इस पोस्ट में आप कहावत से संबंधित समस्त जानकारी पढ़ेंगे तो पोस्ट को पूरा जरूर पढ़ें।
पिछले पोस्ट में हमने मुहावरे से संबंधित जानकारी शेयर की है तो उसे भी जरूर पढ़ें।
चलिए आज हम कहावत की परिभाषा, विशेषताएँ और उदाहरण की जानकारी को पढ़ते और समझते हैं।
कहावत किसे कहते हैं
“कहावत” का अर्थ कही हुई बात होता है। जिस पद समूह में अनुभव की गई कोई बात सुंदर और प्रभावशाली ढंग से कही जाती है उसे कहावत कहते हैं।
कहावतों की मुख्य विशेषताएँ
निम्नलिखित विशेषताओं के आधार पर हम किसी वाक्यांश को कहावत कह सकते हैं।
- इनमें थोड़ी सी बात में बहुत कुछ कह दिया जाता हैं।
- यह किसी भी भाषा के स्वरूप को निखारती हैं।
- इसका प्रयोग करने से भाषा आसान, प्रभावी और कलात्मक बनती हैं।
- इनका आधार घटना और परिस्थिति होती हैं।
कहावत के उदाहरण
1. अधजल गगरी छलकत जाए : थोड़ी जानकारी वाला बढ़ चढ़कर बोलता है।
2. घर की मुर्गी दाल बराबर : अपने पास की चीज का महत्व नहीं होता।
3. ऊंची दुकान फीके पकवान : सिर्फ बाहरी दिखावा करना।
4. चोर चोर मौसेरे भाई : बुरे आदमियों का परस्पर संबंध हो जाता है।
5. डूबते को तिनके का सहारा : असहाय को थोड़ा भी सहारा काफी होता है।
6. आगे नाथ न पीछे पगहा : बिना जिम्मेवारी का होना।
7. खोदा पहाड़ निकली चुहिया : परिश्रम बहुत करना, लेकिन लाभ कम पाना।
8. एक पंथ दो काज : एक बार में दो काम होना।
9. अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता : अकेला आदमी कोई बड़ा काम नहीं कर सकता।
10. आंख का अंधा गांठ का पूरा : मूर्ख धनवान होना।
11. जिसकी लाठी उसकी भैंस : बलवानों का बोलबाला।
12. काला अक्षर भैंस बराबर : अक्षर ज्ञान से बिल्कुल शून्य होना।
13. खाली दिमाग शैतान का घर : जो मनुष्य बेकार होता है उसे तरह-तरह के खुराफात सूझते हैं।
14. एक आवे के बर्तन : सबका एक जैसा होना।
15. ऊंट घोड़े बहे जाए गधा कहे कितना पानी : जब किसी काम को शक्तिशाली लोग ना कर सके और कोई कमजोर आदमी उसे करना चाहे।
16. एक और एक ग्यारह होते हैं : एकता में बहुत शक्ति होती है।
17. अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारना : ऐसा काम करना जिसे खुद को बहुत हानि हो।
18. अंडे सेना : घर में बेकार बैठे रहना।
19. गिरगिट की तरह रंग बदलना : अपना व्यवहार बदलते रहना।
20. अपना अहित स्वयं करना : उंगली उठाना।
21. एक लख पूत सवा लख नाती, ता रावण घर दिया न बाती : धनी व्यक्ति का पूरी तरह विनाश हो जाना।
22. समय पाय तरुवर फले, कतवो सीचे नीर : प्रत्येक काम एक निश्चित समय पर पूरा होता है।
23. अपना रख पराया चख : अपनी चीज संभाल कर रखना और दूसरों की चीज को इस्तेमाल करना।
24. गए थे रोजा छुड़ाने नमाज गले पड़ी : कोई व्यक्ति छोटा कष्ट दूर करने की कोशिश करता है और बड़े कष्ट में फंस जाता है।
25. सौ सुनार की एक लोहार की : महत्वपूर्ण कार्य कई बेकार कार्यों से अच्छे होते हैं।
26. आंखों का पानी ढलना : बेशर्म होना।
27. सौ चूहे खाकर बिल्ली चली हज को : धूर्त व्यक्ति द्वारा दिखावे के लिए किया गया अच्छा काम।
28. बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद : मूर्ख व्यक्ति अच्छी और मूल्यवान वस्तु का मोल नहीं जान सकता।
29. अपनी नाक कटे तो कटे दूसरों का शगुन तो बिगड़े : दुष्ट लोग दूसरों का नुकसान करते हैं भले ही उनका अपना कितना ही नुकसान हो जाए।
30. अंगारों पर पैर रखना : जोखिम लेना।
31. गुड़ होगा तो मक्खियां भी आएंगी : यदि पास में धन होगा तो खाने वाले भी पास आएंगे।
32. चूं-चूं का मुरब्बा : बेमेल चीजों का योग।
33. सौ सयाने एक मत : बुद्धिमान लोग एकमत होकर काम करते हैं।
34. अपनी नींद सोना, अपनी नींद जागना : स्वतंत्र होना।
35. आद्रा में जो बोवै साठी, दु:खै मारि निकारै लाठी : जो किसान आद्रा में धान बोता है वह दुख को लाठी मारकर भगा देता है।
36. फुकने से पहाड़ नहीं उड़ते : बड़े काम छोटे उद्योग से नहीं होते।
37. आज का बनिया कल का सेठ : काम करने से आदमी बड़ा हो जाता है।
38. आग लगने पर कुआं खोदना : पहले से कोई उपाय न रखना।
39. आसमान के तारे तोड़ना : असंभव कार्य करना।
40. नदी नाव का संयोग : दुर्लभ मिलाप।
41. अंतड़ियां कुलबुलाना : बहुत भूख लगना।
42. आसमान से गिरा खजूर पर अटका : एक मुसीबत से निकले तो दूसरी मुसीबत में फंस जाना।
43. ओने पौने करना : थोड़ा बहुत जितना भी लाभ हो बेच देना।
44. आंखों में धूल झोंकना : धोखा देना।
45. चट मंगनी पट ब्याह : जल्दी से अपना काम पूरा कर देना।
46. उल्टे बांस बरेली को : असंभव काम करने की कोशिश करना।
47. कबीर दास की उल्टी वाणी, बरसे कंबल भीगे पानी : उल्टा काम।
48. आसपास बरसे दिल्ली पड़ी तरसे : जिसे आवश्यकता हो उसे ना मिलकर किसी और को मिलना।
49. अभी तो तुम्हारे दूध के दांत भी नहीं टूटे : अभी तो तुम्हारी उम्र कम है और अभी तुम बच्चे हो।
50. उंगली पकड़ कर पहुंचा पकड़ना : जरा सा सहारा मिलते ही कुछ और पाने की इच्छा करना।
51. आगे कुआं पीछे खाई : सभी ओर मुसीबत होना।
52. अढ़ाई हाथ की लकड़ी, नौ हाथ का बीज : अनहोनी बात होना।
53. चूर रहना : डूबा रहना, मस्त रहना।
54. गैर का सिर कद्दू बराबर : दूसरे की विपत्ति को कोई नहीं समझता है।
55. आई तो ईद, न आई तो जुम्मेरात, आई तो रोज़ी नहीं तो राजा : आमदनी हुई तो मौज ही मौज नहीं तो फाका ही सही।
56. ऐसे बूढ़े बैल को कौन बांध भूसा देय : एक समय में एक ही काम हाथ में लेना चाहिए।
57. आड़े हाथों लेना : बातों से लज्जित कर देना।
58. अन्न जल उठ जाना : किसी जगह से चले जाना।
59. देसी मुर्गी विलायती बोल : बिना मेल के।
60. अब सतवंती हो कर बैठी लूट लिया सारा संसार : सारी उम्र तो व्यक्ति बुरे काम करता रहा और बाद में संत बन कर बैठ जाए।
61. अब तब करना : टाल देना।
62. अक्ल मारी जाना : समय पर बुद्धि का काम ना करना।
63. आदमी जाने बसे, सोना जाने कसे : व्यक्ति व्यवहार से और सोना कसौटी पर कसने से पहचाना जाता है।
64. थोथा चना बाजे घना : दिखावा बहुत करना परन्तु सार न होना।
65. जंगल में मोर नाचा किसने देखा : कोई ऐसे स्थान में अपना गुण दिखावे जहां कोई उसका समझने वाला न हो।
66. उपजति एक संग जल माही, जलज जोंक जिमि गुण विलगाही : एक पिता के बेटे भी एक जैसे नहीं होते।
67. खाइए मनभाता, पहनिये जगभाता : अपने को अच्छा लगे वह खाना खाना चाहिए और जो दूसरों को अच्छा लगे वह कपड़ा पहनना चाहिए।
68. अंडा सीखावे बच्चे को चीं-चीं मत कर : छोटे का बड़े को उपदेश देना।
69. नक्कारखाने में तूती की आवाज : कमजोर के प्रति उदासीनता।
70. आंखें चार होना : आमने सामने होना।
71. इतिश्री होना : अंत होना।
72. चप्पा-चप्पा छान डालना : हर जगह देख आना।
73. अपनी दुनिया अलग बसाना : अपनों से दूर जाकर गृहस्थी बसा कर रहना।
74. सांप भी मारा लाठी भी न टूटी : बिना किसी नुकसान के काम बन जाना।
75. चंद्रमा बलवान होना : भाग्य अनुकूल होना।
76. अपनी जान से हाथ धोना : जान देना, मरना।
77. गुरु कीजै जान, पानी पीजे छान : कोई भी चीज अच्छी तरह जांच कर लेनी चाहिए।
78. उड़ती चिड़िया पहचानना : मन की बात जान जाना।
79. आंख बची और माल दोस्तों का : पलक झपकने से माल गायब हो सकता है।
80. आंच न आने देना : जरा सा भी कष्ट नहीं आने देना।
81. कभी नाव गाड़ी पर, कभी गाड़ी नाव पर : समय पर एक दूसरे की सहायता की आवश्यकता पड़ती है।
82. चलता करना : भगा देना।83. आकाश से बातें करना : बहुत ऊंचा होना।
84. मुख में राम बगल में छुरी : कपटी या धोखेबाज आदमी।
85. अंजर पंजर ढीला होना : अंग-अंग ढीला होना।
86. उसी की जूती उसी का सर : किसी को उसी की युक्ति से बेवकूफ बनाना।
87. घी खिचड़ी होना : आपस में अत्यधिक मेल होना।
88. ऐरा गैरा नत्थू खैरा : मामूली आदमी।
89. अंग-अंग खिल उठना : प्रसन्न हो जाना।
90. घर में भूंजी भांग न होना : घर में कुछ धन दौलत न होना।
91. खेलने खाने के दिन : बचपन या जवानी का समय जब मनुष्य चिंता मुक्त जीवन व्यतीत करता है।
92. भैंस के आगे बीन बजाए भैंस बैठ पगुराय : मूर्ख पर उपदेश का कोई असर नहीं होता है।
93. आठ-आठ आंसू रोना : बहुत पछतावा होना।
94. उतर गई लोई तो क्या करेगा कोई : जब इज्जत ही नहीं है तो डर किसका?
95. अपना-अपना राग अलापना : अपनी ही बातें कहना।
96. उल्टी गंगा पहाड़ चली : असंभव काम करने की कोशिश करना।
97. अपना गांठ पैसा तो, पराया आसरा कैसा : आदमी स्वयं समर्थ हो तो किसी दूसरे पर आश्रित क्यों रहेगा?
98. जंगल में मंगल : हर परिस्थिति में प्रसन्न रहना।
99. अंटी मारना : चाल चलना।
100. नदी में रहकर मगरमच्छ से बैर : अपने को आश्रय देने वाले से ही शत्रुता करना।
101. गेहूं के साथ घुन भी पिसता है : अपराधियों के साथ निरपराध व्यक्ति भी दंड पाते हैं।
102. छूछा कोई न पूछा : गरीब आदमी का आदर-सत्कार कोई नहीं करता।
103. इधर ना उधर यह बला किधर : कोई न मरे न उसे आराम हो।
104. गुड़ खाएं गुलगुले से परहेज : कोई बड़ी बुराई करना और छोटी से बचना।
105. चाक चौबंद : हर दृष्टि से होशियार और चतुर होना।
106. अपने मुंह मियां मिट्ठू होना : अपने मुंह से अपनी प्रशंसा करना।
107. आकाश कुसुम : अनहोनी बात।
108. आंख खुलना : सावधान होना।
109. घोड़ा बेचकर सोना : खूब निश्चिंत होकर सोना।
110. जैसा देश वैसा वेश : जहां रहना हो वही की रीतियों के अनुसार व्यवहार करना चाहिए।
111. पांचों अंगुलियां बराबर नहीं होती : सभी आदमी एक जैसे नहीं होते।
112. अक्ल का दुश्मन : मूर्ख।
113. गोता खाना : धोखा खाना।
114. फल से लदी डाली नीचे झुक जाती है : गुरु मान व्यक्ति विनम्र होते हैं।
115. अकल बड़ी या भैंस : बुद्धि बल से बड़ी होती है।
116. आंखों में गड़ जाना : पाने की इच्छा होना, बुरा लगना।
117. अच्छे आना : शुभ अवसर पर किसी के यहां पहुंचना।
118. घी खाया बाप ने सूंघो मेरा हाथ : दूसरों की कीर्ति पर डींग मारने वाले।
119. गुड़ गोबर कर देना : बना बनाया काम बिगाड़ देना।
120. आंख के अंधे नाम नयनसुख : नाम बड़ा होना और व्यक्ति का व्यवहार उसके विपरीत होना।
121. अपनी गरज बावली : स्वार्थ में आदमी दूसरों की चिंता नहीं करता।
122. जीभ और थैली को बंद ही रखना अच्छा है : कम बोलने और कम खर्च करने से बड़ा लाभ होता है।
123. अपनी अपनी खाल में सब मस्त : व्यक्ति अपनी परिस्थिति से संतुष्ट रहे, शिकायत ना करें।
124. अंधेर नगरी : जहां धांधली हो।
125. करनी ना करतूत, लड़ने को मजबूत : जो व्यक्ति काम तो कुछ ना करें पर लड़ने झगड़ने में तेज हो।
126. आंख एक नहीं कजरौटा दस दस : बेकार का नाटक करना।
127. आठ कनौजिया नौ चूल्हे : अलगाव की स्थिति होना।
128. अब की अब के साथ, जब की जब के साथ : सदा वर्तमान में रहना चाहिए और आज की ही चिंता करनी चाहिए।
129. अढ़ाई चावल की खिचड़ी अलग पकाना : सबसे अलग सोच विचार रखना।
130. अपना-अपना कमाना, अपना-अपना खाना : किसी के साथ साझा करना अच्छा नहीं होता।
131. चांदी कटना : खूब लाभ होना।
132. आदमी पानी का बुलबुला है : मनुष्य का जीवन नाशवान है इसलिए यह जीवन अनमोल है।
133. घर का भेदी लंका ढाए : राजदार ही विनाश का कारण बनता है।
134. जिसकी बिल्ली उसी से म्याऊं करें : जब किसी के द्वारा पाला हुआ व्यक्ति उसी से गुर्राए।
135. आंख का तारा : बहुत प्यारा।
136. एक अंडा वह भी गंदा : चीज भी थोड़ी है और जितनी है वह भी बेकार है।
137. आग बबूला होना : बहुत गुस्सा होना।
138. हाथ सुमिरनी, बगल कतरनी : ऊपर से सज्जन, भीतर से कपटी।
139. आंख आना : आंख दुखना।
140. आप भला तो जग भला : भले आदमी को सब लोग भले ही मिलते हैं।
141. गाड़ी अटकना : चलते चलते काम बंद होना।
142. चना चबाना : रुखा सुखा भोजन करना।
143. अपनी हांकना : अपनी ही बात कहते जाना।
144. आग का जला आग ही से अच्छा होता है : कष्ट देने वाली वस्तु से भी कभी-कभी कष्ट का निवारण हो जाता है।
145. इतनी सी जान, गज भर की जबान : छोटे आदमी का बहुत बढ़-चढ़कर बातें करना।
146. आंखें मूंदना : मर जाना।
147. अंधों में काना राजा : मूर्खों में कम ज्ञान रखने वाले की प्रतिष्ठा होना।
148. आ बैल मुझे मार : बिना बात मुसीबत मोल लेना।
149. अपनी छाछ को कोई खट्टा नहीं कहता : अपनी चीज को कोई बुरा नहीं बताता।
150. ओखली में सर दिया, तो मूसलो से क्या डरना : जब आफत को निमंत्रण दे ही दिया है तो फिर डरने से क्या फायदा।
151. बाजू में छोरा नगर में ढिंढोरा : जो पास में ही मौजूद हो उसे दूर-दूर खोजना।
152. गगरी दाना सूत उताना : ओछा आदमी थोड़ा धन पाकर इतराने लगता है।
153. अब के बनिया देय उधार : अपनी जरूरत पड़ती है तो आदमी सब कुछ मान जाता है।
154. ऊंट के मुंह में जीरा होना : आवश्यकता से बहुत कम होना।
155. आई है जान के साथ, जाएगी जनाजे के साथ : लाइलाज बीमारी।
156. आंख एक नहीं, कलेजा टूक-टूक : बनावटी दु:ख प्रकट करना।
157. अड्डे पर चहकना : अपने घर पर रोब दिखाना।
158. उबल पड़ना : एकदम गुस्सा हो जाना।
159. चादर देखकर पाव फैलाना : आय के अनुसार खर्च करना।
160. उल्टी पट्टी पढ़ाना : गलत कहकर बहकाना।
161. आवाज उठाना : विरोध प्रकट करना।
162. आग पर पानी डालना : झगड़ा मिटाना।
163. अति ऊंचे भू-धारन पर भुजगन के स्थान, तुलसी अति नीचे सुखद उंख अन्न असपान : तुलसीदास जी कहते हैं की खेती ऐसे ऊंचे स्थानों पर करनी चाहिए जहां पर सांप रहते हो, पहाड़ों के ढाल पर उंख हो, वहीं पर अन्न और पान की अच्छी फसल होती है।
164. ईंट से ईंट बजाना : विनाश करना।
165. घर में दीया जलाकर मस्जिद में जलाया जाता है : दूसरों को सुधारने से पहले स्वयं को सुधारा जाता है।
166. असर्फियो की लूट कोयले पर छाप : मूल्यवान वस्तु को छोड़कर तुच्छ वस्तु पर ध्यान देना।
167. आप पड़ोसन लड़े : बिना बात ही झगड़ा करना।
168. अढ़ाई दिन की बादशाहत : थोड़े दिन की शान शौकत।
169. चित्त चुराना : मन मोह लेना।
170. गांव के जोगी जोगना आन गांव के सिद्ध : अपनी जन्मभूमि में किसी विद्वान की इतनी इज्जत नहीं होती जितनी दूसरे स्थानों में होती है।
171. चिकना घड़ा : बेहया व्यक्ति।
172. आव न देखा ताव : बिना कारण।
173. खूब मिलाई जोड़ी, एक अंधा एक कोढ़ी : दो मूर्खों का साथ।
174. तेते पांव पसारियो, जेती लंबी ठौर : हैसियत के बाहर काम नहीं करना चाहिए।
175. आसमान पर चढ़ा देना : बहुत तारीफ करना।
176. काबुल में भी गधे होते हैं : मूर्ख हर जगह होते हैं।
177. आधी छोड़ पूरी को धावे, आधी रहे ना पूरी पावे : अधिक लालच करने से हानि ही होती हैं।
178. अपनी चिलम भरने को मेरा झोपड़ा जलाते हो : अपने जरा से लाभ के लिए किसी दूसरे की बड़ी हानि करना।
179. अंधेरखाता : अन्याय।
180. घी का लड्डू टेढ़ा भी भला : गुणवान की शक्ल नहीं देखी जाती।
181. जीभ भी जली और स्वाद भी न पाया : यदि किसी को बहुत थोड़ी सी चीज खाने को दी जाएं और उसका मन भी नहीं भरे।
182. घर-घर मटियारे चूल्हे : सब लोगों में कुछ न कुछ बुराइयां होती हैं, सब लोगों को कुछ न कुछ कष्ट होता है।
183. आंख सुख कलेजे ठंडक : परम शांति का होना।
184. बेवकूफ मर गए, औलाद छोड़ गए : जब कोई बहुत मूर्खता का काम करता है।
185. नेकी और पूछ-पूछ : भलाई करने के लिए किसी की अनुमति की आवश्यकता नहीं होती हैं।
186. आए थे हरि भजन को ओटन लगे कपास : उच्च लक्ष्य लेकर चलना पर कोई घटिया सा काम करने लगना।
187. अर्थ खुलना : आशय स्पष्ट होना।
188. अपनी खाल में मस्त रहना : अपनी दशा से संतुष्ट रहना।
189. अपनी अपनी डफली, अपना अपना राग : सबका अलग-अलग अपना मनमाना काम करना।
190. अंग टूटना : थकावट से शरीर में दर्द होना।
191. जेठ के भरोसे पेट : जब कोई मनुष्य बहुत निर्धन होता है और उसकी स्त्री का पालन-पोषण उसका बड़ा भाई करता है।
192. मरता क्या नहीं करता : निराश व्यक्ति सब कुछ कर सकता हैं।
193. आगे जाए घुटने टूटे, पीछे देखे आंख फूटे : जिधर जाए उधर ही मुसीबत आना।
194. एक ही थाली के चट्टे-बट्टे होना : एक ही जैसे दुर्गुण होना।
195. गाय गुण बछड़ा, पिता गुण घोड़, बहुत नहीं तो थोड़े-थोड़ : बच्चों पर माता-पिता का प्रभाव थोड़ा बहुत अवश्य पड़ता हैं।
196. अक्ल से मतलब न होना : मूर्खतापूर्ण व्यवहार करना।
197. उत्तम खेती मध्यम बान, निकृष्ट चाकरी भीख निदान : खेती सबसे श्रेष्ठ व्यवसाय है, व्यापार मध्यम है, नौकरी निकृष्ट है और भीख मांगना सबसे बुरा है।
198. उल्टे छुरे से मूंड़ना : मूर्ख बनाकर ठगना।
199. चार सौ बीस : बहुत बड़ा धूर्त।
200. काठ की हांडी एक बार ही चढ़ती है : छल से एक बार तो काम बन जाता हैं पर हमेशा नहीं।
उम्मीद हैं आपको कहावतें की समस्त जानकारी पसंद आयी होगी।
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