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चलिए आज हम श्लेष अलंकार की समस्त जानकारी पढ़ते और समझते हैं।
श्लेष अलंकार किसे कहते हैं
‘श्लेष’ का मतलब होता है मिला हुआ या चिपका हुआ। श्लेष अलंकार में ऐसे शब्दों का प्रयोग किया जाता है, जिनके एक नहीं बल्कि अनेक अर्थ होते हैं।
जहाँ पर कोई एक शब्द एक ही बार आये लेकिन उसके अर्थ अलग अलग निकलें वहाँ पर श्लेष अलंकार होता है।
इनमें दो बातें आवश्यक है।
(क). एक शब्द के एक से अधिक अर्थ हो
(ख). एक से अधिक अर्थ प्रकरण में अपेक्षित हों।
उदाहरण :-
1. रहिमन पानी राखिए बिन पानी सब सून।
पानी गए न उबरै मोती मानस चून।।
2. माया महाठगिनि हम जानी।
तिरगुन फाँस लिए कर डोलै, बोलै मधुरी बानी।
3. चिरजीवौ जोरी जुरै, क्यों न सनेह गँभीर।
को घटि ये वृषभानुजा, वे हलधर के बीर।
श्लेष अलंकार के प्रकार
श्लेष के दो प्रकार होते हैं।
- अभंग श्लेष अलंकार
- सभंग श्लेष अलंकार
1. अभंग श्लेष
अभंग श्लेष में शब्दों को बिना तोड़े अनेक अर्थ निकलते हैं।
जैसे :-
रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून।
पानी गये न ऊबरै, मोती, मानुस, चून।।
यहाँ ‘पानी’ के अनेक अर्थ है। इसके तीन अर्थ हैं- कांति, सम्मान और जल।
2. सभंग श्लेष
सभंग श्लेष में शब्दों को तोड़ना आवश्यक होता है।
जैसे :-
सखर सुकोमल मंजु, दोषरहित दूषण सहित।
यहाँ ‘सखर’ का मतलब कठोर तथा दूसरा अर्थ दूषण के साथ (स+खर) है। यह दूसरा अर्थ ‘सखर’ को तोड़कर किया गया है, इसलिए यहाँ ‘सभंग श्लेष’ अलंकार है।
उम्मीद हैं आपको श्लेष अलंकार की जानकारी पसंद आयी होगी।
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