कुंडलियाँ छंद की परिभाषा और उदाहरण

इस पेज पर आप कुंडलियाँ छंद की समस्त जानकारी पढ़ने वाले हैं तो पोस्ट को पूरा जरूर पढ़िए।

पिछले पेज पर हमने रस और काल की जानकारी शेयर की हैं तो उस पोस्ट को भी पढ़े।

चलिए आज हम कुंडलियाँ छंद की समस्त जानकारी को पढ़ते और समझते हैं।

कुंडलियाँ छंद किसे कहते हैं

कुंडलियाँ एक विषम मात्रिक छंद होता है। इसका निर्माण मात्रिक छंद के दोहा और रोला छंद के योग से होता है। पहले एक दोहा और उसके बाद दोहा के चौथे चरण से यदि एक रोला रख दिया जाए तो वह कुंडलिया छंद बन जाता है। 

एक नियम है की जिस शब्द से कुंडलिया छंद प्रारंभ होता है समाप्ति में भी वही शब्द रहना चाहिए। 

जैसे :-

1. “घर का जोगी जोगना, आन गाँव का सिद्ध।
बाहर का बक हंस है, हंस घरेलू गिद्ध
हंस घरेलू गिद्ध , उसे पूछे ना कोई।
जो बाहर का होई, समादर ब्याता सोई।
चित्तवृति यह दूर, कभी न किसी की होगी।
बाहर ही धक्के खायेगा , घर का जोगी।।”

2. कमरी थोरे दाम की, बहुतै आवै काम।
खासा मलमल वाफ्ता, उनकर राखै मान॥
उनकर राखै मान, बँद जहँ आड़े आवै।
बकुचा बाँधे मोट, राति को झारि बिछावै॥
कह ‘गिरिधर कविराय’, मिलत है थोरे दमरी।
सब दिन राखै साथ, बड़ी मर्यादा कमरी॥

3. रत्नाकर सबके लिए, होता एक समान।
बुद्धिमान मोती चुने, सीप चुने नादान॥
सीप चुने नादान,अज्ञ मूंगे पर मरता।
जिसकी जैसी चाह,इकट्ठा वैसा करता।
‘ठकुरेला’ कविराय, सभी खुश इच्छित पाकर।
हैं मनुष्य के भेद, एक सा है रत्नाकर॥

4. दौलत पाय न कीजिए, सपने में अभिमान। 
चंचल जल दिन चारि कौ, ठाउँ न रहत निदान।।
ठाउँ न रहत निदान, जियन जग में जस लीजै। 
मीठे बचन सुनाय, विनय सबही की कीजै।।
कह गिरिधर कविराय, अरे यह सब घर तौलत। 
पाहुन निसिदिन चारि, रहत सब ही के दौलत।।

जरूर पढ़िए :
वार्णिक छन्दमुक्तक छन्दरोला छंद
मात्रिक छन्दवर्णिक वृत छंदगीतिका छंद

उम्मीद हैं आपको कुंडलियाँ छंद की समस्त जानकारी पसंद आयी होगीं।

यदि आपको यह पोस्ट पसंद आयी हो तो दोस्तों के साथ शेयर कीजिए।

1 thought on “कुंडलियाँ छंद की परिभाषा और उदाहरण”

  1. रोला में यति पूर्व 21 और यति के पश्चात त्रिकल शब्द की अनिवार्यता भी होती है

    Reply

Leave a Comment

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.