अधिकरण कारक की परिभाषा, नियम और उदाहरण

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चलिए आज हम अधिकरण कारक की परिभाषा, नियम और उदाहरण की समस्त जानकारी पढ़ते और समझते हैं।

अधिकरण कारक किसे कहते हैं

शब्द के जिस रूप से क्रिया के आधार का बोध होता है, उसे अधिकरण कारक कहते है।

दूसरे शब्दों में क्रिया या आधार को सूचित करने वाली संज्ञा या सर्वनाम के रूप को अधिकरण कारक कहते है। इसकी विभक्ति ‘में’ और ‘पर’ होती हैं।

जैसे :

  • मोहन मैदान में खेल रहा है।

इस वाक्य से यह प्रश्न उठता हैं कि ‘खेलने’ की क्रिया किस स्थान पर हो रही है ? तो उत्तर हैं “मैदान में”। इसलिए मैदान में अधिकरण कारक होगा।

  • ”मनमोहन छत पर खेल रहा है।” 

इस वाक्य में ‘खेलने’ की छत पर हो रही है। इसलिए यहां ‘छत पर’ अधिकरणकारक होगा।

अधिकरण कारक से जुड़े नियम

अधिकरणकारक के प्रयोग से जुड़े नियम निम्नलिखित हैं।

1. कभी-कभी ‘में’ के अर्थ में ‘पर’ और ‘पर’ के अर्थ में ‘में’ का प्रयोग भी किया जाता है।

जैसे : 

  • तुम्हारे घर पर चार आदमी हैं इसके अलावा तुम्हारे घर में चार आदमी हैं। 
  • दूकान पर कोई नहीं था इसके अलावा दुकान में कोई नहीं था।
  • नाव पानी में तैरता है इसके अलावा नाव पानी पर तैरता है।

2. कभी-कभी अधिकरणकारक की विभक्तियों का लोप भी हो जाता है।

जैसे :

  • इन दिनों वह पटना है।
  • वह संध्या के समय गंगा के किनारे जाता है। 
  • वह द्वार द्वार भीख माँगता चलता है। 
  • लड़के दरवाजे-दरवाजे घूम रहे हैं। 
  • जिस समय वह आया था, उस समय मैं नहीं था। 
  • उस जगह एक सभा होने जा रही है।
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