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चलिए आज हम गद्य काव्य की समस्त जानाकारी को पढ़ते और समझते हैं।
गद्य काव्य किसे कहते हैं
रोज के जीवन में हम बातचीत करने, पत्र लिखने, अपने विचार प्रकट करने और प्रार्थना पत्र इत्यादि को भेजने के लिए जिस प्रकार की भाषा का प्रयोग करते हैं वह भाषा का गद्य रूप ही होता है।
गद्य की भाषा सरल और आसानी से समझने लायक होती है जबकि काव्य की भाषा विशेष होती है। गद्य की भाषा आसान होने के कारण हम अपने विचार आसानी से व्यक्त कर पाते हैं। यही कारण है कि काव्य की अपेक्षा गद्य का क्षेत्र अधिक विस्तृत है।
आज निबंध, कहानी, उपन्यास, यात्रा वृतांत, समाचार पत्र, संपादकीय इत्यादि गद्य के माध्यम से ही पढ़ी लिखी जाती है। इस प्रकार गद्य मानव जीवन में बहुत महत्व रखता है।
हिंदी गद्य का विकास
पहली बार सरकारी स्तर पर हिंदी गद्य के विकास तथा प्रयोग का प्रयास फोर्ट विलियम कॉलेज की स्थापना के बाद अंग्रेज शासकों द्वारा किया गया था। हिंदी गद्य साहित्य के इतिहास में फोर्ट विलियम कॉलेज की स्थापना सन् 1800 में की गई।
50 वर्षों में हिंदी गद्य को आगे बढ़ने में पत्र-पत्रिकाओं ने महत्वपूर्ण योगदान दिया। कोलकाता से उदंत मार्तंड नामक पत्र निकालना प्रारंभ हुआ।
भारतेंदु हरिश्चंद्र, बद्रीनारायण प्रेम धन, लाला श्रीनिवास दास, गोपाल राम गहमरी, अंबिकादत्त व्यास, देवकीनंदन खत्री इत्यादि थे जिन्होंने नाटक, निबंध, कहानी, उपन्यास आदि गद्य साहित्य की रचना की।
गद्य के अवयव
गद्य में प्रमुख तीन तत्व होते हैं।
- विचार तत्व
- भाषा
- शैली
1. विचार तत्व
किसी भी गद्य रचना में विचार तत्व मुख्य होता है चाहे वह निबंध हो, कहानी या उपन्यास हो। इस विचार तत्व का अध्ययन करने के लिए यह जरूरी है कि रचना के रचनाकार के बारे में पहले जानकारी प्राप्त किया जाए कि वह किस काल के रचनाकार हैं, फिर उस रचना के पीछे रचनाकार का क्या उद्देश्य है उसे जाना जाए।
2. भाषा
जैसे विचार होते हैं वैसे ही भाषा भी होती हैं। इसके अलावा भाषा विषय वस्तु के चुनाव पर भी निर्भर करती है। विषय और वस्तु जिस परिस्थितियों पर आधारित होते हैं भाषा भी उसी के अनुरूप होती है।
प्रत्येक रचनाकार की अपनी भाषा होती है। भाषा संबंधी अध्ययन के लिए पर्यायवाची शब्द का अध्ययन, लोकोक्तियां तथा मुहावरे का और तत्सम, तद्भव शब्दों का अध्ययन जरूरी है।
3. शैली
गद्य रचना में शैली का बहुत महत्वपूर्ण स्थान होता है। एक ही विषय पर अलग-अलग रचनाकारों द्वारा लिखी गई बातें शैली अलग होने के कारण अलग अलग हो जाती है।
इसलिए गद्य साहित्य में शैली का अध्ययन बहुत आवश्यक होता है। हिंदी गद्य में कुछ प्रचलित शैलियों को नीचे बताया गया है।
(i). वर्णनात्मक शैली
वर्णनात्मक शैली का लक्ष्य किसी वस्तु या व्यापार का वर्ण(न करना होता है। इसके द्वारा विषय की पूरी जानकारी दी जाती है।
(ii). विचारात्मक शैली
इसके द्वारा रचनाकार अपने विचारों को पाठकों के मन में बैठाने का प्रयास करता है। इस शैली के लिए बातें स्पष्ट होनी आवश्यक होती है। इसलिए इसकी भाषा साफ, सरल और स्पष्ट होती है।
(iii). कथात्मक शैली
इस शैली का लक्ष्य अपने विचारों को कहानी के माध्यम से बताना होता है इसलिए इसकी भाषा आसान होती है।
(iv). भावात्मक शैली
इसके द्वारा खुशी, करुणा, क्रोध, दुख इत्यादि भावना की कामना करने का प्रयास किया जाता है।
गद्य का अध्ययन करते समय कभी-कभी अलंकारों की भी आवश्यकता होती है क्योंकि कविता की तरह गद्य में भी रूपक, उपमा, उत्प्रेक्षा इत्यादि अलंकारों का प्रयोग किया जाता है।
गद्य साहित्य की प्रमुख विधाएं
हिंदी गद्य को चार बड़े भागों में बांटा जा सकता है –
- कथा साहित्य
- नाटक
- निबंध
- नवीन या नई विद्याएं
1. कथा साहित्य
कथा साहित्य में हम उपन्यास कहानी और लघु कथा पढ़ते हैं। यदि आपको अपने पढ़ने की गति बढ़ानी है तो गद्य में अधिक से अधिक कहानी और उपन्यास पढ़ने की कोशिश करें।
(i). कहानी
जीवन और समाज की किसी भी घटना का सुंदर ढंग से चित्रण करना ही कहानी कहलाता है। कहानी में कथा का होना आवश्यक होता है। इसमें विचार सीधे-सीधे प्रकट ना होकर किसी घटना के माध्यम से प्रकट किए जाते हैं।
प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद, जैनेंद्र, सच्चिदानंद, हीरानंद, वात्स्यायन, अज्ञेय, भगवती चरण वर्मा, भैरव प्रसाद गुप्त, राजेंद्र यादव, शिव प्रसाद सिंह, शेखर जोशी, नागार्जुन, फणीश्वर नाथ रेणु, मोहन राकेश इत्यादि हिंदी के कई प्रमुख कहानीकार हैं।
(ii). उपन्यास
उपन्यास में भी जीवन और समाज में घटते हुए घटनाओं का वर्णन होता है लेकिन उपन्यास में कहानी की तुलना में अधिक विस्तार से कथा का वर्णन किया जाता है। कहानी किसी एक घटना पर आधारित होती है लेकिन उपन्यास में कई घटनाएं होती है।
प्रेमचंद, इलाचंद्र जोशी आचार्य, चतुरसेन शास्त्री, राहुल सांकृत्यायन, फणीश्वर नाथ रेणु, भगवती चरण शर्मा, यशपाल, अज्ञेय, कृष्णा सोबती, भीष्म साहनी, विवेकी राय कमलेश्वर इत्यादि हिंदी के प्रमुख उपन्यासकार हैं।
2. नाटक
नाटक में भी कहानी प्रमुख होती है लेकिन इसमें कहानी की तरह घटनाओं का वर्णन नहीं होता है बल्कि उस कहानी के पात्रों द्वारा अभिनय के माध्यम से उसे समझाने का प्रयास किया जाता है।
इसलिए यह आसानी से मनुष्य को समझ में आ जाती है। नाटक में लेखक जो भी बात कहना चाहता है वह पात्रों के माध्यम से कहलवाता है।
3. निबंध
निबंध को गद्य लेखन की कसौटी माना जाता है निबंध का अर्थ है बिना बंधन के अर्थात किसी विषय पर लिखते समय विचारों के ऊपर कोई बंधन ना हो तो वह रचना निबंध कहलाती है।
निबंध किसी भी विषय पर लिखे जा सकते हैं। निबंध और लेख में अंतर होता है लेख केवल अपने विषय पर ही केंद्रित होता है लेकिन निबंध में विषय केवल एक माध्यम भर होता है।
4. नवीन विद्याएं
(i). यात्रा वृतांत
यात्रा वृतांत में लेखक किसी देश, पहाड़ या किसी दूसरे स्थान की अपनी यात्रा के अनुभव को लिखता है। यात्रा के दौरान वह जैसा अनुभव करता है उन सबका वर्णन ही यात्रा वृतांत कहलाता है।
राहुल सांकृत्यायन का घुमक्कड़ शास्त्र ग्रंथ प्रसिद्ध यात्रा ग्रंथ है। इसके अलावा यशपाल, विष्णु प्रभाकर, राजेंद्र यादव, मनोहर श्याम जोशी, हिमांशु जोशी आदि ने भी कई यात्रा साहित्य लिखे हैं।
(ii). संस्मरण
किसी व्यक्ति या स्थान का स्मरण करना है संस्मरण कहलाता है। इसमें किसी व्यक्ति से ज्यादा भावनात्मक जुड़ाव होने के कारण उनसे जुड़ी हुई यादों और घटनाओं का वर्णन होता है।
(iii). व्यंग्य
समाज में फैली बुराई, विचार, परंपरा या किसी घटना का वर्णन करते हुए यदि उसका मजाक उड़ाया जाए और मजाकिया भाषा में उसका चित्रण किया जाए तो वह रचना व्यंग्य कहलाती है।
व्यंग्य में कहानी भी हो सकती है और निबंध के तरह स्वतंत्र विचार भी हो सकते हैं।
कुल मिलाकर कहे तो व्यंग एक प्रकार का निबंध होता है जिसमें व्यंगात्मक ढंग से किसी विषय का चित्रण किया जाता है। हरिशंकर परसाई, शरद जोशी, गोपाल चतुर्वेदी इत्यादि प्रमुख व्यंगकार है।
(iv). संपादकीय
हर पत्र पत्रिका में एक संपादकीय अवश्य होता है। संपादकीय उसे कहते हैं जो पत्र या पत्रिका के संपादक द्वारा लिखा जाता है। संपादकीय में संपादक अभी चल रही समस्याओं, घटनाओं पर अपने विचार प्रकट करता है।
गद्य कैसे पढ़ें
गद्य साहित्य का अध्ययन करते समय कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए।
जैसे :-
- पढ़ने से पहले पुस्तक की भूमिका और परिचय अवश्य पढ़ ले, यदि सारांश दिया गया हो तो उसे भी पढ़ ले इससे विषय को पढ़ने में और समझने में सहायता मिलती है।
- पहले और अंतिम अनुच्छेद को ध्यान से पढ़ें क्योंकि इसमें मुख्य बातें बताई जाती है।
- पढ़ते वक्त विराम चिन्ह का ध्यान रखते हुए रुक रुक कर पढ़ें।
- पढ़ते समय बीच में रुके नहीं क्योंकि इससे क्रम बिगड़ जाता है और विषय समझ में नहीं आता इसलिए तेज तेज पढ़ने की आदत डालें।
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