प्रतिवेदन की परिभाषा, प्रकार, तत्व, सावधानियाँ और विशेषताएँ

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चलिए आज हम प्रतिवेदन की परिभाषा, प्रकार, तत्व, सावधानियाँ और विशेषताएं की जानकारी को पढ़ते और समझते हैं।

प्रतिवेदन किसे कहते हैं

प्रतिवेदन का सामान्य मतलब होता है किसी घटना या स्थिति की क्रमिक जानकारी अथवा रिपोर्ट प्रस्तुत करना। हर समय देश-विदेश में कई ऐसी घटनाएँ होती रहती हैं जिनको जानने के लिए हम उत्सुक रहते हैं।

लेकिन उसके लिए तथ्यों की जांच पड़ताल होना जरूरी होता है जो किसी सरकारी या गैर सरकारी एजेंसी द्वारा की जाती है। ऐसे व्यक्तियों द्वारा प्रस्तुत विवरण को ही प्रतिवेदन कहते हैं। जिस व्यक्ति या समूह द्वारा प्रतिवेदन प्रस्तुत किया जाता है उसे प्रतिवेदक कहते हैं।

प्रतिवेदन के प्रकार

प्रतिवेदन मुख्यतः तीन प्रकार के होते हैं।

  1. व्यक्तिगत प्रतिवेदन
  2. संगठनात्मक प्रतिवेदन
  3. विवरणात्मक प्रतिवेदन

1. व्यक्तिगत प्रतिवेदन

व्यक्तिगत प्रतिवेदन में व्यक्ति किसी के जीवन से संबंधित प्रतिवेदन लिखता है। कभी-कभी यह डायरी का रूप भी ले लेता है। यह प्रतिवेदन का श्रेष्ठतम रूप नहीं है।

2. संगठनात्मक प्रतिवेदन

संगठनात्मक प्रतिवेदन में किसी सभा, बैठक, संस्था इत्यादि की घटना का विवरण दिया जाता है। इस प्रतिवेदन में सभी बाते संगठन और संस्था से जुड़ी होती हैं।

3. विवरणात्मक प्रतिवेदन

विवरणात्मक प्रतिवेदन में किसी यात्रा, मेला, सभा, रैली आदि का विवरण तैयार किया जाता है।

प्रतिवेदन के मुख्य तत्व

प्रतिवेदन में निम्नलिखित तत्व सम्मिलित होते है।

(क). घटना या स्थिति :- यह किसी भी प्रतिवेदन का सबसे महत्वपूर्ण तत्व है। जब भी किसी घटना, दुर्घटना, समस्या या मुद्दे की जानकारी पर कार्यवाही की जानी होती है तभी प्रतिवेदन लिखा जाता है।

(ख). समिति की नियुक्ति :- किसी भी घटना की संपूर्ण जानकारी के लिए किसी व्यक्ति को जिम्मेदारी सौंपी जाती है या एक समिति नियुक्त करके मामले की सच्चाई तक पहुंचने का प्रयास किया जाता है।

(ग). पूर्ण जांच पड़ताल :- जांच पड़ताल के माध्यम से ही समस्या की जड़ तक पहुंचना संभव हो पाता है। क्योंकि किसी भी समस्या के अनेक पहलू होते हैं इसलिए उन सब को उजागर करना कठिन होता है।

(घ). प्रमाण :- प्रतिवेदन की प्रमाणिकता दिए गए सबूतों और तथ्यों पर निर्भर करता है।

(च). सुझाव तथा सिफारिश :- सुझाव या सिफारिशों के माध्यम से ही समिति अपने विचारों को व्यक्त करती है।

(छ). निश्चित अवधि :- किसी भी प्रतिवेदन को निर्धारित समय में ही प्रस्तुत करना होता है।

प्रतिवेदन की विशेषताएं

ऊपर दिए गए तत्वों के आधार पर प्रतिवेदन की निम्नलिखित विशेषताएं हो सकती हैं।

  1. प्रतिवेदन में प्रमाणिकता होती है।
  2. यह किसी एक विषय या घटना पर पूरी तरह केंद्रित होता है।
  3. यह पूरी तरह से निष्पक्ष आधारित होता है।
  4. इसकी भाषा सहज सरल और प्रभावी होती है।
  5. इसके अंदर किसी घटना की मुख्य बातें ही लिखी जाती हैं।
  6. इसमें बातों को एक क्रम में लिखा जाता हैं।
  7. प्रतिवेदन में बातों को संक्षेप में लिखा जाता हैं।
  8. इसमें ऐसी कोई बात नहीं कही जा सकती जिससे संदेह पैदा हो।

प्रतिवेदन लिखने की प्रक्रिया

प्रतिवेदन लिखने के लिए हमें निम्नलिखित प्रक्रिया को अपनाना पड़ता है।

1. पहला चरण :- संबंधित विषय का गहन अध्ययन करते हुए उसके उद्देश्य को ध्यान में रखना।

2. दूसरा चरण :- उद्देश्यों के अनुसार अपने कार्य की रूपरेखा तैयार करना।

3. तीसरा चरण :- प्रतिवेदन से संबंधित विषय जैसे चित्र, आंकड़े और सूची इत्यादि एकत्रित करना।

4. चौथा चरण :- अनेक लोगों से मिलकर पक्ष-विपक्ष के विचारों को जानकर सूचना एकत्रित करना।

5. पांचवा चरण :- जांच पड़ताल से प्राप्त किए गए सभी सूचना को सारणीबद्ध करना।

6. छठा चरण :- निष्कर्ष और सिफारिशों की रूपरेखा तैयार करना।

7. अंतिम चरण :- सभी कागजातों को शामिल करते हुए मुख्य प्रतिवेदन करके, समिति के सभी सदस्यों के हस्ताक्षर के साथ प्रस्तुत करना।

प्रतिवेदन लिखते समय सावधानियाँ

प्रतिवेदन को लिखते समय कुछ बातों पर विशेष ध्यान देना चाहिए।

  1. यह हमेशा छोटा होना चाहिए।
  2. इसका शीर्षक साफ होना चाहिए।
  3. इसकी भाषा आसान और साफ़ होनी चाहिए।
  4. इसका शीर्षक ऐसा होना चाहिए जो मुख्य विषय को रेखांकित करता हो।
  5. घटना की तिथि और समय की सूचना दी जानी चाहिए।
  6. इसमें केवल महत्वपूर्ण बातों को ही लिखना चाहिए।
  7. घटना की व्याख्या सही क्रम में होनी चाहिए।
  8. प्रतिवेदन लिखते समय भाषा में प्रथम पुरुष का प्रयोग नहीं करना चाहिए।

प्रतिवेदन की आवश्यकता क्यों हैं

आजकल प्रतिवेदन लेखन एक महत्वपूर्ण कार्य है। प्रतिवेदक विभिन्न तथ्यों की जांच पड़ताल कर जो निष्कर्ष निकालता है उसे जनता के हितों को ध्यान में रखते हुए प्रस्तुत करता है।

जब भी कोई विषय या मुद्दा सामान्य जनता के विरुद्ध होता है तो उस विषय की छानबीन करना आवश्यक हो जाता है। ऐसी स्थिति में ही प्रतिवेदन की जरूरत पड़ती है।

सरकारी, गैर सरकारी, अर्द्ध सरकारी कार्यालयों और संस्थाओं में छोटी-बड़ी गड़बड़ी, उनके विवादों की जांच तथा उनके रिपोर्ट की आवश्यकता हमेशा बनी रहती है।

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