इस पेज पर आप पद्य काव्य की समस्त जानकारी को पढ़ेंगे और समझेंगे।
पिछले पेज पर हमने पर्यायवाची शब्द शेयर किए हैं यदि आपने उन्हें नहीं पढ़ा तो उन्हें भी जरूर पढ़े।
चलिए आज पद्य काव्य की परिभाषा को उदाहरण सहित पढ़ते और समझते हैं।
पद्य काव्य किसे कहते हैं
पद्य वह विद्या है जिसके अंतर्गत कविता, काव्य, गीत, भजन इत्यादि लिखे जाते हैं।
छंदवद्ध या छंदमुक्त ऐसी संगीतात्मकता युक्त रचना अर्थात जिसे संगीत की तरह गाया जा सके, जिसमें भाव एवं कल्पना की प्रधानता हो पद्य कहलाती है। जैसे गीतांजली।
पद्य हृदय की संवेदना से उत्पन्न विधा है। लय, तुक, ताल, छंद पद्य के आवश्यक उपादान है। पद्य में सांकेतिक अर्थ, प्रतीक, बिम्ब, चित्रात्मकता, संगीतात्मकता का विशेष गुण पाया जाता हैं।
पद्य लेखन की शुरुआत गद्य लेखन से काफी पहले हो गई थी। वेद, पुराणों से लेकर रामायण, महाभारत तक सभी पुरानी रचनाएं पद्य में ही लिखी गई हैं।
गद्य और पद्य में अंतर
गद्य और पद्य में निम्नलिखित अंतर है।
गद्य | पद्य |
---|---|
गद्य में लयात्मकता नहीं होती हैं। | पद्य में लयात्मकता होती हैं अर्थात हम इन्हे सुर के साथ गा सकते हैं। |
गद्य का संबंध हमारे विचारों से होता है। | पद्य का संबंध हमारे मन की भावनाओं से होता हैं। |
गद्य का संबंध हमारे मस्तिष्क से होता हैं। | पद्य का संबंध हमारे मन से होता हैं। |
गद्य विद्या के अंतर्गत कहानी, उपन्यास, नाटक, निबंध, व्यंग्य, आत्मकथा, पत्र वगैरह आता हैं। | पद्य के अंतर्गत कविता, गीत, गाना इत्यादि आता है। |
गद्य में अलंकार का प्रयोग नहीं होता है। | पद्य में अलंकार का प्रयोग किया जाता है। |
गद्य को पढ़ना काफी आसान होता हैं। | पद्य गद्य की तुलना में पढ़ने में मुश्किल होता हैं। |
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