सम्प्रदान कारक की परिभाषा, प्रयोग, नियम और उदाहरण

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चलिए आज हम सम्प्रदान कारक की परिभाषा, प्रयोग, नियम और उदाहरण की समस्त जानकारी पढ़ते और समझते हैं।

सम्प्रदान कारक किसे कहते हैं

जिसके लिए कोई क्रिया की जाती हैं या किसी को कुछ दिया जाता है, तो उसे सम्प्रदान कारक कहते है।

दूसरे शब्दों में जिसके लिए कुछ किया जाए या किसी को कुछ दिया जाए, इसका बोध कराने वाले शब्द के रूप को सम्प्रदान कारक कहते है। इसकी विभक्ति ‘को’ और ‘के लिए’ है।

जैसे : 

  • ”वह अरुण के लिए मिठाई लाया।”

इस वाक्य में लाने का काम ‘अरुण के लिए’ हुआ। इसलिए ‘अरुण के लिए’ सम्प्रदान कारक है।

  • शिष्य ने अपने गुरु के लिए सब कुछ किया। 
  • गरीब को धन दीजिए। 

संप्रदान कारक के नियम

1. कर्म और सम्प्रदान का एक ही विभक्ति प्रत्यय होता है ‘को’, पर दोनों के अर्थो में काफी अन्तर होता है।

2. सम्प्रदान का ‘को’, ‘के लिए’ अव्यय के स्थान पर या उसके अर्थ में प्रयोग किया जाता है, जबकि कर्म के ‘को’ का ‘के लिए’ अर्थ से कोई सम्बन्ध नहीं होता है।

नीचे लिखे वाक्यों पर ध्यान दीजिए : 

कर्म सम्प्रदान
हरि मोहन को मारता है। हरि मोहन को रुपये देता है।
उसके लड़के को बुलाया। उसने लड़के को मिठाइयाँ दी।
माँ ने बच्चे को खेलते देखा। माँ ने बच्चे को खिलौने खरीदे।

2. अगर किसी को कुछ दिया जाता है या किसी के लिए कोई काम किया जाता है, वह सम्प्रदानकारक होता है। 

जैसे : 

  • भूखों को अन्न देना चाहिए और प्यासों को जल। 
  • गुरु ही शिष्य को ज्ञान देता है।

3. ‘के हित’, ‘के वास्ते’, ‘के निर्मित’ आदि अव्यय भी सम्प्रदान कारक के ही प्रत्यय होते है। 

जैसे :

  • राम के हित में लक्ष्मण वन गये थे। 
  • तुलसी के वास्ते ही राम ने अवतार लिया था।
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कर्म कारकसम्बन्ध कारक
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