इस पेज पर आप भक्ति रस से संबंधित समस्त जानकारी विस्तार से पढ़ेंगे।
पिछली पोस्ट में हमने करुण रस और शांत रस की परिभाषा शेयर की है तो उस पोस्ट को भी पढ़े।
चलिए आज हम रस की परिभाषा और भक्ति रस के उदाहरण को पढ़ते और समझते हैं।
भक्ति रस की परिभाषा
भगवान के प्रति रति प्रेम को भक्ति रस माना है। इसके आधार पर केवल भगवान से संबंधित प्रेम के ही महत्व को स्वीकार किया जाता है।
भक्ति रस का स्थाई भाव विद्वानों के अनुसार रति/प्रेम है।
कुछ आचार्यों ने भगवान के प्रति श्रद्धा तथा प्रेम के अतिरिक्त पूज्य तथा श्रद्धेय व्यक्ति को भी इसका आलंबन माना है।
साथ ही पित्र भक्ति, गुरु भक्ति आदि को भी सम्मिलित करने की वकालत की है। उनका मानना है जहां प्रेम के साथ पूज्य भाव को सम्मिलित किया जाता है वही भक्ति रस होता है।
भक्ति रस का स्थाई भाव, आलम्बन, उद्दीपन, अनुभाव तथा संचारी भाव
रस का नाम :- भक्ति रस
स्थाई भाव :- रति (प्रेम), अनुराग, दास्य
अनुभाव :-
- सेवा
- अर्चन
- कीर्तन
- वंदना
- गुणगान
- गुण
- श्रवण
- जय-जयकार
- स्तुति वचन
- प्रिय के लिए कष्ट सहना
- कृतज्ञता-प्रकाशन
- शरणागति
- प्रार्थना
- हर्ष
- शोक
- अश्रु
- रोमांच
- कंप।
संचारी भाव :-
- हर्ष
- आशा
- गर्व
- स्तुति
- धृति
- उत्सुकता
- विस्मय
- उत्साह
- हार
- लज्जा
- निर्वेद
- भय
- आशंका
- विश्वास
- संतोष।
भक्ति रस का स्थाई भाव रति (प्रेम), अनुराग आदि को माना गया है।
आलंबन :- भगवान तथा पूज्य व्यक्ति के प्रति श्रद्धा
उद्दीपन :-
- श्रवण
- स्मरण
- सत्संग
- उपकारों का स्मरण
- महानता के कार्य
- कृपा
- दया तथा उनके कष्ट।
यह प्रेम शृंगार रस से भिन्न है, यहां केवल भगवान के प्रति प्रेम, श्रद्धा को ही स्वीकार किया गया है।
भक्ति रस के उदाहरण :-
प्रभु जी तुम चंदन हम पानी
जाकी अंग-अंग बास समानी।
उपर्युक्त पंक्ति में भक्त अपने ईश्वर को चंदन और स्वयं को पानी बता रहा है।
इस पानी में चंदन के होने से पानी का महत्व बढ़ जाता है, जिसे सभी लोग माथे पर धारण करते हैं।
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