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व्याख्या की परिभाषा, उदाहरण और सावधानियाँ

vyakhya

इस पेज पर आप व्याख्या से संबंधित समस्त जानकारी पढ़ेंगे तो पोस्ट को पूरा जरूर पढ़ें।

पिछले पोस्ट में हमने संज्ञा और सर्वनाम की जानकारी शेयर की है तो उसे भी जरूर पढ़ें।

चलिए आज हम व्याख्या की परिभाषा, उदाहरण और सावधानियां की जानकारी को पढ़ते और समझते हैं।

व्याख्या किसे कहते हैं

व्याख्या का मतलब है किसी भाव या विचार का विस्तारपूर्वक वर्णन करना।

यह भावार्थ से भिन्न होती है। इसमें अपने विचारों का प्रदर्शन करने की पूरी स्वतंत्रता होती हैं।

प्रसंग व्याख्या का एक आवश्यक अंग होता है। इसलिए प्रसंग को व्याख्या से पहले और छोटा लिखना आवश्यक होता है।

व्याख्या का उदाहरण

व्याख्या का एक उदाहरण नीचे दिया गया हैं।

सिद्धि-हेतु स्वामी गये, यह गौरव की बात
पर चोरी-चोरी गये, यही बड़ा व्याघात।

व्याख्या

उपर्युक्त पंक्तियाँ मैथलीशरण गुप्त के ‘यशोधरा’ काव्य से ली गयी हैं। यशोधरा यह जान गई थी कि उसका पति सांसारिक सुखों में बँधने वाला साधारण मनुष्य नहीं हैं।

अतः वह जानती थी कि सिद्धार्थ का महाभिनिष्क्रमण स्वाभाविक था। लेकिन गौतम एक रात चुपके से घर छोड़ कर चले गये।

यशोधरा को इस बात का बड़ा दुःख हुआ कि उसके स्वामी उससे बिना कुछ कहे, चुपके-से क्यों चले गये। यह बात उसे काँटे की तरह चुभने लगी।

अर्थ-विश्लेषण

यशोधरा यह जान कर गौरवान्वित हुई कि उसके पति जीवन के एक महान् लक्ष्य की पूर्ति मे गए हैं। सिद्धार्थ जैसे महापुरुष की धर्मपत्नी होने का उसे गर्व हैं।

लेकिन सिद्धार्थ का ‘चोरी-चोरी’ जाना यशोधरा को बहुत खला, जैसे उसके हृदय पर गहरा आघात हुआ। वह तड़प उठी।

ऐसा कर गौतम ने नारी के स्त्रियोचित अधिकार, विश्वास और स्वत्व पर गहरी चोट की। आदर्श नारी सब कुछ सहन कर सकती हैं पर अपमान का घूँट कैसे पी सकती हैं ?

कभी-कभी नारी की आत्म-गौरव-भावना स्त्री-हठ का रूप धारण कर लेती हैं। लेकिन यशोधरा में इसका अभाव हैं।

विवेचन

प्रश्न यह है कि यशोधरा से बिना कुछ कहे सिद्धार्थ ने पलायन क्यों किया ? सिद्धार्थ कर्त्तव्य-भाव से यशोधरा को अपने गृह-त्याग का, पूर्व परिचय देना चाहते थे।

लेकिन नारी की स्वाभाविक दुर्बलता से वह अच्छी तरह अवगत थे। उन्हें यह शंका थी कि यदि वह पलायन की बात यशोधरा से कह देंगे तो वह निश्चय ही उनके पथ की बाधा बन जायगी।

उनकी शंका निराधार न थी। वह अपने ही वंश में राम के साथ वन जाने वाली सीता का हठ देख चुके थे। ऐसी अवस्था में सिद्धार्थ के लिए दूसरा और कोई रास्ता न था।

अतः यह स्पष्ट है कि सिद्धार्थ का ‘चोरी-चोरी’ जाना सार्थक था। लेकिन यशोधरा के लिए यह अभिशाप हो गया कि उसका पति उसे ‘मुक्ति-मार्ग की बाधा नारी’ समझे।

फिर नारी का स्वाभिमान क्यों न उत्तेजित हो ? सच तो यह है कि यशोधरा और सिद्धार्थ के दृष्टिकोण अपने में सत्य हैं। दोनों के विचार स्वाभाविक हैं।

व्याख्या करते समय सावधानियाँ

व्याख्या करते समय निम्न बातों को ध्यान में रखना चाहिये।

  1. प्रसंग में अप्रासंगिक बातों को नहीं लिखना चाहिए।
  2. यह तर्कसंगत और सीमित शब्दों में होनी चाहिए।
  3. व्याख्या में अपने शब्दों का प्रयोग करना चाहिये।
  4. इसके मूल सन्देश को रेखांकित कर देना चाहिये।
  5. व्याख्या एक क्रम में होनी चाहिए।

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