रस की परिभाषा, रस के प्रकार, अंग, विशेषताएँ और रस के स्थायी भाव

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पिछली पोस्ट में हमने वाक्य की परिभाषा शेयर की है तो उस पोस्ट को भी पढ़े।

चलिए आज हम रस की परिभाषा की समस्त जानकारी को इस पेज के माध्यम से पढ़ते और समझते हैं।

रस की परिभाषा

काव्य को पढ़ने या सुनने से जिस आनंद की अनुभूति होती हैं उसे रस कहाँ जाता हैं। रस का शाब्दिक अर्थ “आनंद” होता हैं।

रस को काव्य की आत्मा कहा जाता हैं। संस्कृत में कहा गया हैं कि “रसात्मकम् वाक्यम् काव्यम्” अर्थात् रसयुक्त वाक्य ही काव्य हैं।

रस को इंग्लिश मे Sentiments कहा जाता है।

भरत मुनि द्वारा रस की परिभाषा

रस की उत्पत्ति को सबसे पहले परिभाषित करने का श्रेय भरत मुनि को जाता हैं।

“विभाव, अनुभाव तथा संचारी भावों के संयोग से रस की निष्पत्ति होती हैं।”

काव्य शास्त्र के मर्मज्ञ विद्वानों ने काव्य की आत्मा को ही रस माना हैं।

भरत मुनि ने अपने नाट्यशास्त्र में रस के आठ प्रकारों का वर्णन किया हैं।

रस, छंद और अलंकार काव्य के अंग है।

रस के अंग

रस के चार अंग होते है।

  • स्थायी भाव
  • विभाव
  • अनुभाव
  • संचारी भाव

1. स्थायी भाव

स्थाई भाव उसे कहते है जो मन में स्थाई रूप से स्थापित रहते हैं, इन्हें किसी अन्य भाव के द्वारा नष्ट नहीं किया जा सकता हैं।

प्रत्येक रस का एक स्थाई भाव होता है।

अर्थात कुल रसों की संख्या 9 है तो स्थाई भाव की संख्या भी 9 होगी।

मुख्य रूप से रसों की संख्या 9 मानी गई है जिसमें रसों का राजा शृंगार रस को माना गया।

भरत मुनि के अनुसार रसों की संख्या 8 मानी गई थी उनके काव्य नाट्य शास्त्र में शांत रस को स्थान नहीं दिया गया।

किन्तु बाद में हिंदी आचार्य द्वारा वात्सल्य और भागवत रस को मान्यता दी गई जिससे रसों की संख्या 9 की जगह 11 हो गई।

रसों की संख्या 9 से 11 होने पर स्थाई भाव की संख्या भी 9 से 11 हो जायेगीं।

2. विभाव

काव्य में किसी वस्तु या विषय के वर्णन को पड़ने से जो भाव उत्पन्न होते है उन्हें विभाव कहते हैं।

विभाव दो प्रकार के होते हैं।

  • आलंबन विभाव
  • उद्दीपन विभाव

(a). आलंबन विभाव :- जिसका सहारा पा कर मन में स्थाई भाव जागृतित हो उन्हें आलंबन विभाव कहते हैं।

जैसे :- नायक नायिका

आलंबन को दो भागो में बाटा गया है।

  • आश्रयालंबन :- जिसके मन में भाव जगे उसे आश्रयालंबन कहते हैं।
  • विषयालंबन :- जिसके कारण मन में भाव जगे उसे विषयालंबन कहते हैं।

जैसे :- सुदामा की दीनदशा कृष्ण के मन में शोक भाव को जगाती है तो कृष्ण आश्रयालंबन विभाव और सुदामा को विषयालंबन विभाव कहा जाएगा।

(b). उद्दीपन विभाव :- जिन वस्तुओं और परिस्थितियों को देख कर जो भाव उद्दीप्त होने लगते है उन्हें उद्दीपन विभाव कहते हैं।

जैसे :- युद्ध के बाजे, गर्जना – तर्जना, कोकिल – कुंजन, नायक-नायिका आदि।

3. अनुभाव

मन के भाव उत्पन्न करने वाली शारीरिक क्रियाएँ अनुभाव कहलाती है। या स्थायी भाव उत्पन्न होने के बाद जो भाव उत्पन्न होते है उन्हें अनुभाव कहते है।

जैसे :- पसीने से लथपथ होना, रोमटे खड़े होना, काँपना, भय उत्पन्न होना, हक्का बक्का होना।

अनुभाव 8 प्रकार के होते हैं।

  • स्तंभ
  • स्वेद
  • रोमांच
  • भंग
  • कंप
  • विवर्णता
  • अश्रु
  • प्रलय

जैसे :-

कंकण के नग में देख राम की छाया,
अपलक रोमांचित बैठी थी नाव जाया।

अनुभाव के चार भेद होते हैं।

  • कायिक
  • मानसिक
  • वाचिक
  • आहार्य

4. संचारी भाव

मन में स्थाई भाव के साथ संचरण (आने जाने) करने वाले भाव जो कुछ समय बाद समाप्त हो जाते है तो उन्हें संचारी भाव कहते हैं।

संचारी भाव कि संख्या 33 हैं। यह मन में स्थाई रूप से नहीं रहते हैं।

हर्ष, विषाद, श्रास, लज्जा, ग्लानि, चिंता, शंका, असूया, अमर्ष, मोह, गर्व, उत्सुकता, उग्रता, चपलता, दीनता, जड़ता, आवेग, निर्वेद, धृति, मति, बिबोध, वितर्क, श्रम, आलस्य, निद्रा, स्वप्न, स्मृति, मद, उन्माद, अवहितथा अपस्मार व्याधि मरण।

उदाहरण :-  पत्नी के लिए नायक का प्रेम देखकर नायिका के मन में जो ईर्ष्या का भाव होगा वह संचारी भाव हैं।

रस के प्रकार और स्थायी भाव

रस 11 प्रकार के होते है और स्थाई भाव भी 11 ही होते हैं।

रस स्थायी भाव
श्रृंगार रसरति
हास्य रसहास
करुण रसशोक
वीर रसउत्साह
अद्भुत रसआश्चर्य, विस्मय
भयानक रसभय
रौद्र रसक्रोध
वीभत्स रसजुगुप्सा
शांत रसनिर्वेद या निर्वृती
वात्सल्य रसरति
भक्ति रसअनुराग

1. श्रृंगार रस

जहां नायक और नायिका की अथवा महिला पुरुष के प्रेम पूर्वक श्रेष्ठाओ क्रिया कलापो का श्रेष्ठाक वर्णन होता हैं वहां श्रृंगार रस होता हैं।

श्रृंगार रस का स्थाई भाव – रति होता हैं।

उदाहरण :-

राम को रूप निहारत जानकी,
कंगन के नग की परछाई।
याते सवै सुध भूल गई,
कर टेक रही पल टारत नाही।।

श्रृंगार रस के भेद

श्रृंगार रस के दो भेद होते हैं।

  1. संयोग श्रृंगार
  2. वियोग श्रृंगार

1. संयोग श्रृंगार :- इसमें नायक नायिका के संयोग की स्थिति का वर्णन रहता है।

उदाहरण :-

बतरस लालच लाल की, मुरली धरी लुकाय।
सौंह करें भौंहनि हंसे, देन कहे नट जाय।।

पूछत श्याम कौन तू गोरी ?
कहाँ रहती हैं काकी है बेटी, देखी नहीं कबहुँ ब्रज खोरी।
सूरदास प्रभु रसिक शिरोमनि बातन भुरइ राधिकाभोरी।

2. वियोग श्रृंगार :- इसमें नायक नायिका के वियोग की स्थिति का वर्णन रहता है।

उदाहरण :-

(1). बिनु गोपाल बैरिन भई कुंजै।
तब ये लता लगति अति शीतल, अब भई विषम ज्वाला पूँजे।

(2). “हे खग, हे मृग, हे मधुकर श्रेणी,
तुम देखी सीता मृग नयनी ?

(3). आंखों में प्रियमूर्ति थी भूले थे सब भोग।
हुआ युग से भी अधिक उसका विषम वियोग।l

2. हास्य रस

किसी वस्तु या व्यक्ति की घटनाओं और भावनाओं से संबंधित काव्य को पढ़ने से उत्पन्न रस को हास्य रस कहते हैं।

हास्य रस का स्थाई भाव – हसी होता हैं।

उदाहरण :-

(1). फादर ने बनवा दिए तीन कोट छह पेण्ट।
मेरा बेटा हो गया, कॉलेज स्टूडेंट।।

(2). सिर घोट-मोट पर, चुटिया थी लहराती।
थी तोंद लटक कर, घुटनों को छू जाती।।
जब मटक मटक कर चले हंसी भी भारी।
हो गए देखकर लोट पोट नर-नारी।।

(3). इस दौड़-धूप में क्या रखा हैं।
आराम करो आराम करो।
आराम जिंदगी की पूजा हैं।।
इससे न तपेदिक होती।
आराम शुधा की एक बूंद।
तन का दुबलापन खो देती।।

3. करुण रस

इसमें किसी प्रकार की दुख से संबंधित अनुभूति से प्ररेति काव्य रचना को पढ़ने से करुण रस उत्पन्न होता हैं।

करुण रस का स्थाई भाव – शोक होता हैं।

उदाहरण :-

(1). देखि सुदामा की दीन दसा,
करुणा करके करुणा निधि रोए।
पानी परात का हाथ छुयो नहिं,
नैनन के जल सो पग धोए।।

(2). प्रियपति वह मेरा, प्राण प्यारा कहां है ?
दुःख जल निधि डूबी, का सहारा कहां है ?
देख मुख जिसका मैं, आज तक जी सखी हूँ,
वह हृदय हमारा नैन-तारा कहां है ?

(3). अभी तो मुकुट बंधा था माथ,
हुए कल ही हल्दी के हाथ।
खुले भी ना थे लाज के बोल, खिले भी ना चुम्बन-शून्य कपील।
हाय यहीं रुक गया संसार,
बन गया सिंदूर भी अंगार।

(4). शोक विकल सब रोवहि रानी।
रूपु सीलु बलू तेजु बखानी।।
करहि विलाप अनेक प्रकारा।
परिहि चूमि तल बारहि बारा।।

4. वीर रस

जब काव्य में उमंग, उत्साह और पराक्रम से संबंधित भाव का उल्लेख होता हैं तब वहां वीर रस की उत्पत्ति होती हैं।

वीर रस का स्थाई भाव – उत्साह होता हैं।

उदाहरण :-

(1). मैं सत्य कहता हूं, सके सुकुमार न मानो मुझे।
यमराज से भी युद्व को, प्रस्तुत सदा मानो मुझे।।

(2). तूफानों की ओर घुमा दो नाविक ! निज पतवार।
आज हृदय में और सिंधु में, साथ उठा है ज्वार।।

(3). बुंदेले हरबोलों के मुख, हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो, झांसी वाली रानी थी।।

(4). वह खून कहो किस मतलब का,
जिसमें उबाल का नाम नहीं है।
वह खून कहो किस मतलब का,
जिसमें जीवन ना रवानी है।।

5. अद्भुत रस

जहां पर किसी आलौरिक क्रिया कलाप आश्चर्य चकित वस्तुओं को देखकर या उन से सम्बंधित घटनाओं को देखकर मन में जो भाव उत्पन्न होते हैं वहाँ पर अद्भुत रस होता हैं।

अदभुत रस का स्थाई भाव – आश्चर्य होता हैं।

उदाहरण :-

(1). बिनू पद चलै सुने बिनु काना।
कर बिनु कर्म करै विधि नाना।।
आनन रहित सकल रस भोगी,
बिनु बाणी, वक्ता बड़ जोगी।।

(2). ”शून्य भीति पर चित्र, रंग नहीं,
तुम बिन लिखा चितेरे।
धोये मिटे न, मरै भीत,
दुःख पाइए यहि तनु हेरे।”

6. भयानक रस

जहां भयानक वस्तुओं को देखकर या भय उत्पन्न करने वाले दृश्यों/घटनाओं को देखकर मन में जो भाव उत्पन्न होते हैं वहां पर भयानक रस होता हैं।

भयानक रस का स्थाई भाव – भय होता हैं।

उदाहरण :-

(1). उधर गरजती सिंधु लहरिया कुटिल काल के जालो सी।
चली आ रही फेन उंगलिया फन फैलाए ब्यालो सी।।

(2). हाहाकार हुआ क्रंदननमन,
कठिन व्रज होते थे चूर।
हुए दिगन्त बधिर भीषण,
मुख बार-बार होता था क्रूर।।

(3). नभ में झटपट बाज लखि, भूल्यों सकल प्रपंच।
कंपित तन व्याकुल नयन, शावक हिल्यो न रंच।।

7. रौद्र रस

जिस काव्य रचना को पढ़कर या सुनकर हृदय में क्रोध के भाव उत्पन्न होते हैं वहां पर रौद्र रस होता हैं। इस प्रकार की रचनाओं में उत्प्रेरण सम्बन्धी विवरण होता हैं।

रौद्र रस का स्थाई भाव – क्रोध होता हैं।

उदाहरण :-

(1). श्री कृष्ण के सुन वचन, अर्जुन क्रोध से जलने लगे
सब शील अपना भूल कर, करतल युगल मलने लगे।।
संसार देख अब हमारे, शत्रु रण में मृत पड़े।
करते हुए यह घोषणा, वे हो गए उठकर खड़े।।

(2). सुनत लखन के वचन कठोरा।
परसु सुधारि धरेउ कर घोरा।।
अब जनि देउ दोष मोहि लोगू।
कटुवादी बालक वध जोगू।।

8. वीभत्स रस

जिस काव्य रचना में घृणात्तम वस्तु या घटनाओं का उल्लेख हो वहां पर वीभत्स रस होता हैं।

वीभत्स रस का स्थाई भाव – घ्रणा होता हैं।

उदाहरण :-

(1). आँखे निकाल उड़ जाते, क्षण भर उड़ कर आ जाते
शव जीभ खींचकर कौवे, चुभला-चभला कर खाते
भोजन में श्वान लगे मुरदे थे भू पर लेटे
खा माँस चाट लेते थे, चटनी सैम बहते बहते बेटे

(2). सिर पर बैठो काग, आँखि दोउ खात निकारत
खींचत जी भहिं स्यार, अतिहि आनन्द उर धारत
गिद्ध जाँघ कह खोदि-खोदि के मांस उचारत
स्वान आँगुरिन काटि-काटि के खान बिचारत

9. शांत रस

वह काव्य रचना जिसमें श्रोता के मन में निर्वेद के भाव उत्पन्न होते हैं उसे शांत रस कहते हैं।

शांत रस का स्थाई भाव – निर्वेद होता हैं।

उदाहरण :-

(1). मन रे तन कागज का पुतला,
लगे बुद विनसि जाए झण में,
गरब करै क्यों इतना।

(2). यह संसार कागद की पुड़िया,
बूँद पड़े गल जाना हैं।

(3). मेरो तो गिरधर गोपाल, दूसरों न कोई।
जाके सिर मोर मुकुट, मेरो पति सोई।।

10. वात्सल्य रस

स्नेह जहां पर वाल्य क्रीड़ाओं से संबंधित एवं उनसे स्नेह के भाव उत्पन्न हो वहां पर वात्सल्य रस उत्पन्न होता हैं।

वात्सल्य रस का स्थाई भाव – स्नेह होता हैं।

उदाहरण :-

(1). किलकत कान्ह घुटरुवन आवत।
मनिमय कनक नन्द के आँगन।
विम्ब फकरिवे घावत।।

(2). बाल दशा मुख निरखि यशोदा
पुनि-पुनि नंद बलावती।
अँचरा तक लैं ढाँकि
सूर के प्रभु को दूध पियावति॥

(3). बर दंत की पंगति कुंद कली, अधराधर पल्लव खोलन की।
चपला चमके घन-बीच जगै छवि, मोतिन माल अमोलन की।
घुंघराली लटें लटके मुख- अपर, कुंडल लोल कपोलन की।
निबछावर प्रान करें ‘तुलसी’ बलि जाऊ लला इन बोलन की।

(4). मैया मैं नहिं माखन खायो।
ख्याल परे ये सखा सबै मिलि मेरे मुख लपटायो।
मैं बालक बहियन को छोटो छीको केहि विधि पायो।

(5). सदेसो देवकी सो कहियो।
हौं तो धाय तिहारे सुत की, कृपा करति ही रहियौ ।
जदपि देव तुम जानति है हौ, तऊ मोहि कहि आवै।
प्रात होत मेरे लाल लड़ैते, माखन रोटी भावै॥

11. भक्ति रस

जिस काव्य रचना में ईश्वर के प्रति भक्ति विश्वास के भाव उत्पन्न हो वहां पर भक्ति रस होता हैं।

भक्ति रस का स्थाई भाव – वैराग्य/अनुराग होता हैं।

उदाहरण :-

(1). राम जपु, राम जपु, राम जपु, वावरे।
घोर भव नीर निधि, नाम निज नाव रे।।

(2). एक भरोसो एक बल,
एक आस विश्वास।
एक राम घनश्याम हित,
चातक तुलसीदास।। – तुलसीदास

(3). उलट नाम जपत जग जाना,
वल्मीक भए ब्रह्म समाना। – वाल्मीकि

(4). अँसुवन जल सिंची-सिंची प्रेम-बेलि बोई,
मीरा की लगन लागी, होनी हो सो होई। – मीराबाई

(5). मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई,
जाके सिर है मोरपखा मेरो पति सोई। – मीराबाई

रस की विशेषताएँ

रस की कुछ विशेषताएँ निम्नलिखित हैं।

  1. रस स्वप्रकाशानन्द तथा ज्ञान से भरा हुआ है।
  2. रस अखण्ड होता है।
  3. रस न सविकल्पक ज्ञान है, न निर्विकल्पक ज्ञान, अतः अलौकिक है।
  4. रस वे5द्यान्तर सम्पर्क शून्य है अर्थात् रसास्वादकाल में सामाजिक पूर्णतः तन्मय रहता है।
  5. रस ब्रह्मानन्द सहोदर है।
  6. अतः रस का आनन्द ब्रह्मानन्द (समाधि) के समान है।
  7. भाव सुखात्मक दुखात्मक होते हैं, किन्तु जब वे रस रूप में बदल जाते हैं तब आनन्दस्वरूप हो जाते हैं।

रस से संबंधित प्रश्न उत्तर

Q.1 रस के अंग कितने प्रकार के होते है?
A. 3
B. 5
C. 9
D. 4

Ans. 4

Q.2 रस के स्थाई भाव कितने प्रकार के होते है?
A. 4
B. 9
C. 11
D. 8

Ans. 11

Q.3 विभाव को कितने भागो में बाटा गया है?
A. 9
B. 2
C. 10
D. 8

Ans. 2

Q.4 रस कितने प्रकार के होते है?
A. 9
B. 8
C. 11
D. 6

Ans. 11

Q.5 अनुभाव की संख्या कितनी होती है?
A. 33
B. 11
C. 9
D. 8

Ans. 8

Q.6 संचारी भाव की संख्या कितनी है?
A. 11
B. 33
C. 30
D. 32

Ans. 33

Q.7 किसी अन्य भाव द्वारा नष्ट न किये जाने वाले भाव को कौन सा भाव कहते है?
A. अनुभाव
B. स्थायी भाव
C. संचारी भाव
D. विभाव

Ans. स्थायी भाव

Q.8 भरत मुनि के रस सूत्र में निम्नलिखित में से किसका उल्लेख नहीं है?
A. अनुभाव
B. विभाव
C. संचारी भाव
D. शांत भाव

Ans. शांत भाव

Q.9 हास्य रस का स्थायी भाव क्या है?
A. करुण
B. रति
C.शोक
D. हास

Ans. हास

Q.10 वीर रस का स्थायी भाव क्या है?
A. उत्साह
B. जुगुप्सा
C. क्रोध
D. अनुराग

Ans. उत्साह

Q.11 अनुराग किस रस का स्थायी भाव है?
A. रौद्र
B. वात्सल्य
C. करूण
D. भक्ति भाव

Ans. भक्ति भाव

Q.12 भरतमुनि के अनुसार रसो की संख्या हैं?
A. 8
B. 9
C. 10
D. 11

Ans. 8

Q.13 हिंदी आचार्य द्वारा कितने रसो को मान्यता दी गई?
A. एक
B. दो
C. तीन
D. चार

Ans. दो

Q.14 हिंदी आचार्य द्वारा कौन कौन से दो रसो को मान्यता दी गई?
A. शांत और रौद्र
B. श्रंगार और हास्य
C. वात्सल्य और भागवत
D. वात्सल्य और वीभत्स

Ans. वात्सल्य और भागवत

Q.15 करूणा रस का स्थायी भाव क्या है?
A. रति
B. शोक
C. हास
D. अनुराग

Ans. शोक

Q.16 भक्ति रस का स्थायी भाव बताये?
A. भय
B. रति
C. अनुराग
D. आश्चर्य

Ans. अनुराग

Q.17 शोक कौन से रस का स्थायी भाव है?
A. भयानक रस
B. अद्भुद रस
C. शांत रस
D. करूण रस

Ans. करुण रस

Q.18 हिंदी साहित्य का दसवा रस कौन सा है?
A. भयानक रस
B. करुण रस
C. वात्सल्य रस
D. भक्ति रस

Ans. वातसल्य रस

Q.19 शांत रस का स्थायी भाव क्या है?
A. आश्चर्य
B. शोक
C. रति
D. निर्वेद

Ans. निर्वेद

Q.20 अनुभाव के कितने भेद है?
A. एक
B. चार
C. दो
D. तीन

Ans. चार

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हास्य रसरौद्र रसवात्सल्य रस
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