रूपक अलंकार की परिभाषा, प्रकार और उदाहरण

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चलिए आज हम रूपक अलंकार की समस्त जानकारी पढ़ते और समझते हैं।

रूपक अलंकार किसे कहते हैं

जिस अलंकार में उपमेय और उपमान में कोई अंतर न दिखाई दे तब वहाँ रूपक अलंकार होता है।

अथार्त जहाँ पर उपमेय और उपमान के बीच के अंतर को समाप्त करके उसे एक कर दिया जाता है वहाँ पर रूपक अलंकार होता है।

जैसे :-

1. उदित उदय गिरी मंच पर, रघुवर बाल पतंग।
विगसे संत-सरोज सब, हरषे लोचन भ्रंग।।

2. बीती विभावरी जाग री,
अम्बर-पनघट में डुबो रही तारा-घट उषा-नागरी।

रूपक अलंकार के लिए तीन बातों का होना आवश्यक है।

1. उपमेय को उपमान का रूप देना

2. वाचक पद का लोप

3. उपमेय का भी साथ-साथ वर्णन

रूपक अलंकार के प्रकार

रूपक अलंकार के मुख्यतः तीन प्रकार होते हैं।

  1. सम रूपक अलंकार
  2. अधिक रूपक अलंकार
  3. न्यून रूपक अलंकार

1. सम रूपक अलंकार

जिस रूपक अलंकार में उपमेय और उपमान में समानता दिखाई जाती है वहाँ पर सम रूपक अलंकार होता है।

जैसे :-

बीती विभावरी जागरी
अम्बर-पनघट में डुबा रही, तारघट उषा – नागरी।

2. अधिक रूपक अलंकार 

जिस रूपक अलंकार में उपमेय में उपमान की तुलना में कुछ न्यूनता का बोध होता है वहाँ पर अधिक रूपक अलंकार होता है।

3. न्यून रूपक अलंकार 

जिस रूपक अलंकार में उपमान की तुलना में उपमेय को न्यून दिखाया जाता है वहाँ पर न्यून रूपक अलंकार होता है।

जैसे :-

जनम सिन्धु विष बन्धु पुनि, दीन मलिन सकलंक
सिय मुख समता पावकिमि चन्द्र बापुरो रंक।।

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