पल्लवन की परिभाषा, विशेषताएँ, नियम और उदाहरण

इस पेज पर आप पल्लवन की परिभाषा, विशेषताएं और नियम पढ़ेंगे और समझेंगे।

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चलिए आज हम पल्लवन की परिभाषा, विशेषताएँ, नियम और उदाहरण की समस्त जानकारी पढ़ते और समझते हैं।

पल्लवन किसे कहते हैं

लोकोक्ति, उक्ति, सूक्ति, वाक्य, कहावत आदि के भावों को समझना व विस्तार देना ‘पल्लवन’ कहलाता हैं।

उदाहरण :-

1. आवश्यकता आविष्कार की जननी है।

अर्थ :- मनुष्य की आदिम अवस्था से लेकर वर्तमान विकसित अवस्था तक काया पलट के मूल में आवश्यकताएँ ही रही हैं।

आवश्यकता-पूर्ति हेतु मनुष्य कर्म के लिये प्रेरित और बाध्य होता है और इस प्रयास में उसे जो अनुभव हासिल होता है, उसे अगली आवश्यकता-पूर्ति में उपयोग करता है। मनुष्य कितनी भी उत्तम अवस्था में पहुँच जाए, उसकी आवश्यकताएँ निरंतर बनी रहती हैं।

आदिमावस्था से वर्तमान अवस्था के मध्य की अवधि में अनंत आवश्यकताएँ थीं, जिन्हें एक-एक कर पार कर आज मनुष्य विज्ञान की विकासशील अवस्था में पहुँचा है।

आज तमाम मानवीय सुख-साधन की उपलब्धता के बावजूद न तो आवश्यकताओं की इतिश्री हुई है और न ही मनुष्य अपनी कर्म-समाप्ति मानकर हाथ पर हाथ धरे बैठ गया है।

सच तो यह है कि आज विज्ञान और तकनीक ने व्यक्तिगत सुख-सुविधा से अलग विकास के अन्यान्य क्षेत्र के अनंत द्वार खोल दिये हैं, जिनसे आवश्यकताओं के दायरे भी असंख्य हो गए हैं। फलतः मनुष्य की क्रियाशीलता की गति भी काफी बढ़ गई है।

परिणामतः नित नए-नए आविष्कार हो रहे हैं। मानवीय आवश्यकताएँ और उनकी पूर्ति हेतु मानवीय प्रयास एक निरंतर प्रक्रिया है, जो कभी समाप्त होने वाली नहीं है।

अतः यह कथन अक्षरशः सत्य है कि आवश्यकता आविष्कार की जननी है।

उदाहरण :-

2. मन के हारे हार है, मन के जीते जीत।

अर्थ :- मानव-मन में उत्साह का संचार और आशा ही किसी कार्य/लक्ष्य की आधी प्राप्ति हेतु पर्याप्त होते हैं।

लक्ष्य-प्राप्ति की राह में दृढ़ संकल्प से मनुष्य विषम बाधाओं, परेशानियों तथा कष्टों को सुगमतापूर्वक पार करने में सफल हो जाता है, क्योंकि उसको लक्ष्य पाना होता है।

यद्यपि अन्य सहायक अनुकूलताओं का भी इसमें विशेष महत्त्व है, तथापि जब तक मनुष्य आत्मप्रेरित न हो, तब तक अन्यान्य अनुकूलताएँ एवं सुअवसर भी कारगर साबित नहीं होते और लक्ष्य-प्राप्ति की संभावना क्षीण बनी रहती है।

उदाहरण स्वरूप यदि कोई छात्र अंतर्मन से यह मान ले कि अमुक परीक्षा में वह सफल नहीं हो सकता तो श्रेष्ठ पुस्तकें एवं अन्य सहायक श्रेष्ठ सामग्री भी उसके लिये निष्प्रयोज्य ही सिद्ध होगी।

इसके विपरीत, यदि घातक रोग से पीड़ित व्यक्ति अंतर्मन से उससे जूझने का संकल्प कर ले, तो उसकी यह जिजीविषा उसके अंदर नवजीवन का संचार कर रोग प्रतिरोधक शक्ति पैदा कर देती है।

आशय यह है कि अंतर्मन से लिया गया दृढ़ संकल्प मानसिक सबलता के साथ-साथ शरीर की अंदरूनी प्रमुख क्रियाओं को मज़बूती प्रदान करता है, जिनसे जीवन-युद्ध जीतने में मदद मिलती है।

अतएव, मानव जीवन के हर क्षेत्र में जीत का प्रत्यक्ष संबंध शारीरिक-भौतिक सामर्थ्य से कहीं अधिक मानसिक धारणा से है।

उदाहरण :-

3. बिना विचारे जो करे, सो पाछे पछताय।

अर्थ :- कोई भी काम बिना विचारे नहीं करना चाहिये। विचार के अभाव में कार्य को सही दिशा नहीं मिल पाती है।

विचार करने से कार्य का उद्देश्य सुनिश्चित हो जाता है। इससे कार्य-संबंधी मज़बूत एवं कमज़ोर पक्ष स्पष्ट हो जाते हैं।

फलतः कार्य की एक रूपरेखा बन जाती है जिससे काम करना आसान हो जाता है। कार्य की सफलता की संभावना भी प्रबल हो जाती है।

अतः कोई निर्णय करने के पहले खूब विचार-विमर्श कर लेना चाहिये, जिससे इस निर्णय के प्रभाव को समझा जा सके।

जो व्यक्ति उचित-अनुचित का विचार कर किसी निष्कर्ष पर पहुँचता है, वह अपने निर्णय से संतुष्ट रहता है। इसके विपरीत किसी उत्तेजना या गुस्से में लिये गए निर्णय बाद में पश्चात्ताप का कारण बनते हैं।

इसी तरह बिना विचारे जब किसी काम को किया जाता है तो जानकारी के अभाव में अक्सर उसमें असफलता हाथ लगती है तथा अंततः पछताना ही पड़ता है।

पल्लवन की विशेषताएँ

  • वाक्य सरल और छोटा हो।
  • वाक्य स्पष्ट हो दो अर्थी न हो।
  • पल्ल्वन के निहित भाव का विस्तार हो।
  • वाक्य की व्याख्या को किसी उदाहरण किस्से आदि के माध्यम से भी समझाया जा सके।
  • तुलनात्म अध्ययन द्वारा भी पल्ल्वन किया सकता है कोई सा भी तरीका अपनाया जाए लेकिन लेखक के विचार को स्प्ष्ट करना ही उद्देश्य होना चाहिए।
  • पल्ल्वन सामान्यत : अन्य पुरुष की लिखी जाती है

पल्लवन के नियम

1. व्यास शैली होनी चाहिए।

2. पल्लवन के लिए मूल अवतरण के उक्ति, वाक्य, सूक्ति, लोकोक्ति तथा कहावत को ध्यानपूर्वक पढ़े ताकि मूल के सम्पूर्ण भाव अच्छी तरह समझ में आ जाए।

3. मूल विचार अथवा भाव के नीचे दबे अन्य विचारों को समझने का प्रयत्न करें।

4. प्रधान और अप्रधान विचारों को समझ लेने के बाद एक-एक कर सभी स्थापित विचारों को एक-एक अनुच्छेद में लिखना आरंभ कीजिए ताकि कोई भी भाव तथा विचार छूटने न पाए।

5. अर्थ तथा विचार का विस्तार करते समय उसकी दृढ़ता में जहाँ-तहाँ ऊपर से कुछ उदाहरण और वास्तविक घटना भी दिये जा सकते हैं।

6. पल्लवन के लेखन में प्रसंग के विरुद्ध बातों का अनावश्यक विस्तार या वर्णन बिलकुल भी नहीं होना चाहिए।

7. भाव और भाषा की प्रकाशन में पूरी सरलता, मौलिकता और स्पष्टता होनी चाहिए एवं वाक्य छोटे-छोटे और भाषा अत्यन्त सरल होनी चाहिए।

8. पल्लवन की रचना हर परिस्थिति में अन्य पुरुष में होना चाहिए।

9. पल्लवन व्यास शैली की होनी चाहिए ना की समास शैली में अर्थात इसमें बातों को विस्तार से लिखने का अभ्यास किया जाना चाहिए।

FAQ

प्रश्न 1. पल्लवन से आप क्या समझते हैं?

उत्तर :- किसी निर्धारित विषय जैसे सूत्र-वाक्य, उक्ति या विवेच्य-बिन्दु को उदाहरण, तर्क आदि से पुष्ट करते हुए प्रवाहमयी, सहज अभिव्यक्ति-शैली में मौलिक, सारगर्भित विस्तार देना पल्लवन (expansion) कहलाता है। 

प्रश्न 2. पल्लवन क्या मतलब है?


उत्तर :- जो एक रक्षा करने वाले स्वभाव के साथ पैदा हुआ है, एक जो एक सुरक्षात्मक स्वभाव के साथ पैदा हुआ है। लिंग। : लड़का। धर्म।

प्रश्न 3. पल्लवन के लेखक कौन है?


उत्तर :- सुमित्रानंदन पंत

प्रश्न 4. पल्लवन के लिए कौन सी शैली उपयुक्त है?


उत्तर :- व्यास शैली

प्रश्न 5. पल्लवन और संक्षेपण क्या है?


उत्तर :- भाव-पल्लवन का अर्थ होता है – विस्तृत या बड़ा रूप । इसमें किसी उक्ति या विचार – सूत्र का विस्तार से विवेचन किया जाता है।

संक्षेपण किसी बड़ी रचना के मूलभूत अर्थ या केंद्रीय भाव को पकड़ने की कोशिश करता है। इसके विपरीत भाव-पल्लवन मूल अर्थ या केंद्रीय भाव को विस्तार से समझाने का प्रयत्न करता है।

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