अनुप्रास अलंकार की परिभाषा, प्रकार और उदाहरण

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चलिए आज हम अनुप्रास अलंकार की समस्त जानकारी पढ़ते और समझते हैं।

अनुप्रास अलंकार क्या होता है

अनुप्रास शब्द ‘अनु’ और ‘प्रास’ शब्दों के जोड़ने से बना है। ‘अनु’ का मतलब होता है बार-बार तथा ‘प्रास’ का मतलब वर्ण होता है। अतः जहाँ स्वर की समानता के बिना भी वर्णों की आवृत्ति बार-बार होती है, वहाँ अनुप्रास अलंकार होता है।

इस अलंकार में एक ही वर्ण का बार-बार उपयोग किया जाता है। 

जैसे : 

1. जन रंजन मंजन दनुज मनुज रूप सुर भूप।
विश्व बदर इव धृत उदर जोवत सोवत सूप।।

2. मुदित महीपति मंदिर आए। सेवक सचिव सुमंत्र बुलाए।

अनुप्रास अलंकार के प्रकार

अनुप्रास अलंकार के मुख्यतः पांच प्रकार होते हैं:-

  1. छेकानुप्रास अलंकार
  2. वृत्यानुप्रास अलंकार
  3. लाटानुप्रास अलंकार
  4. अन्त्यानुप्रास अलंकार
  5. श्रुत्यानुप्रास अलंकार

1. छेकानुप्रास अलंकार 

जहाँ पर स्वरुप और क्रम से अनेक व्यंजनों की आवृति एक बार हो उसे छेकानुप्रास अलंकार कहते है।

जैसे : 

1. रीझि रीझि रहसि रहसि हँसि हँसि उठै।
साँसैं भरि आँसू भरि कहत दई दई।

2. बंदउँ गुरु पद पदुम परागा,
सुरुचि सुवास सरस अनुरागा।

2. वृत्यानुप्रास अलंकार 

जब एक व्यंजन की आवर्ती अनेक बार हो तब उसे वृत्यानुप्रास अलंकार कहते हैं।

जैसे : 

1. “चामर- सी ,चन्दन – सी, चंद – सी,
चाँदनी चमेली चारु चंद- सुघर है।”

2.  सपने सुनहले मन भाये। 

3. सेस महेस गनेस दिनेस सुरेसहु जाहि निरन्तर गावैं। 

3. लाटानुप्रास अलंकार 

जहाँ शब्द और वाक्यों की आवर्ती हो और हर एक जगह पर अर्थ भी वही लेकिन अन्वय करने पर भिन्नता आ जाये तब उसे लाटानुप्रास अलंकार कहते है। 

जैसे : 

1. तेगबहादुर, हाँ, वे ही थे गुरु-पदवी के पात्र समर्थ,
तेगबहादुर, हाँ, वे ही थे गुरु-पदवी थी जिनके अर्थ।

2. वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे। 

4. अन्त्यानुप्रास अलंकार 

जहाँ वाक्य के अंत में तुक मिलता हो तब उसे अन्त्यानुप्रास अलंकार कहते है।

जैसे :

लगा दी किसने आकर आग।
कहाँ था तू संशय के नाग।।

5. श्रुत्यानुप्रास अलंकार 

जहाँ पर कानों को मधुर लगने वाले वर्णों की आवर्ती तब उसे श्रुत्यानुप्रास अलंकार कहते है।

जैसे :

दिनान्त था, थे दीननाथ डुबते,
सधेनु आते गृह ग्वाल बाल थे।

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