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सूरदास के 10 प्रसिद्ध दोहे | Surdas ke Dohe

surdas ke dohe

इस पेज पर आप सूरदास के 10 प्रसिद्ध दोहे की जानकारी दी गई हैं यदि आप सूरदास के दोहे पढ़ना चाहते हैं तो इस आर्टिकल को जरूर पढ़े।

पिछले पेज पर हमने सूरदास का जीवन परिचय की जानकारी शेयर की हैं तो उस पोस्ट को भी पढ़े। चलिए आज हम सूरदास के 10 प्रसिद्ध दोहे पढ़ते हैं।

सूरदास के 10 प्रसिद्ध दोहे

1. चरण कमल बंदो हरी राइ।
जाकी कृपा पंगु गिरी लांघें अँधे को सब कुछ दरसाई॥
बहिरो सुनै मूक पुनि बोले रंक चले सर छत्र धराई।
सूरदास स्वामी करुणामय बार-बार बंदौ तेहि पाई
खंजन नैन रूप मदमाते।

2. अतिशय चारु चपल अनियारे,
पल पिंजरा न समाते॥
चलि-चलि जात निकट स्रवनन के,
उलट-पुलट ताटंक फँदाते।
”सूरदास’ अंजन गुन अटके,
नतरु अबहिं उड़ जाते॥

3. मैया मोहि दाऊ बहुत खिझायौ,
मोसौं कहत मोल कौ लीन्हौ, तू जसुमति कब जायौ।
कहा करौं इहि के मारें खेलन हौं नहि जात,
पुनि-पुनि कहत कौन है माता, को है तेरौ तात।
गोरे नन्द जसोदा गोरी तू कत स्यामल गात,
चुटकी दै-दै ग्वाल नचावत हँसत-सबै मुसकात।
तू मोहीं को मारन सीखी दाउहिं कबहुँ न खीझै,
मोहन मुख रिस की ये बातैं, जसुमति सुनि-सुनि रीझै।
सुनहु कान्ह बलभद्र चबाई, जनमत ही कौ धूत,
सूर स्याम मौहिं गोधन की सौं, हौं माता तो पूत।

4. अरु हलधर सों भैया कहन लागे मोहन मैया मैया।
नंद महर सों बाबा अरु हलधर सों भैया॥
ऊंचा चढी-चढी कहती जशोदा लै-लै नाम कन्हैया।
दुरी खेलन जनि जाहू लाला रे! मारैगी काहू की गैया॥
गोपी ग्वाल करत कौतुहल घर-घर बजति बधैया।
सूरदास प्रभु तुम्हरे दरस कों चरननि की बलि जैया॥

5. मैया मोहि मैं नहीं माखन खायौ।
भोर भयो गैयन के पाछे, मधुबन मोहि पठायो।
चार पहर बंसीबट भटक्यो, साँझ परे घर आयो॥
मैं बालक बहियन को छोटो, छीको किहि बिधि पायो।
ग्वाल बाल सब बैर पड़े है, बरबस मुख लपटायो॥
तू जननी मन की अति भोरी इनके कहें पतिआयो।
जिय तेरे कछु भेद उपजि है, जानि परायो जायो॥
यह लै अपनी लकुटी कमरिया, बहुतहिं नाच नचायों।
सूरदास तब बिहँसि जसोदा लै उर कंठ लगायो॥

6. मैया मोहि कबहुँ बढ़ेगी चोटी।
किती बेर मोहि दूध पियत भइ यह अजहू है छोटी॥
तू तो कहति बल की बेनी ज्यों ह्वै है लांबी मोटी।
काढ़त गुहत न्हावावत जैहै नागिन-सी भुई लोटी॥
काचो दूध पियावति पचि-पचि देति न माखन रोटी।
सूरदास त्रिभुवन मनमोहन हरि हलधर की जोटी॥

7. जसोदा हरि पालनै झुलावै।
हलरावै दुलरावै मल्हावै जोई सोई कछु गावै॥
मेरे लाल को आउ निंदरिया कहे न आनि सुवावै।
तू काहै नहि बेगहि आवै तोको कान्ह बुलावै॥
कबहुँ पलक हरि मुंदी लेत है कबहु अधर फरकावै।
सोवत जानि मौन ह्वै कै रहि करि-करि सैन बतावै॥
इही अंतर अकुलाई उठे हरि जसुमति मधुरैं गावै।
जो सुख सुर अमर मुनि दुर्लभ सो नंद भामिनि पावै॥

8. बुझत स्याम कौन तू गोरी।
कहाँ रहति काकी है बेटी देखी नहीं कहूँ ब्रज खोरी॥
काहे कों हम ब्रजतन आवतिं खेलति रहहिं आपनी पौरी।
सुनत रहति स्त्रवननि नंद ढोटा करत फिरत माखन दधि चोरी॥
तुम्हरो कहा चोरी हम लैहैं खेलन चलौ संग मिलि जोरी।
सूरदास प्रभु रसिक सिरोमनि बातनि भूरइ राधिका भोरी॥

9. निरगुन कौन देस को वासी।
मधुकर किह समुझाई सौह दै, बूझति सांची न हांसी॥
को है जनक, कौन है जननि, कौन नारि कौन दासी।
कैसे बरन भेष है कैसो, किहं रस में अभिलासी॥
पावैगो पुनि कियौ आपनो, जा रे करेगी गांसी।
सुनत मौन हवै रह्यौ बावरों, सुर सबै मति नासी॥

10. जो तुम सुनहु जसोदा गोरी।
नंदनंदन मेरे मंदीर में आजू करन गए चोरी॥
हों भइ जाइ अचानक ठाढ़ी कह्यो भवन में कोरी।
रहे छपाइ सकुचि रंचक ह्वै भई सहज मति भोरी॥
मोहि भयो माखन पछितावो रीती देखि कमोरी।
जब गहि बांह कुलाहल किनी तब गहि चरन निहोरी॥
लागे लें नैन जल भरि-भरि तब मैं कानि न तोरी।
सूरदास प्रभु देत दिनहिं दिन ऐसियै लरिक सलोरी॥

FAQ

प्रश्न 1. सूरदास की प्रसिद्ध रचना कौन सी है?


उत्तर :- सूरसागर, सूरसरावली, साहित्य लहरी, नल-दमयन्ती, ब्याहलो के अतिरिक्त दशमस्कंध टीका, नागलीला, भागवत्, गोवर्धन लीला, सूरपचीसी, सूरसागर सार, प्राणप्यारी, आदि ग्रंथ सम्मिलित हैं।

प्रश्न 2. सूरदास का अर्थ क्या है?


उत्तर :- सूरदास का अर्थ है – संगीत की धुनों का सेवक।

प्रश्न 3. सूरदास ने कौन सी भाषा लिखी थी?


उत्तर :- ब्रज भाषा

प्रश्न 4. सूरदास ने किसकी भक्ति की थी?


उत्तर :- सूरदास श्रीकृष्ण के परम भक्त थे

प्रश्न 5. सूरदास के शिक्षक कौन है?

उत्तर :- सूरदास को आमतौर पर वल्लभ आचार्य का शिष्य माना जाता है, जिनसे उनकी मुलाकात 1510 ई. में वृन्दावन की तीर्थयात्रा पर जाते समय हुई थी।

प्रश्न 6. सूरदास की शिक्षा क्या थी?


उत्तर :- सूरदास ने, विशेष रूप से, वैष्णववाद के शुद्धाद्वैत स्कूल (जिसे पुष्टि मार्ग भी कहा जाता है) की वकालत की। 

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