उत्प्रेक्षा अलंकार की परिभाषा, प्रकार और उदाहरण

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चलिए आज हम उत्प्रेक्षा अलंकार की परिभाषा, प्रकार और उदाहरण की समस्त जानकारी को पढ़ते और समझते हैं।

उत्प्रेक्षा अलंकार किसे कहते हैं

जिस अलंकार में उपमान के न होने पर उपमेय को ही उपमान मान लिया जाता हैं। अथार्त जहाँ पर अप्रस्तुत को प्रस्तुत मान लिया जाता हैं वहाँ पर उत्प्रेक्षा अलंकार होता है।

जैसे :- 

1. सखि सोहत गोपाल के, उर गुंजन की माल
बाहर सोहत मनु पिये, दावानल की ज्वाल।।

2. फूले कास सकल महि छाई। 
जनु बरसा रितु प्रकट बुढ़ाई।।

उत्प्रेक्षा अलंकार के प्रकार

उत्प्रेक्षा अलंकार के मुख्य रूप से तीन प्रकार होते हैं।

  1. वस्तुप्रेक्षा अलंकार
  2. हेतुप्रेक्षा अलंकार
  3. फलोत्प्रेक्षा अलंकार

1. वस्तुप्रेक्षा अलंकार 

जिस उत्प्रेक्षा अलंकार में प्रस्तुत में अप्रस्तुत की संभावना दिखाई जाती हैं तब वहाँ पर वस्तुप्रेक्षा अलंकार होता है।

जैसे :-

”सखि सोहत गोपाल के, उर गुंजन की माल।
बाहर लसत मनो पिये, दावानल की ज्वाल।।”

2. हेतुप्रेक्षा अलंकार 

जिस उत्प्रेक्षा अलंकार में अहेतु में हेतु की सम्भावना देखी जाती है। अथार्त वास्तविक कारण को छोडकर अन्य कारण को मान लिया जाता हैं वहाँ हेतुप्रेक्षा अलंकार होता है।

3. फलोत्प्रेक्षा अलंकार 

जिस उत्प्रेक्षा अलंकार में वास्तविक फल के न होने पर भी उसी को फल मान लिया जाता है। वहाँ पर फलोत्प्रेक्षा अलंकार होता है।

जैसे :-

खंजरीर नहीं लखि परत कुछ दिन साँची बात।
बाल द्रगन सम हीन को करन मनो तप जात।।

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