक छंद’ कहते हैं।

  1. वर्णिक छंद के सभी चरणों में वर्णों की संख्या एक समान रहती है और लघु तथा गुरु स्वर का क्रम समान रहता है। 
  2. ‘वृतों’ की तरह इसमें लघु तथा गुरु स्वर का क्रम निश्र्चित नहीं होता केवल वर्णों की संख्या ही निर्धारित रहती है और इसमें चार चरणों का होना भी अनिवार्य नहीं होता है।

वार्णिक छन्द के प्रकार

वार्णिक छन्द के दो प्रकार है।

(i). साधारण वार्णिक छंद :- 1 से 26 वर्ण तक के चरण या पद रखने वाले वार्णिक छंद को साधारण वार्णिक कहा जाता हैं।

(ii). दण्डक वार्णिक छंद :- 1 से 26 वर्ण से अधिक चरण या पद रखने वाले छंद को दंडक वार्णिक छंद कहा जाता हैं।

प्रमुख वार्णिक छंद

1. सवैया छंद 

इसके प्रत्येक चरण में 22 से 26 वर्ण होते हैं। इसमें एक से अधिक छंद होते हैं। यह अनेक प्रकार के होते हैं और इनके नाम भी भिन्न-भिन्न प्रकार के होते हैं। सवैया में एक ही वर्णिक गण बार-बार आता है। इनका निर्वाह नहीं होता है।

जैसे :-

“लोरी सरासन संकट कौ,
सुभ सीय स्वयंवर मोहि बरौ।
नेक ताते बढयो अभिमानंमहा,
मन फेरियो नेक न स्न्ककरी।
सो अपराध परयो हमसों,
अब क्यों सुधरें तुम हु धौ कहौ।
बाहुन देहि कुठारहि केशव,
आपने धाम कौ पंथ गहौ।।”

2. मनहरण या घनाक्षरी या कवित्त छंद 

यह वर्णिक सम छंद होता है। इसके प्रत्येक चरण में 31से 33 वर्ण होते हैं और आखिर में तीन लघु स्वर होते हैं। 16वे और 17 वें वर्ण पर विराम होता है।

जैसे :-

मेरे मन भावन के भावन के ऊधव के आवन की
सुधि ब्रज गाँवन में पावन जबै लगीं।
कहै रत्नाकर सु ग्वालिन की झौर-झौर
दौरि-दौरि नन्द पौरि,आवन सबै लगीं।
उझकि-उझकि पद-कंजनी के पंजनी पै,
पेखि-पेखि पाती,छाती छोहन सबै लगीं।
हमको लिख्यौ है कहा,हमको लिख्यौ है कहा,
हमको लिख्यौ है कहा,पूछ्न सबै लगी।।”

3. द्रुत विलम्बित छंद 

इसके प्रत्येक चरण में 12 वर्ण होते हैं। जिसमें एक नगण, दो भगण तथा एक सगण होते हैं। 

जैसे :-

दिवस का अवसान समीप था,
गगन था कुछ लोहित हो चला।
तरु शिखा पर थी अब राजती,
कमलिनी कुल-वल्लभ की प्रभा।।

4. मालिनी छंद 

इस वर्णिक छंद में 15 वर्ण होते हैं। जिनमें दो तगण, एक मगण, दो यगण होते हैं। आठ और सात वर्ण एवं विराम होता है।

जैसे :-

प्रभुदित मथुरा के मानवों को बना के,
सकुशल रह के औ विध्न बाधा बचाके।
निज प्रिय सूत दोनों , साथ ले के सुखी हो,
जिस दिन पलटेंगे, गेह स्वामी हमारे।।

5. मंदाक्रांता छंद

इसके प्रत्येक चरण में 17 वर्ण होते हैं। जिनमे एक भगण, एक नगण, दो तगण और दो गुरु स्वर होते हैं। 5वे, 6वे तथा 7 वें वर्ण पर विराम होता है।

जैसे :-

कोई क्लांता पथिक ललना चेतना शून्य होक़े,
तेरे जैसे पवन में , सर्वथा शान्ति पावे।
तो तू हो के सदय मन, जा उसे शान्ति देना,
ले के गोदी सलिल उसका, प्रेम से तू सुखाना।।

6. इन्द्रव्रजा छंद 

इसके प्रत्येक चरण में 11 वर्ण होते हैं। जिनमे दो जगण और बाद में 2 गुरु स्वर होते हैं।

जैसे :-

माता यशोदा हरि को जगावै।
प्यारे उठो मोहन नैन खोलो।
द्वारे खड़े गोप बुला रहे हैं।
गोविन्द, दामोदर माधवेति।।”

7. उपेन्द्रव्रजा छंद 

इसके प्रत्येक चरण में 11 वर्ण होते हैं। जिनमे 1 नगण,1 तगण, 1 जगण और बाद में 2 गुरु स्वर होता हैं।

जैसे :-

पखारते हैं पद पद्म कोई,
चढ़ा रहे हैं फल -पुष्प कोई।
करा रहे हैं पय-पान कोई
उतारते श्रीधर आरती हैं।।”

8. अरिल्ल छंद 

इसके प्रत्येक चरण में 16 मात्राएँ होती हैं। इसके अंत में लघु या यगण स्वर होता हैं।

जैसे :-

मन में विचार इस विधि आया।
कैसी है यह प्रभुवर माया।
क्यों आगे खड़ी है विषम बाधा।
मैं जपता रहा, कृष्ण-राधा।।

9. लावनी छंद 

इसके प्रत्येक चरण में 22 मात्राएँ और चरण के अंत में गुरु स्वर होते हैं।

जैसे :-

धरती के उर पर जली अनेक होली।
पर रंगों से भी जग ने फिर नहलाया।
मेरे अंतर की रही धधकती ज्वाला।
मेरे आँसू ने ही मुझको बहलाया।।

10. राधिका छंद 

इसके प्रत्येक चरण में 22 मात्राएँ होती हैं। जिसमे 13वें और 9वें पर विराम होता है।

जैसे :-

बैठी है वसन मलीन पहिन एक बाला।
बुरहन पत्रों के बीच कमल की माला।
उस मलिन वसन म, अंग-प्रभा दमकीली।
ज्यों धूसर नभ में चंद्रप्रभा चमकीली।।

11. त्रोटक छंद 

इसके प्रत्येक चरण में 12 मात्रा और 4 सगण होते हैं।

जैसे :-

शशि से सखियाँ विनती करती,
टुक मंगल हो विनती करतीं।
हरि के पद-पंकज देखन दै
पदि मोटक माहिं निहारन दै।।

12. भुजंगी छंद 

इसके प्रत्येक चरण में 11 वर्ण होते हैं। जिनमें तीन सगण, एक लघु स्वर और एक गुरु स्वर होता है।

जैसे :-

शशि से सखियाँ विनती करती,
टुक मंगल हो विनती करतीं।
हरि के पद-पंकज देखन दै
पदि मोटक माहिं निहारन दै।।

13. वियोगिनी छंद 

इसके सम चरण में 11-11 और विषम चरण में 10 वर्ण होते हैं। विषम चरणों में दो सगण, एक जगण, एक सगण और एक लघु स्वर व एक गुरु स्वर होते हैं।

जैसे :-

“विधि ना कृपया प्रबोधिता,
सहसा मानिनि सुख से सदा
करती रहती सदैव ही
करुण की मद-मय साधना।।”

14. वंशस्थ छंद 

इसके प्रत्येक चरण में 12 वर्ण होते हैं। जिनमें एक नगण, एक तगण, एक जगण और एक रगण होते हैं।

जैसे :-

“गिरिन्द्र में व्याप्त विलोकनीय थी,
वनस्थली मध्य प्रशंसनीय थी
अपूर्व शोभा अवलोकनीय थी
असेत जम्बालिनी कूल जम्बुकीय।।”

15. शिखरिणी छंद 

इसमें 17 वर्ण होते हैं। इसके हर चरण में यगण, मगण, नगण, सगण, भगण, लघु स्वर और गुरु स्वर होता है।

16. शार्दुल विक्रीडित छंद 

इसमें 19 वर्ण होते हैं। 12वें और 7वें वर्णों पर विराम होता है। हर चरण में मगण, सगण, जगण, सगण, तगण और बाद में एक गुरु स्वर होता है।

17. मत्तगयंग छंद 

इसमें 23 वर्ण होते हैं। प्रत्येक चरण में सात सगण और दो गुरु स्वर होते हैं।

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2 thoughts on “वर्णिक छन्द की परिभाषा, प्रकार और उदाहरण”

  1. Ati sunder….. bahut adhik acchhi lgi aapke dwara di gyi varnik alankar ki jankari hume, main aasha krti hu, ki hume aap aage bhi isi tarah nye nye topics ki jankari dete rahenge .
    Dhanyawad …..

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