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चलिए आज हम हिंदी की विभिन्न बोलियाँ और उनका साहित्य की जानकारी को पढ़ते और समझते हैं।
हिंदी की विभिन्न बोलियाँ और उनका साहित्य
हिन्दी की अनेक बोलियाँ का (उपभाषाएँ) है जिनमें अवधी, ब्रजभाषा, कन्नौजी, बुंदेली, बघेली, हड़ौती, खड़ी बोली, हरयाणवी, राजस्थानी, छत्तीसगढ़ी, मालवी, नागपुरी, खोरठा, पंचपरगनिया, कुमाउँनी, मगही, मेवाती, फ़ीजी हिन्दी आदि प्रमुख हैं।
इनमें से कुछ में अत्यन्त उच्च श्रेणी के साहित्य की रचना हुई है। ऐसी बोलियों में ब्रजभाषा और अवधी प्रमुख हैं। यह बोलियाँ हिन्दी की विविधता हैं और उसकी शक्ति भी।
वे हिन्दी की जड़ों को गहरा बनाती हैं। हिन्दी की बोलियाँ और उन बोलियों की उप बोलियाँ हैं जो न केवल अपने में एक बड़ी परंपरा, इतिहास, सभ्यता को समेटे हुए हैं वार्ना स्वतंत्रता संग्राम, जन संघर्ष, वर्तमान के बाजार वाद के खिलाफ भी उसका रचना संसार सचेत है।
उपभाषा | बोलियाँ | मुख्य क्षेत्र |
---|---|---|
राजस्थानी | मारवाड़ी (पश्चिमी राजस्थानी), जयपुरी या ढुँढाड़ी (पूर्वी राजस्थानी), मेवाती (उत्तरी राजस्थानी), मालवी (दक्षिणी राजस्थानी), | राजस्थान |
पश्चिमी हिन्दी | (आकार बहुला) कौरवी या खड़ी बोली, बाँगरू या हरियाणवी (ओकार बहुला) ब्रजभाषा, कन्नौजी, बुंदेली | हरियाणा, उत्तर प्रदेश |
पूर्वी हिन्दी | अवधी, बघेली, छत्तीसगढ़ी | मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश |
बिहारी | भोजपुरी, मगही | बिहार, उत्तर प्रदेश |
पहाड़ी | पहाड़ी, कुमाऊँनी, गढ़वाली | उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश |
बिहारी, राजस्थानी और पहाड़ी हिन्दी
हिंदी प्रदेश की तीन उपभाषाएँ और हैं –
- बिहारी
- राजस्थानी
- पहाड़ी हिंदी
बिहारी की तीन शाखाएँ हैं –
- भोजपुरी
- मगही
- मैथिली
बिहार के एक कस्बे भोजपुर के नाम पर भोजपुरी बोली का नामकरण हुआ। पर भोजपुरी का प्रसार बिहार से अधिक उत्तर प्रदेश में है।
बिहार के शाहाबाद, चंपारन और सारन जिले से लेकर गोरखपुर तथा बनारस तक का क्षेत्र भोजपुरी का है। हिंदी प्रदेश की बोलियों में भोजपुरी बोलनेवालों की संख्या सबसे अधिक है।
इसमें प्राचीन साहित्य तो नहीं मिलता पर ग्राम गीतों के अतिरिक्त वर्तमान काल में कुछ साहित्य रचने का प्रयत्न भी हो रहा है। मगही के केंद्र पटना और गया हैं।
इसके लिए कैथी लिपि का व्यवहार होता है। पर आधुनिक मगही साहित्य मुख्यतः देवनागरी लिपि में लिखी जा रही है। मगही का आधुनिक साहित्य बहुत समृद्ध है और इसमें प्रायः सभी विधाओं में रचनाओं का प्रकाशन हुआ है।
राजस्थानी का प्रसार पंजाब के दक्षिण में है। यह पूरे राजपूताने और मध्य प्रदेश के मालवा में बोली जाती है। राजस्थानी का संबंध एक ओर ब्रजभाषा से है और दूसरी ओर गुजराती से।
पुरानी राजस्थानी को डिंगल कहते हैं। जिसमें चारणों का लिखा हिंदी का आरंभिक साहित्य उपलब्ध है। राजस्थानी में गद्य साहित्य की भी पुरानी परंपरा है।
राजस्थानी की चार मुख्य बोलियाँ या विभाषाएँ हैं- मेवाती, मालवी, जयपुरी और मारवाड़ी। मारवाड़ी का प्रचलन सबसे अधिक है। राजस्थानी के अंतर्गत कुछ विद्वान् भीली को भी लेते हैं।
पहाड़ी उपभाषा राजस्थानी से मिलती जुलती हैं। इसका प्रसार हिंदी प्रदेश के उत्तर हिमालय के दक्षिणी भाग में नेपाल से शिमला तक है।
इसकी तीन शाखाएँ हैं – पूर्वी, मध्यवर्ती और पश्चिमी। पूर्वी पहाड़ी नेपाल की प्रधान भाषा है जिसे नेपाली और परंबतिया भी कहा जाता है। मध्यवर्ती पहाड़ी कुमायूँ और गढ़वाल में प्रचलित है।
इसके दो भेद हैं –
- कुमाउँनी
- गढ़वाली
ये पहाड़ी उपभाषाएँ नागरी लिपि में लिखी जाती हैं। इनमें पुराना साहित्य नहीं मिलता।
आधुनिक काल में कुछ साहित्य लिखा जा रहा है। कुछ विद्वान् पहाड़ी को राजस्थानी के अंतर्गत ही मानते हैं। पश्चिमी पहाड़ी हिमाचल प्रदेश में बोली जाती है।
इसकी मुख्य उपबोलियों में मंडियाली, कुल्लवी, चाम्बियाली, क्योँथली, कांगड़ी, सिरमौरी, बघाटी और बिलासपुरी प्रमुख हैं।
प्रयोग-क्षेत्र के अनुसार वर्गीकरण
हिन्दी भाषा का भौगोलिक विस्तार काफी दूर–दूर तक है जिसे तीन क्षेत्रों में विभक्त किया जा सकता है।
(क). हिन्दी क्षेत्र :– हिन्दी क्षेत्र में हिन्दी की मुख्यत: सत्रह बोलियाँ बोली जाती हैं, जिन्हें पाँच बोली वर्गों में इस प्रकार विभक्त कर के रखा जा सकता है- पश्चिमी हिन्दी, पूर्वी हिन्दी, राजस्थानी हिन्दी, पहाडी हिन्दी और बिहारी हिन्दी।
(ख). अन्य भाषा क्षेत्र :– इनमें प्रमुख बोलियाँ इस प्रकार हैं- दक्खिनी हिन्दी (गुलबर्गी, बीदरी, बीजापुरी तथा हैदराबादी आदि), बम्बइया हिन्दी, कलकतिया हिन्दी तथा शिलंगी हिन्दी (बाजार-हिन्दी) आदि।
(ग). भारतेतर क्षेत्र :– भारत के बाहर भी कई देशों में हिन्दी भाषी लोग काफी बड़ी संख्या में बसे हैं। सीमावर्ती देशों के अलावा यूरोप, अमेरिका, आस्ट्रेलिया, अफ्रीका, रुस, जापान, चीन तथा समस्त दक्षिण पूर्व व मध्य एशिया में हिन्दी बोलने वालों की बहुत बडी संख्या है।
लगभग सभी देशों की राजधानियों के विश्वविद्यालयों में हिन्दी एक विषय के रूप में पढी-पढाई जाती है। भारत के बाहर हिन्दी की प्रमुख बोलियाँ – ताजुज्बेकी हिन्दी, मारिशसी हिन्दी, फीज़ी हिन्दी, सूरीनामी हिन्दी आदि हैं।
हिंदी प्रदेशों की हिंदी बोलियाँ
पश्चिमी हिंदी
(i). खड़ी बोली :- देहरादून, सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, मेरठi, बिजनौर, रामपुर और मुरादाबाद
(ii). बृजभाषा :- आगरा, मथुरा, अलीगढ़, मैनपुरी, एटा, हाथरस, बदायूं, बरेली, धौलपुर।
(iii). हरियाणवी :- हरियाणा और दिल्ली के देहाती प्रदेश।
(iv). बुंदेली :- झांसी, जालौन, हमीरपुर, ओरछा, सागर, नृसिंहपुर, सिवनी,होशंगाबादल
(v). कन्नौजी :- उत्तर प्रदेश के इटावा, फ़र्रूख़ाबाद, शाहजहांपुर, कानपुर, हरदोई और पीलीभीत, जिलों के ग्रामीणांचल में बहुतायत से बोली जाती है।
पूर्वी हिंदी
(i). अवधी :- कानपुर, लखनऊ, बाराबंकी, उन्नाव, रायबरेली, सीतापुर, फतेहपुर, अयोध्या, गोंडा, प्रयागराज, बलरामपुर, श्रावस्ती, अम्बेडकरनगर, लखीमपुर, जौनपुर, प्रतापगढ़, सिद्धार्थनगर, बस्ती, अमेठी, कौशाम्बी, चित्रकूट, भदोही, बहराइच, सुल्तानपुर जिले।
(ii). बघेली :- रीवा, सतना, मैहर, उमरिया, शहडोल, अनूपपुर, सीधी, नागौद।
(iii). छत्तीसगढ़ी :- बिलासपुर, दुर्ग, रायपुर, रायगढ़, नांदगांव, कांकेर, महासमुंद, सरगुजा, कोरिया।
राजस्थानी
- मारवाड़ी भाषा
- जयपुरी
- मेवाती
- मालवी
पहाड़ी
- पूर्वी पहाड़ी :- जिसमें नेपाली आती है
- मध्यवर्ती पहाड़ी :- जिसमें कुमाऊंनी और गढ़वाली बोलियां आती है।
- पश्चिमी पहाड़ी :- जिसमें हिमाचल प्रदेश की अनेक बोलियां आती हैं।
बिहारी भाषा
- भोजपुरी
- मगही
- नागपुरी
- खोरठा
- पंचपरगनिया
FAQ
उत्तर :- पश्चिमी हिन्दी वर्ग अपेक्षाकृत बड़ा है, इसमें खड़ी बोली / कौरवी, हरियाणी, दक्खिनी, ब्रज, बुन्देली और कन्नौजी बोलियाँ सम्मिलित की जाती हैं।
उत्तर :- माॅडियाली, कुमाउँनी तथा गढ़वाली बोलियाँ पहाड़ी उपभाषा के अंतर्गत आती हैं।
उत्तर :- 48 हिंदी बोलियाँ
उत्तर :- भारत में ‘भारतीय जनगणना 1961’ के अनुसार 1652 मातृभाषाएँ (बोलियाँ) चार भाषा परिवारों में वर्गीकृत की गई हैं।
उत्तर :- भारत में लगभग वर्तमान 10 लिपियाँ है, जो ब्राह्मी लिपि से उद्भूत हुई हैं।
उत्तर :- भाषा वैज्ञानिकों ने हिंदी भाषा को 5 उपभाषाओं में बॉंटा है। हिंदी की उपभाषाएँ – राजस्थानी, पश्चिमी हिंदी, पूर्वी हिंदी, बिहारी और पहाड़ी।
उत्तर :- पूर्वी हिंदी में तीन बोलियाँ- अवधी, बघेली और छत्तीसगढ़ी मानी जाती हैं।
उत्तर :- कुमाऊँनी एक इंडो-आर्यन भाषा है जो उत्तर भारत के उत्तराखंड राज्य के कुमाऊँ क्षेत्र और पश्चिमी नेपाल के डोटी क्षेत्र के कुछ हिस्सों में दो मिलियन से अधिक लोगों द्वारा बोली जाती है।
उत्तर :- हिन्दी का स्वरूप शौरसेनी और अर्धमागधी अपभ्रंशों से विकसित हुआ है।
उत्तर :- हिन्दी भाषा का इतिहास लगभग एक हजार वर्ष पुराना माना गया है।
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