इस पेज पर आज हम स्वर की परिभाषा, प्रकार और उदाहरण की समस्त जानकारी पढ़ने वाले हैं तो आर्टिकल को पूरा जरूर पढ़िए।
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चलिए आज हम स्वर की परिभाषा, प्रकार और उदाहरण की समस्त जानकारी पढ़ना शुरू करते हैं।
स्वर किसे कहते हैं
जिन वर्णों को स्वतन्त्र रूप से बोला जा सके उसे स्वर कहते हैं। स्वर उन ध्वनियों को कहते हैं जो बिना किसी अन्य वर्णों की सहायता के उच्चारित किये जाते हैं।
हिंदी में स्वर का उच्चारण बिना रुके लगातार होता है लेकिन व्यंजनों का उच्चारण लगातार नहीं होता है। ‘क’ वर्ण को लगातार बोलते रहने से अंत में ‘अ’ की ध्वनि सुनाई देती है।
स्वर की परिभाषा
जिन वर्णों का उच्चारण करते समय साँस, कण्ठ, तालु आदि स्थानों से बिना रुके हुए निकलती है उन्हें ‘स्वर’ कहा जाता हैं।
उदाहरण :-
स्वर :- अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ (10)
अनुस्वर :- अं, अः (2)
अर्धस्वर :- ऋ (1)
स्वरों का वर्गीकरण
स्वरों का वर्गीकरण 6 प्रकार से होता हैं जो निम्नलिखित हैं।
(1). मात्रा या उच्चारण काल के आधार पर
(i). ह्रस्व स्वर
(ii). दीर्घ स्वर
(iii). प्लुत स्वर
(2). योग या रचना के आधार पर
(i). मूल स्वर
(ii). संयुक्त स्वर / संहित स्वर
(3). जिह्वा की आड़ी स्थिति के आधार पर
(i). अग्र स्वर
(ii). मध्य या केंद्रीय स्वर
(iii). पश्च स्वर
(4). जिह्वा की खड़ी स्थिति या मुख द्वार खुलने-बन्द होने के आधार पर
(i). विवृत
(ii). अर्ध विवृत
(iii). संवृत
(iv). अर्ध संवृत
(5). ओष्ठों की स्थिति के आधार पर
(i). वर्तुल या वृत्तमुखी
(ii). अवर्तुल या प्रसृत या आवृतमुखी
(iii). अर्द्धवर्तुल
(6). जिह्वा पेशियों के तनाव के आधार पर
(i). शिथिल
(ii). कठोर
स्वर के प्रकार
वैदिक काल में ध्वनि मापन की इकाई मात्रा थी इसी मापन के आधार पर ही स्वरों का विभाजन किया गया था।
1. मात्रा या उच्चारण काल के आधार पर
उच्चारण काल या मात्रा के आधार पर स्वरों की संख्या 11 है।
इनको तीन भागों में बांटा गया हैं।
- ह्रस्व स्वर
- दीर्घ स्वर
- प्लुत स्वर
(i). ह्रस्व स्वर :- जिन स्वरों के उच्चारण में कम समय लगता हैं उन्हें ह्रस्व स्वर कहाँ जाता हैं।
ह्रस्व स्वर चार होते हैं।
जैसे:- अ, आ, उ, ऋ
(ii). दीर्घ स्वर :- ऐसे स्वर जिनके उच्चारण में ह्रस्व से भी दुगुना समय लगता हैं दीर्घ स्वर कहलाते हैं।
दीर्घ स्वर की संख्या सात होती हैं।
जैसे :- आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ
दीर्घ स्वर दो शब्दों के मेल से बनते हैं।
जैसे :-
- अ + आ = आ
- इ + ई = ई
- उ + ऊ = ऊ
- अ + ई = ए
- अ + ए = ऐ
- अ + उ = ओ
- अ + ओ = औ
(iii). प्लुत स्वर :- ऐसे स्वर जिनके उच्चारण में तिगुना समय लगे प्लुत स्वर कहलाते हैं।
इसका चिह्न (ऽ) है। इसका प्रयोग अकसर पुकारते समय किया जाता हैं।
प्लुत स्वर को उल्टा एस या हिंदी के 3 से प्रदर्शित करते हैं।
जैसे :- ओ३म, रो३म, भै३या आदि।
2. योग या रचना के आधार पर स्वरों के प्रकार
बनावट या रचना के आधार पर स्वरों की संख्या 11 है।
इनको 2 भागों में बांटा गया है।
- मूल स्वर
- संयुक्त स्वर
(i). मूल स्वर :- वे स्वर जिनकी रचना स्वयं से हुई है अर्थात ये किसी अन्य स्वरों के मिलाने से नहीं बने हैं, मूल स्वर कहलाते हैं।
इनकी संख्या 4 है। अर्थात मूल स्वर हृस्व स्वर हैं।
जैसे:- अ, इ, उ, ऋ
(ii). संयुक्त स्वर :- वे स्वर जिनकी रचना दूसरों स्वरों से हुई है अर्थात यह किसी अन्य स्वरों के मिलाने से बने हैं, संयुक्त स्वर या संहित स्वर कहलाते हैं।
इनकी संख्या 4 हैं।
जैसे:- ए, ऐ, ओ, औ
- अ + ए = ऐ
- अ + ओ = औ
3. जिह्वा की आड़ी स्थिति के आधार पर
जीभ की आड़ी स्थिति यह जीभ के प्रयोग के आधार पर स्वरों को तीन भागों में बांटा गया है।
(i). अग्र स्वर :- जिन स्वरों के उच्चारण में जीभ का आगे का हिस्सा उठता है, अग्र स्वर कहलाते हैं।
इनकी संख्या 4 हैं।
जैसे:- इ, ई, ए, ऐ
(ii). मध्य या केंद्रीय स्वर :- जिन स्वरों के उच्चारण में जीभ के बीच का हिस्सा उठता है, मध्य या केंद्रीय स्वर कहलाते हैं।
इनकी संख्या 1 हैं।
जैसे:- अ
(iii). पश्च स्वर :- जिन स्वरों के उच्चारण में जीभ के पीछे का हिस्सा उठता है, पश्च स्वर कहलाते हैं।
इनकी संख्या 5 हैं।
जैसे:- आ, उ, ऊ, ओ, औ
4. मुख द्वार खुलने या बन्द होने के आधार पर
मुख्य द्वार के खुलने बंद होने के आधार पर या जीभ की खड़ी स्थिति के आधार पर स्वरों को चार भागों में बांटा गया है।
(i). विवृत :- जिन स्वरों के उच्चारण में मुख द्वार सबसे अधिक खुला होता है, विवृत स्वर कहलाते हैं।
इनकी संख्या 1 है।
जैसे:- आ
(ii). अर्ध विवृत :- जिन स्वरों के उच्चारण में मुख द्वार विवृत के तुलना में कम खुला होता है, अर्ध विवृत कहलाते हैं।
इनकी संख्या 4 है।
जैसे:- अ, ऐ, ओ, औ
(iii). संवृत :- जिन स्वरों के उच्चारण में मुख द्वार सबसे कम खुलता है, संवृत स्वर कहलाते हैं।
इनकी संख्या 4 है।
जैसे:- इ, ई, उ, ऊ
(iv). अर्ध संवृत :- जिन स्वरों के उच्चारण में मुख द्वार संवृत की तुलना में अधिक खुलता है, अर्ध संवृत कहलाते हैं।
इनकी संख्या 2 है।
जैसे:- ए, ओ
Note :- ओ को अर्ध विवृत और अर्ध संवृत दोनो में सम्मिलित किया गया है।
5. ओष्ठों की स्थिति के आधार पर
ओष्ठ की स्थिति के आधार पर स्वरों को दो भागों में बांटा गया है।
(i). वर्तुल या वृत्त मुखी स्वर :- जिन स्वरों के उच्चारण में ओष्ठों की स्थिति वर्तुलाकार लगभग वृत्त के समान हो जाती है, वर्तुल या वृत्त मुखी स्वर कहलाते हैं।
इनकी संख्या 4 है।
जैसे :- उ, ऊ, ओ, औ
(ii). अवर्तुल या प्रसृत या आवृतमुखी स्वर :- जिन स्वरों के उच्चारण में ओष्ठों की स्थिति दीर्घवृत्त के समान हो अर्थात वर्तुल आकर न बने, अव र्तुल या आवृत्त मुखी स्वर कहलाते हैं।
इनकी संख्या 4 है।
जैसे :- इ, ई, ए, ऐ
(iii). अर्द्ध वर्तुल स्वर :- जिन स्वरों के उच्चारण में ओष्ठों की स्थिति अर्द्ध वर्तुलाकार हो, वृत्त मुखी स्वर कहलाते हैं।
6. जिह्वा पेशियों के तनाव के आधार पर
(i). शिथिल स्वर :- ऐसे स्वर जिनके उच्चारण में जीभ की पेशियों में तनाव नहीं पड़ता है, अर्थात उच्चारण करने में जिह्वा को कोई मेहनत नहीं पड़ती, शिथिल स्वर कहलाते हैं।
इनकी संख्या 3 है।
जैसे:- अ, इ, उ
(ii). कठोर स्वर :- ऐसे स्वर जिनके उच्चारण में जीभ की पेशियों में तनाव पड़ता है, अर्थात उच्चारण करने में जिह्वा को मेहनत अधिक पड़ती, कठोर स्वर कहलाते हैं।
इनकी संख्या 3 है।
जैसे:- आ, ई, ऊ
7. उच्चारण स्थान के आधार पर
इसके आधार पर स्वरों को निम्न प्रकार से उनके उच्चारण स्थान बांटा गया है।
उच्चारण स्थान | स्वर |
---|---|
कंठ | अ, आ, अः |
तालु | इ, ई |
मूर्धा | ऋ |
ओष्ठ | उ, ऊ |
नासिका | अं |
कंठ + तालु | ए, ऐ |
कंठ + ओष्ठ | ओ, औ |
8. स्वर तंत्रियों के कंपन / घोष के आधार पर
स्वर तंत्रियों के कंपन के आधार पर वर्णों को दो भागों में बांटा जाता है घोष वर्ण एवं अघोष वर्ण।
सभी स्वर घोष वर्ण के अंतर्गत आते हैं। इन्हें मृदु या कोमल स्वर कहते हैं। अतः स्वर तंत्रियों के कंपन के आधार पर स्वरों का एक ही प्रकार है।
(i). कोमल या मृदु स्वर :- सभी स्वर घोष वर्ण के अंतर्गत आते हैं। इन्हें कोमल स्वर या मृदु स्वर कहते हैं।
अनुनासिक, निरनुनासिक, अनुस्वार और विसर्ग
अनुनासिक, निरनुनासिक, अनुस्वार और विसर्ग- हिन्दी में स्वरों का उच्चारण अनुनासिक और निरनुनासिक होता हैं। अनुस्वार और विर्सग व्यंजन हैं, जो स्वर के बाद, स्वर से स्वतंत्र आते हैं।
इनके संकेत चिह्न इस प्रकार हैं।
अनुनासिक (ँ) :– ऐसे स्वरों का उच्चारण नाक और मुँह से होता है और उच्चारण में लघुता रहती है।
जैसे :- गाँव, दाँत, आँगन, साँचा इत्यादि।
अनुस्वार ( ं) :- यह स्वर के बाद आनेवाला व्यंजन है, जिसकी ध्वनि नाक से निकलती है।
जैसे :- अंगूर, अंगद, कंकन।
निरनुनासिक :- केवल मुँह से बोले जानेवाला सस्वर वर्णों को निरनुनासिक कहते हैं।
जैसे :- इधर, उधर, आप, अपना, घर इत्यादि।
विसर्ग( ः) :- अनुस्वार की तरह विसर्ग भी स्वर के बाद आता है। यह व्यंजन है और इसका उच्चारण ‘ह’ की तरह होता है। संस्कृत में इसका काफी व्यवहार है।
हिन्दी में अब इसका अभाव होता जा रहा है; किन्तु तत्सम शब्दों के प्रयोग में इसका आज भी उपयोग होता है।
जैसे :- मनःकामना, पयःपान, अतः, स्वतः, दुःख इत्यादि।
टिप्पणी :- अनुस्वार और विसर्ग न तो स्वर हैं, न व्यंजन; किन्तु ये स्वरों के सहारे चलते हैं। स्वर और व्यंजन दोनों में इनका उपयोग होता है।
जैसे :- अंगद, रंग।
इस सम्बन्ध में आचार्य किशोरी दास वाजपेयी का कथन है कि ”ये स्वर नहीं हैं और व्यंजनों की तरह ये स्वरों के पूर्व नहीं पश्र्चात आते हैं, ”इसलिए व्यंजन नहीं”।
इसलिए इन दोनों ध्वनियों को ‘अयोग वाह’ कहते हैं।” अयोग वाह का अर्थ है- योग न होने पर भी जो साथ रहे।
अनुनासिक और अनुस्वार में अन्तर
अनुनासिक | अनुस्वार |
---|---|
अनुनासिक के उच्चारण में नाक से बहुत कम साँस निकलती हैं और मुँह से अधिक साँस निकलती हैं। जैसे :- आँसू, आँत, गाँव, चिड़ियाँ इत्यादि। | अनुस्वार के उच्चारण में नाक से अधिक साँस निकलती हैं और मुख से कम साँस निकलती हैं। जैसे :- अंक, अंश, पंच, अंग इत्यादि। |
अनुनासिक स्वर की विशेषता हैं। | अनुस्वार एक व्यंजन ध्वनि हैं। |
अनुनासिक स्वरों पर चन्द्र बिन्दु लगता हैं। | अनुस्वार की ध्वनि प्रकट करने के लिए वर्ण पर बिन्दु लगाया जाता है। लेकिन, तत्सम शब्दों में अनुस्वार लगता है और उनके तद्भव रूपों में चन्द्र बिन्दु लगता हैं। |
स्वर की विशेषताएं
- स्वर तंत्रियों में अधिक कंपन होता है।
- उच्चारण में मुख विवर थोड़ा-बहुत अवश्य खुलता है।
- जिह्वा और ओष्ट परस्पर स्पर्श नहीं करते।
- बिना व्यंजनों के स्वर का उच्चारण कर सकते हैं।
- स्वराघात की क्षमता केवल स्वरूप को होती है
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