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चलिए आज हम अपादान कारक की समस्त जानकारी पढ़ते और समझते हैं।
अपादान कारक किसे कहते हैं
जब किसी स्थिर वस्तु से कोई वस्तु अलग होती हैं तब स्थिर वस्तु को आपादान कारक और अलग हुई वस्तु को कर्ता कारक कहा जाता हैं।
दूसरे शब्दों में संज्ञा के जिस रूप से किसी वस्तु के अलग होने का बोध होता है, उसे अपादान कारक कहा जाता है।इसकी विभक्ति ‘से’ होती है।
तीसरे शब्दों में संज्ञा के जिस रूप से एक वस्तु का दूसरी से अलग होना पाया जाए वह अपादान कारक कहलाता है। इसका हिन्दी पर्याय ‘से’ है। कर्त्ता अपनी क्रिया द्वारा जिससे अलग होता है, उसे अपादान कारक कहते हैं।
जैसे :
”दूल्हा घोड़े से गिर पड़ा”
इस वाक्य में ‘गिरने’ की क्रिया ‘घोड़े से’ हुई अथवा गिरकर दूल्हा घोड़े से अलग हो गया हैं। इसलिए यहां ‘घोड़े से’ अपादानकारक होगा।
जिस शब्द में अपादान का विभक्ति प्रत्यय लगता है, उससे किसी दूसरी वस्तु के अलग होने का बोध होता है।
जैसे :
“पेड़ से आम गिरा”
इस वाक्य में ‘पेड़’ अपादान अवस्था में है, क्योंकि आम पेड़ से गिरा अर्थात अलग हुआ है।
जैसे :
- बच्चा छत से गिर पड़ा।
- संगीता घर से चल पड़ी।
इन दोनों वाक्यों में ‘छत से’ और घर ‘से’ गिरने में अलग होना प्रकट होता है। अतः घर से और छत से अपादान अवस्था में हैं।
जैसे :
- हिमालय से गंगा निकलती है।
- मोहन ने घड़े से पानी ढाला।
- बिल्ली छत से कूद पड़ी।
- चूहा बिल से बाहर निकला।
- चोर पुलिस से डरता है।
- विद्यार्थी अध्यापक से सीखते है।
- वह ससुर से लजाती है।
- पृथ्वी सूर्य से दूर है।
- बच्चा छत से गिर पड़ा।
- संगीता घर से चल पड़ी।
उम्मीद हैं आपको अपादान कारक की जानकारी पसंद आयी होगी।
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